हुम्म, ग्लोबल वॉयसिस की सालाना सम्मिट इस साल बुडापेस्ट में हुई। ग्लोबल वॉयसिस पर एक लेखक होने की हैसियत के कारण न्यौता अपने को भी था इसलिए आनन फानन पॉसपोर्ट बनवा के अपन भी पहुँच गए। 😀 बाकी का किस्सा बाद में बताया जाएगा, फिलहाल तो रील को फास्ट फॉरवर्ड कर सम्मिट का हाल बाँचते हैं।
तो ग्लोबल वॉयसिस की सम्मिट इस साल पूर्वी योरोपीय देश हंगरी (Hungary) की राजधानी बुडापेस्ट (Budapest) में थी। सम्मिट के लिए पेस्ट (Pest) में स्थित होटल नोवोटेल सेन्ट्रम (Novotel Centrum) में दो कॉन्फ्रेन्स हॉल बुक करवाए गए थे। रहने का बन्दोबस्त दो होटलों में था, कुछ के लिए कमरे नोवोटेल में ही मिल गए और बाकियों को दो ट्राम स्टॉप दूर ईज़ी होटल (Easy Hotel) में ठेल दिया गया। मेरा कमरा भी ईज़ी होटल में ही था। शुक्रवार 27 जून को सुबह साढ़े नौ बजे(स्थानीय समय) पर सम्मिट का शुभारंभ होना था पर मैं 10 मिनट लेट हो गया। गर्मी में पसीना बहाते नोवोटेल में पहली मंज़िल पर स्थित कॉन्फ्रेन्स हॉल के बाहर पहुँचा तो देखा काफ़ी भीड़ सी थी, रजिस्ट्रेशन डेस्क पर मैनेजिंग एडिटर साहिबा, सोलाना “सोलानासॉरस” लारसन, कमान संभाले हुए थी। उनसे परिचय हुआ, अपने नाम का तैयार रखा बिल्ला और ग्लोबल वॉयसिस की टीशर्ट ली तथा दोनो दिन के प्रोग्राम की सूचि की एक प्रति संभाली और कॉन्फ्रेन्स हॉल की ओर बढ़ गया।
कॉन्फ्रेन्स हॉल? सम्मिट के लिए दो अगल-बगल वाले कॉन्फ्रेन्स हॉल लिए गए थे और उनके बीच के पार्टीशन को हटा दिया गया था तो वह एक बड़ा हॉल बन गया था। दुनिया भर से तकरीबन दो सौ लोग आए हुए थे और वह जुड़वा हॉल पूरा खचाखच भरा हुआ था। लोग कुर्सियों पर तो बैठे ही थे, नीचे कालीन पर भी दोनो ओर की दीवारों के सहारे बहुत से बैठे हुए थे और पीछे दरवाज़ों के आजू-बाजू भी बहुत से खड़े और बैठे थे, और मामला शुरु हुए अभी सिर्फ़ दस ही मिनट हुए थे, ओपनिंग स्पीच होकर चुकी थी बस!! खाली कुर्सी नज़र न आई तो मैं भी द्वार के पास खड़ा ही हो गया, लैपटॉप लेकर नहीं गया था मैं इसलिए नोट्स आदि लेने का काम ही नहीं था, सोचा अगर कुछ नोट्स लेने होंगे तो मोबाइल पर लिए जाएँगे(जो कि लिए भी), तो अपना कैमरा निकाल मैं फोटू क्लिकियाने में लग गया। 🙂
ग्लोबल वॉयसिस के फाउंडिंग डॉयरेक्टर (Founding Director) ईथन (Ethan) अपनी बात कह कर निपटे थे और अब ग्लोबल वॉयसिस एडवोकेसी (Global Voices Advocacy) के डॉयरेक्टर सामी (Sami) टुनीशिया (Tunisia) में मौजूद सरकार की इंटरनेट पर थोपी गई सेन्सरशिप के बारे में बता रहे थे और कुछ झलकें पिछले दो दिन में हुई ग्लोबल वॉयसिस एडवोकेसी की सम्मिट से भी दिखाई और कुछ वीडियो दिखाए जो कि नागरिक पत्रकारिता के बेहतरीन नमूनों में से थे, एक वीडियो में मोरोक्को (Morocco) के कुछ पुलिस वालों को बस ड्राइवरों से पैसे निकलवाते दिखाया गया था। टुनीशिया, मोरोक्को, मिस्र (Egypt) आदि देशों में बहुत से लोग ऐसे वीडियो चोरी-छुपे उतारते हैं जो कि भ्रष्टाचार और सरकारी मुलाज़िमों के अत्याचारों को दिखाते हैं, और उन सभी वीडियो को यूट्यूब आदि पर अपलोड कर देते हैं। इनके कारण कई सरकारी मुलाज़िम इन देशों में बर्खास्त हो चुके हैं।
