चार महीने से ऊपर हो गए थे पिछली यात्रा को, तब से कहीं घूमने फ़िरने नहीं गया था। तो इसलिए मन मचल रहा था, पैरों में खुजली हो रही थी कि कहीं घूम-फ़िर आया जाए। मोन्टू ने कहा कि नए साल का स्वागत कहीं बाहर करेंगे तो ऐसा ही करने की सोची। परन्तु यह इतना आसान कहाँ था, लोगबाग़ महीनों पहले कार्यक्रम बना और बुकिंग आदि करा के बैठे होते हैं, इसलिए हमने किसी लोकप्रिय जगह जाने का तो ख्याल ही छोड़ दिया। कम लोकप्रिय जगहों पर यात्रीनिवासों और होटलों में पता किया गया, लेकिन हर जगह निराशा ही मिली, गढ़वाल मण्डल वालों ने तो हाथ खड़े कर दिए, बोले कि उनके किसी भी यात्रीनिवास में जगह उपलब्ध नहीं है। बड़ी मुश्किल से लान्सडौन के जंगल रिसॉर्ट रिट्रीट आनंद में जगह का जुगाड़ हो पाया। 🙂 हम पाँच लोगों का प्रोग्राम था जाने का लेकिन यात्रा की तिथि निकत आते आते हम आठ हो गए, दो-तीन को तो मना करना पड़ा क्योंकि रहने के लिए ज़्यादा जुगाड़ नहीं था इसलिए समस्या हो जाती।

तो 31 दिसंबर की सुबह अपन निकल पड़े, सभी यार दोस्तों को ले मोन्टू के घर पहुँचे। लेकिन समस्या यह थी कि एन्सी की ट्रेन लेट हो गई थी, वह अपने गृहनगर से वापस आ रही थी और दिल्ली में कोहरे के कारण ट्रेन लेट थी। उसने कहा भी कि हम लोग उसकी प्रतीक्षा न करें और निकल लें, लेकिन हमने प्रतीक्षा करने की ठान ली, जो होगा देखा जाएगा। आखिरकार सुबह 9 बजे(करीब 3 घंटे लेट) उसकी ट्रेन स्टेशन पर लगी और वह अपने घर निकल पड़ी जहाँ से उसने अपना सामान लेना था। थोड़ी देर बाद हम लोग उसके घर पहुँच गए और उसे ले अपने सफ़र पर निकल पड़े।

गाज़ियाबाद, मोदीनगर, मेरठ, बिजनौर तथा नजीबाबाद होते हुए हम कोटद्वार पहुँचे। यहाँ से लगभग 40 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता तय कर हमें लान्सडौन पहुँचना था। अगले दिन ईद थी, इसलिए मार्ग में हमें काफ़ी ट्रैफ़िक और भीड़-भाड़ मिली जिस कारण हम और लेट हो गए, नतीजन जब हम लान्सडौन के रास्ते पर थे तभी सूर्यास्त हो रहा था। अब उसे कैसे छोड़ सकते थे, इसलिए गाड़ी रूकवाई गई ताकि सभी उसे(सूर्यास्त को) अपने अपने कैमरों में बन्द कर सकें।


( 2006 का अंतिम सूर्यास्त )


चित्र आदि ले हम लोग पुनः चल पड़े, लान्सडौन पहुँचते पहुँचते अंधेरा हो चुका था और हमें रिट्रीट आनंद ढूँढने में बहुत दिक्कत आ रही थी, जिससे पूछो वही नया मार्ग बता देता था। आखिरकार कुछ देर भटकने के बाद हम जंगल रिसॉर्ट में पहुँच ही गए, वहाँ का मालिक बेसब्री से हमारा इंतज़ार कर रहा था, उसे लग रहा था कि हम आएँगे ही नहीं। 😉 यह रिसॉर्ट(कहने भर को ही है, वास्तव में नहीं है) जंगल में ईंट-पत्थर की कुटियाएँ डाल बनाया गया है, यानि कि पूरा का पूरा जंगल में रहने का मज़ा। लेकिन समस्या यह थी कि हमें एक ही कमरा मिला और एक टिन-लकड़ी की कुटिया। तो भद्र पुरुष होने के कारण हमने कमरा लड़कियों को दे दिया और स्वयं टिन-लकड़ी की कुटिया में रात्रि गुजारने का निर्णय लिया। भूख बहुत लगी थी सभी को इसलिए नाश्ता मंगवाया गया और आग का प्रबंध करने को कहा गया। थोड़ी देर में आग का प्रबन्ध हो गया और उसके पास ही कुर्सियाँ रख दी गई तो हम सब आग को घेर बैठ गए और सर्दी में गर्मी का आनंद लेने लगे।


फ़िर विह्स्की, रम, वोदका तथा वाईन खुली और अंताक्षरी का दौर चलने लगा। अत्यधिक ठण्ड होने के कारण मैंने भी रम के 5-6 पैग और वोदका के 1-2 पैग चढ़ा लिए, लेकिन आश्चर्य कि नशा बिलकुल नहीं हुआ, परन्तु जिस मकसद के तहत जीवन में पहली बार चढ़ाई वह पूरा हुआ, शरीर में अंदर काफ़ी गर्मी आ गई। 😉 अंताक्षरी के बाद नाच गाना भी हुआ।


( नाचना, गाना, मौज मनाना )



( नाचना, गाना, मौज मनाना )



नया साल आरंभ होते ही रिसॉर्ट में ठहरे एक यात्री समूह ने आतिशबाज़ियाँ की, हम सभी मित्रों ने आपस में गले मिल एक दूसरे को बधाईयाँ और शुभकामनाएँ दीं। हमारा खाना कब का लग चुका था, आखिरकार वह भी खा लिया गया, बर्फ़ सा ठण्डा हो गया था लेकिन स्वादिष्ट था। एन्सी और संजुक्ता का मदिरापान कुछ अधिक हो गया था इसलिए मैं और मोन्टू उन दोनों को उनके कमरे तक छोड़ आए ताकि वे सो जाएँ। वापस आ हम बाकियों के साथ आग तापते बतियाते रहे और तकरीबन आधे घंटे बाद सभी ने सोने जाने का निर्णय लिया, सुबह जल्दी उठ ताड़केश्वर महादेव मंदिर जाना था जो कि कुछ दूर था और भारत के सबसे पुराने सिद्धपीठों में से एक है। तो लड़कियों को उनके कमरे में छोड़ और शुभरात्रि कह हम लोग टिन-लकड़ की कुटिया की ओर चल दिए। कुछ देरे मेरे और हितेश के बीच स्टिफ़न हॉकिंग और ब्रह्माण्ड आदि के बारे में चर्चा हुई, तत्पश्चात हम लोग अपने अपने बिस्तरों में घुस गए।

अगले भाग में जारी …..