पिछले भाग से आगे …..

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पिछले भाग में हमने एक सरसरी नज़र डाली थी डीएसएलाआर(dSLR), ब्रिज(bridge)/प्रोज़्यूमर(prosumer) और प्वाइंट एण्ड शूट(point and shoot) कैमरों के फर्क, खूबियों और खामियों पर और एक नई फीचर इमेज स्टेबिलाईज़ेशन(image stabilization) पर।

कैमरा पसंद करते समय एक चीज़ और देखते हैं, कैमरा निर्माता। किसी भी विषय के संबन्ध में साधारणतया तीन तरह के लोग होते हैं:

  1. जिनको बिलकुल जानकारी नहीं होती
  2. जिनको थोड़ी बहुत जानकारी होती है
  3. एक्सपर्ट लोग, जिनको बहुत जानकारी होती है

तीसरे नंबर वाले लोगों के लिए यह लेख नहीं है, वे अपने निर्णय लेने में सक्षम हैं, उनको मुझसे बहुत अधिक जानकारी होती है, क्योंकि यहाँ कैमरों के मामले में मैं दूसरे नंबर की श्रेणी में आता हूँ; थोड़ी जानकारी है, अधिक पाने की चाह है।

पहली श्रेणी वाले लोग विज्ञापनों से अधिक प्रभावित होते हैं, जिस कंपनी का विज्ञापन जानदार, उनकी नज़र में वही कंपनी और उसका माल सबसे बढ़िया!! ऐसे लोग यदि समझ(अपनी नहीं, दूसरे जानकार व्यक्ति की) से काम नहीं लेते तो कई बार नुकसान उठाते हैं; अनुभव से बढ़िया तो कोई आचार्य आज तक हुआ नहीं!! भाग-२ में मैंने मेगापिक्सल भ्रांति के बारे में लिखा था कि कैसे कैमरा निर्माता मेगापिक्सल के दम पर कैमरे बेचने में लगे हैं। इस भ्रांति का शिकार अधिकतर पहली श्रेणी वाले लोग ही होते हैं। यदि आप पहली श्रेणी के हैं तो इसमें शरमाने वाली कोई बात नहीं है, हर कोई पहली सीढ़ी से ही शुरुआत करता है, जो तीसरी श्रेणी में आते हैं वे भी कभी पहली श्रेणी में ही थे। कोई चीज़ यदि मायने रखती है तो वह यह कि आप कितनी जल्दी पहली से दूसरी और दूसरी से तीसरी श्रेणी में जाते हैं।

तो पहले अब विज्ञापनों को ही देखते हैं। विज्ञापनों के मामले में यदि भारतीय टीवी को लें तो सोनी के साइबरशॉट कैमरों के विज्ञापन ही आप पाएँगे। दो-तीन वर्ष पहले तक कोडेक के फिल्म वाले कैमरों के विज्ञापन बहुत आते थे लेकिन अब आने बंद हो गए हैं, कोडेक को दिखाई दे रहा है कि फिल्म वाले साधारण कैमरे अब बिकने बंद हो रहे हैं, लोग डिजिटल कैमरे लेने पसंद कर रहे हैं। तो आज के समय में सोनी के विज्ञापन दिखाई देते हैं, जिस भी पहली श्रेणी वाले से पूछो, प्रायः सोनी का नाम ही भजता हुआ पाया जाएगा। क्या सोनी के कैमरे अच्छे होते हैं? इसका उत्तर प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुसार देगा, मेरे अनुसार सोनी को कैमरे बनाने नहीं आते, इसलिए मैंने कभी सोनी के कैमरे को अपनी लिस्ट में नहीं डाला, क्योंकि अब तक सोनी का कोई कैमरा मेरी वांछित श्रेणी में मौजूद अन्य कैमरों के मुकाबले पर मुझे खरा उतरता नहीं दिखाई दिया। अभी कुछ दिन पहले की बात है, एक परिचित ने मुझसे पूछा कि सोनी का कौन सा कैमरा लें। मैं थोड़ा हैरान रह गया क्योंकि मैं अपेक्षा कर रहा था कि वे मुझसे पूछेंगे कि कौन सा कैमरा लें, लेकिन उन्होंने ब्रांड तो पहले से ही निर्धारित कर ली थी। जब मैंने पूछा कि सोनी का ही कैमरा क्यों लेना चाहते हैं तो पता चला कि उनको पता ही नहीं कि सोनी के अतिरिक्त भी कोई डिजिटल कैमरा बनाता है, उनको तो डिजिटल कैमरों का सोनी तक और फिल्म कैमरों का कोडेक तक ही ज्ञान था। फिर भी मैंने कहा कि सोनी के अतिरिक्त और भी कंपनियाँ हैं, तो वे बोले कि सोनी जितनी अच्छी तो नहीं होंगी, जब वो अपना विज्ञापन टीवी पर दिखाना अफ़ोर्ड(afford) नहीं कर सकतीं तो फिर ऐरी-गैरी कंपनियाँ होंगी जो सोनी जितनी अच्छी सर्विस न दे पाएँ। देखा जाए तो इसमें उनकी गलती नहीं है, कैमरा निर्माता ही भारत में अपना प्रचार अभी ठीक से नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कदाचित्‌ उनके अनुसार भारत में अभी डिजिटल कैमरे का कोई खास बाज़ार नहीं है। लेकिन यहाँ एक दूसरा पहलू विचारणीय है, सर्विस। सोनी की सर्विस अच्छी है इस पर लोगों से हर तरह के विचार जानने को मिल सकते हैं, कुछ इसके नाम की कसम खाने को तैयार हो जाएँ तो कुछ इसके इतने खिलाफ़ मिल जाएँगे कि आपने भी क्या किसी की खिलाफ़त देखी होगी!!