सम्मिट का पहला सत्र विश्व की भिन्न सरकारों द्वारा लगाई गई सेन्सरशिप पर था जिसके पैनल पर बेलारस (Belarus) के एक्टिविस्ट आन्द्रे अबोज़ाउ, ग्लोबल वॉयसिस जापान से क्रिस साल्ज़बर्ग, मिस्र के प्रसिद्ध ब्लॉगर अला अब्द अल-फ़तह, ग्लोबल वॉयसिस के एक संस्थापक ईथन ज़करमैन (Ethan Zuckerman) और पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध ब्लॉगर डॉ. आवाब अलवी थे। इस सत्र में चर्चा हुई इंटरनेट सेन्सरशिप पर और कैसे अभिव्यक्ति की आज़ादी को कई मुल्क़ों में दबाया जाता है और उसके हिमायतियों को सरकारें कैसे कुचलने का प्रयास करती हैं। पैनल पर मौजूद सभी साहबान ने अपने-२ इलाकों और मुल्क़ों के उदाहरण दे अपने-२ अनुभव बयान करे।
पाकिस्तान से तशरीफ़ लाए डॉ. आवाब ने बताया कि कैसे जब पाकिस्तान में ब्लॉगस्पॉट पर बैन लगा था तो उन लोगों ने उसके लिए प्रॉक्सी वेबसाइट बनाई, जिसे बाद में भारत में ब्लॉगस्पॉट के बैन लगने पर भारतीय ब्लॉगरों और पाठकों ने भी प्रयोग किया था। साथ ही उन्होंने ऐसे समय में मोबाइल के लघु संदेश द्वारा ब्लॉगिंग के लिए किए गए जुगाड़ों की दास्तान और अनुभव, तथा सीखे गए सबक सबके साथ बाँटे। इसी दौरान सामी ने एक ऐक्सेस डिनाइड मैप (Access Denied Map) भी दिखाया जिसमें उन्होंने गूगल मैप्स पर उन देशों को अंकित किया हुआ था जहाँ इंटरनेट पर कम या अधिक सेन्सरशिप रही है या है जिसका एक स्क्रीनशॉट निम्न है।
( चित्र को क्लिक करके आप नक्शे को देख सकते हैं और उस पर मौजूद बिन्दुओं को क्लिक कर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं )
दुख की बात है कि भारत भी इस सूचि में शामिल है। 🙁
इसके बाद दूसरा सत्र आरंभ हुआ जिसका विषय था सिटिज़न मीडिया और ऑनलाईन फ्री स्पीच (Citizen Media and Online Free Speech) और इसके पैनल पर भी बहु राष्ट्रीय शख़्सियतें थी। यह चर्चा सत्र भी पिछले सत्र से जुड़ा हुआ सा ही था क्योंकि सेन्सरशिप का मुद्दा यहाँ भी उठा और गुमनाम ब्लॉगिंग तथा अपने नाम से ब्लॉगिंग करने के अच्छे एवं बुरे पहलुओं पर भिन्न-२ लोगों के अनुभव सामने आए ऐसे इलाकों से जहाँ सरकारों की लगभग तानाशाही ही है।
सिंगापुर से आए प्रसिद्ध ब्लॉगर औ वाए पांग (Au Wai Pang) ने सिंगापुर के हालात बताए जहाँ मामला थोड़ा सा भिन्न है। वहाँ सरकार ने जबरन सेन्सरशिप नहीं थोपी है वरन् चाशनी में लपेट के लोगों को दी है और सामाजिक तथा आर्थिक विकास को पाने के लिए लोगों ने उसे स्वीकार किया है। इसका लाभ सरकार ने अपनी विरोधी पार्टी को कुचल के पाया और पिछले बीस साल से एक ही पार्टी की सरकार सत्ता में है। वहाँ सरकार अथवा प्रशासन नहीं वरन् स्वयं लोग अपने को सेन्सर करते हैं, कुछ सुविधाओं को पाने के लिए उन्होंने स्वयं ही अपनी आज़ादी का एक हिस्सा कुर्बान कर दिया।
इसके बाद दोपहर का भोजन हुआ तो उस दौरान कई लोगों से मिलना हुआ जिनसे अभी तक ईमेल द्वारा ही पहचान थी। सबसे पहले तो ग्लोबल वॉयसिस की दक्षिण एशिया की एडिटर नेहा को ढूँढा, वहाँ नेहा के अतिरिक्त किसी को नहीं जानता था, हालांकि ग्लोबल वॉयसिस की मैनेजिंग डॉयरेक्टर जॉर्जिया पॉप्पलवेल (Georgia Popplewell) से पिछले रोज़ दोपहर में मुलाकात हो गई थी जब दोपहर में नेहा को होटल से लेने आया था और सोलाना से सुबह रजिस्ट्रेशन डेस्क पर मुलाकात हुई थी। नेहा के पास ही डेब्बी (Deborah Ann Dilley) बैठी दिखाई दीं जो कि ग्लोबल वॉयसिस पर तुर्क ब्लॉगजगत को कवर करती हैं और ग्लोबल वॉयसिस के बोर्ड ऑफ़ डॉयरेक्टर्स में हम लेखकों की प्रतिनिधि भी हैं।