डिजिटल कैमरों की दुनिया में आजकल कुछ आम नाम हैं; कोडेक(kodak), सोनी(sony), कैनन(canon), निकोन(nikon), ओलम्पस(olympus) और पैनासोनिक(panasonic)। कुछ अन्य नाम भी मिल जाएँगे जैसे कि कैसिओ(casio), सैमसंग(samsung) और एचपी(HP)। जो लोग थोड़ी अधिक जानकारी रखते हैं उन्होंने कुछ और नाम भी पढ़/सुन रखे होंगे; रीको(ricoh), पेन्टैक्स(pentax), मिनोल्टा(minolta), लेएका(leica), सिग्मा(sigma)।

आम नामों में, कोडेक तो फिलहाल जगह हासिल करने की कोशिश कर रहा है, सोनी और पैनासोनिक ने कुछ जगह हासिल की है और तेज़ी से उभर कर आ रहे हैं, ओलम्पस इनसे आगे है और सबसे स्थापित खिलाड़ी हैं कैनन और निकोन। कैसिओ, सैमसंग और एचपी अभी फिलहाल दूसरी श्रेणी में हैं और इनको काफ़ी रास्ता तय करना है पहली श्रेणी में आने के लिए। रीको का अपना अलग मुकाम है, पेन्टैक्स और मिनोल्टा के डीएसएलआर चलते हैं(सोनी ने कुछ समय पहले मिनोल्टा की कैमरा कंपनी को खरीद अपना पहला डीएसएलआर बाज़ार में निकाला है), लेएका और सिग्मा वास्तव में लेन्स बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। सिग्मा निकोन/कैनन और अपने कैमरों के लिए सस्ते लेन्स बनाता है जिनको लेने वाले फोटोग्राफ़रों की जेबें प्रायः बड़ी नहीं होती। लेएका एक काफ़ी पुरानी जर्मन कंपनी है जिसके लेन्स की क्वालिटी(quality) का सिक्का सबसे अधिक खरा माना जाता है, यदि आपके पास इसका लेन्स है तो अपनी पसंद(taste) और जेब(लेएका के लेन्स काफी महंगे होते हैं) के कारण आपकी औकात दूसरों की नज़र में अपने आप बढ़ जाती है!! लेएका से बढ़िया लेन्स बनाने वाले के बारे में मुझे नहीं पता, हो सकता है कि कोई हो या न हो। कुछ कैमरा निर्माता अपने लेन्स स्वयं बनाते हैं या कदाचित्‌ ऑऊटसोर्स करते हैं, लेकिन लेन्स उनके नाम से ही बिकता है, जैसे कैनन, निकोन, ओलम्पस। लेकिन कुछ कैमरा निर्माता एक(या एक से अधिक) प्रसिद्ध लेन्स निर्माता के साथ गठबंधन करते हैं और उनके लेन्स उनके नाम के ठप्पे के साथ ही प्रयोग करते हैं, जैसे कोडेक श्नेडर-क्रूज़नैक(Schneider-Kreuznach) के लेन्स प्रयोग करता है, सोनी कार्ल ज़ाइस(Carl Zeiss) के और पैनासोनिक प्रयोग करता लेएका(Leica) के लेन्स। लेकिन पैनासोनिक सिर्फ़ लेएका के लेन्स ही प्रयोग नहीं करता, वह उसके लिए कैमरे भी बनाता है जिनमें लेएका के मुताबिक थोड़ा फेर-बदल होता है और उस पर पैनासोनिक की जगह लेएका का ठप्पा होता है। वैसे कोई आवश्यक नहीं कि इन कैमरा निर्माताओं के प्रत्येक कैमरे में इन लेन्स निर्माताओं के लेन्स लगे हों, कुछेक सस्ते कैमरों में इनके लेन्स नहीं लगे होते क्योंकि कीमत पर वे माफ़िक नहीं बैठते। गौर करने वाली बात यह है कि ये तीनों लेन्स निर्माता जर्मन मूल के हैं, और जर्मन दक्षता और परिशुद्धता का लोहा लगभग सभी मानते हैं!! 🙂

तो बात यदि निजी सलाह की आती है तो मैं कैसिओ, सैमसंग और एचपी से दूर रहने की सलाह दूँगा, अभी इनके कैमरों को बहुत सफ़र करना है कि वे उस मुकाम पर पहुँच सकें कि कोई समझदार व्यक्ति इनको लेने की सोचे। अभी ये लोग दुबले-पतले कैमरे बनाने में लगे हैं, लेकिन हर चीज़ स्लिम अच्छी नहीं होती यह इनको समझना होगा। प्वाइंट एण्ड शूट कैमरों में सोनी को भी फिलहाल नज़रांदाज़ करना ही ठीक है, उसको अभी सुधार की आवश्यकता है। बेसिक प्वाइंट एण्ड शूट में कोडेक, कैनन और पैनासोनिक के कैमरे देखें। कोडेक एक पुराना नाम है, इसके कैमरों की जो एक खासियत है वह यह कि इसके कैमरों द्वारा ली गई तस्वीरों में रंगों की गहराई गजब की होती है, इस कंपनी ने लगभग पूरी बीसवीं शताब्दी रंगों के विज्ञान में रिसर्च की है, उसका फल तो मिलेगा ही, इसलिए बाकी कोई खासियत हो या न हो, रंगों की गहराई लगभग अद्वितीय होती है। अन्य निर्माता भी अब उसके निकट पहुँच रहे हैं, कैनन ने अपने निचले दर्जे के कैमरों पर भी ध्यान देना आरम्भ किया है और उसके कैमरे भी बेहतर होते जा रहे हैं। पैनासोनिक के पक्ष में जो बात है वह यह कि उसके कैमरों में उच्च क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध लेएका के लेन्स प्रयोग होते हैं और उसके कैमरों का ऑप्टिकल इमेज स्टेबिलाईज़ेशन अद्वितीय है, इस श्रेणी के अन्य कैमरों में से किसी में इसकी बराबरी करने वाला इमेज स्टेबिलाईज़ेशन मिलना अति कठिन है, कैनन आदि का इमेज स्टेबिलाईज़ेशन इसके सामने मज़ाक लगता है!! निकोन के कैमरे ठीक हैं, लेकिन इनको सोनी के साथ मैं द्वितीय श्रेणी में रखना ठीक समझूँगा क्योंकि इसके कूलपिक्स सीरीज़ के प्वाइंट एण्ड शूट कैमरों में अभी उस तरह की क्वालिटी नज़र नहीं आती जो इस सेगमेन्ट की अन्य नामी ब्रांडों के कैमरों में दिखाई देती है, हालांकि इसको प्रयोग करने वाले बहुत से लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे(क्यों जीतू भाई?)।

ब्रिज/प्रोज़्यूमर कैमरों में दो नाम शीर्ष पर हैं, कैनन और पैनासोनिक। जहाँ कैनन के पॉवरशॉट S3IS ने सस्ते मामले में प्रोज़्यूमर कैमरा लेने वालों को लुभाया है वहीं जो थोड़ा अधिक रोकड़ा खर्च करने से नहीं हिचके उनकी पसंद बिग बॉस प्रोज़्यूमर कैमरा, पैनासोनिक ल्यूमिक्स FZ50 रहा है जिसके 35mm से 420mm के 12x ऑप्टिकल ज़ूम वाले लेएका लेन्स ने और गजब की प्रभावशाली इमेज स्टेबिलाईज़ेशन ने बहुत से एक्सपर्ट्स को लुभाया है, हालांकि इन दोनो ही में अपनी-२ खामियाँ भी हैं। जून 2007 में कैनन ने अपने S3IS का अगला वर्जन S5IS निकाला, वहीं पैनासोनिक ने एक सस्ता प्रोज़्यूमर कैमरा FZ8 निकाला है और दूसरे बिग-बॉस FZ18 को सितंबर में निकालने वाला है जिसकी स्पेसिफ़िकेशन(specification) आदि देख लग रहा है कि यह कैमरा धूम मचा देगा। कैमरों की यह प्रोज़्यूमर श्रेणी तेज़ी से गर्माती जा रही है, कैमरा निर्माता इस श्रेणी के फोटोग्राफ़रों की ज़रूरतों को समझ रहे हैं और यह भी समझ रहे हैं कि बहुत से लोग प्वाइंट एण्ड शूट के ऊपर कुछ चाहते हैं लेकिन डीएसएलआर की सिरदर्दी नहीं चाहते!! इस श्रेणी में ओलम्पस भी उभरकर आ रहा है, सोनी तो खैर अपने पैर जमाने की कोशिश कर ही रहा है, कोडेक भी पीछे नहीं रहना चाहता।

डीएसएलआर श्रेणी में कैनन और निकोन छाए हुए हैं, इनका कोई जवाब नहीं। लेकिन यदि किसी को अन्य विकल्प देखने हैं तो ओलम्पस एक सस्ता विकल्प है जिसके कैमरे अच्छे होते हैं, पेन्टैक्स भी बाज़ार में है। पैनासोनिक ने कुछ समय पहले ही अपना पहला डीएसएलआर निकाला था और इधर कोनिका-मिनोल्टा की कैमरा डिविज़न को खरीद सोनी ने मिनोल्टा के एक डीएसएलआर में थोड़े से फेर-बदल कर अपना भी पहला डीएसएलआर कैमरा बाज़ार में उतारा। और इनके साथ ही लेएका भी बाज़ार में है, जिसका कैमरा तो पैनासोनिक बनाता है और लेन्स लेएका का अपना होता है।

इस श्रृंखला के इस अंतिम भाग में यही कहना चाह रहा हूँ कि विज्ञापनों के आगे भी बाज़ार है, इसलिए सिर्फ़ विज्ञापनों पर मत जाईये। मेरे पास पूरे दो माह का समय था अपने नए कैमरे के बारे में निश्चय करने का, क्योंकि दो महीने बाद मेरा एक मित्र ऑफिस टूर पर अमेरिका जा रहा था और मैंने सोच रखा था कि उसके हाथ ही अमेरिका से मंगवा लूँगा अपना कैमरा, सस्ता भी मिलेगा(यहाँ दिल्ली के मुकाबले आधे से कम दाम में मिला आखिरकार) और मंगवाने में लगने वाले पैसे भी बचेंगे!! 😉 इसलिए मैंने दो माह तसल्ली से रिसर्च की थी, कई कैमरे देखे, डीएसएलआर लेने के बारे में भी सोचा, कई रिव्यू पढ़े, लोगों से उनकी राय जानी, कैमरों की लिस्ट फाइनल की तो यहाँ एकाध बड़ी दुकानों में जाकर कैमरे हाथ में ले चला कर भी देखे और अंत में पैनासोनिक ल्यूमिक्स FZ50 को लेना तय किया। डिजिटल कैमरा खरीद आप एक तरह से अपना पैसा उसमें निवेश कर रहे हैं, इसलिए अच्छी तरह से रिसर्च करें कि क्या उपलब्ध है और कितने का उपलब्ध है, बाज़ार की उसके बारे में क्या प्रतिक्रिया है, एक्सपर्ट्स का क्या कहना है, खूबियों और खामियों का विशलेषण करें, हो सके तो दुकानों में जाकर कैमरा चला कर देखें और सोच समझ कर अपना पैसा लगाएँ। इस तरह से कदाचित्‌ थोड़ा समय लग जाए लेकिन नतीजे आपको अच्छे ही मिलेंगे।