उसके बाद रेज़वानुल इस्लाम (Rezwanul Islam) से मुलाकात हुई। रेज़वान बांग्लादेशी हैं, ग्लोबल वॉयसिस पर बांग्ला ब्लॉग्स के बारे में लिखते हैं, ग्लोबल वॉयसिस की बांग्ला वेबसाइट के एडिटर हैं, ग्लोबल वॉयसिस के राइज़िंग वॉयसिस प्रोजेक्ट में फीचर एडिटर हैं, आजकल जर्मनी में पत्नी सहित डेरा डाले हुए हैं और लंदन स्थित एसोसिएशन ऑफ़ चार्टर्ड सर्टिफाइड अकाउंटेन्ट्स (Association of Chartered Certified Accountants) की अपनी सर्टिफिकेशन की पढ़ाई भी कर रहे हैं। अगले दो दिन सबसे अधिक बातें रेज़वान के साथ ही हुई।
लंच के बाद के सत्र का विषय था लिविंग विद सेन्सरशिप (Living with Censorship) और उसके बाद का सत्र तकनीकी ज्ञान पर था जिसमें सेन्सरशिप के बावजूद कैसे मुक्त रहा जाए इसके जुगाड़ों पर चर्चा थी और एकाध सही से जुगाड़ भी पता चले(इसके बारे में शीघ्र ही अन्य लेख में)। इसके बाद जलपान अवकाश के दौरान कुछ अन्य लोगों से भी मिलना हुआ। इसी दौरान अपर्णा रे (Aparna Ray) से मुलाकात हुई जो कि कोलकाता से आई थीं तथा मेरे और नेहा के अतिरिक्त वहाँ सिर्फ़ वही एक भारतीय थीं। अपर्णा ग्लोबल वॉयसिस पर बांग्ला ब्लॉग्स के बारे में लिखती हैं।
जलपान अवकाश के बाद के सत्र का विषय था “एनजीओ एण्ड ऑन द ग्राउंड एक्टिविस्ट्स – डिफेन्डिंग द वॉयसिस” (NGO’s and on-the ground activists: Defending the Voices) जिसमे चर्चा इस विषय पर रही कि कैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कार्यरत गैर सरकारी संस्थाएँ लोकल स्वयंसेवियों की सहायता ले सेन्सरशिप के खिलाफ़ लड़ सकती हैं। यह सत्र कुछ बोरियत भरा लग रहा था। ऐसा नहीं है कि बोलने वाले बेमज़ा थे लेकिन न जाने क्यों मैं मानसिक थकान सी महसूस कर रहा था, सुबह से शाम सात घंटे हो गए थे। मैं सोच ही रहा था कि हॉल से बाहर निकल एक कड़क काली कॉफी ली जाए दिमाग पर छा रही धुंध को दूर करने के लिए परन्तु उसकी आवश्यकता ही नहीं रही क्योंकि तभी एक हास्यप्रद वाक्या हुआ।
हुआ यूँ कि इस सत्र में पैनल पर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) संस्था की एक प्रतिनिधि पेरिस से आई हुई थी और अपनी संस्था के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा था कि उनकी संस्था बीस वर्ष पुरानी है और अकेले पेरिस में ही उनके यहाँ बीस लोग कार्यरत हैं तथा पूरे विश्व में सौ संवाददाता हैं। लेकिन तभी एक बात पर एक ईरानी ब्लॉगर ने अपना किस्सा बताते हुए बयान किया कि ईरान में लगाई जाने वाली सेन्सरशिप पर जब उन्होंने लिखा तो उन पर अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन स्थित एक थिंकटैंक में कार्यरत एक अन्य ईरानी ने उन पर बीस लाख डॉलर का मुकदमा ठोक दिया। उन ईरानी ब्लॉगर साहब ने सीमाविहीन पत्रकारों की इन मोहतरमा से प्रश्न किया कि इस बात पर क्यों नहीं मामला उठाया गया, क्या सिर्फ़ इसलिए क्योंकि इस मामले में एक ईरानी ही दूसरे ईरानी को खामखा अदालत में घसीट रहा था न कि कोई अमेरिकी आदि। इस बात पर उन मोहतरमा से पहले तो कुछ कहते न बना, वे सोचती रहीं कि क्या कहा जाए, बोलने का प्रयास करतीं लेकिन ज़ुबान साथ न देती और आखिरकार वे बोलीं कि उनकी संस्था बहुत बड़ी नहीं है और उनके पास सिर्फ़ 6 जर्नलिस्ट, बोले तो पत्रकार, हैं और उनके पास सारी खबरें नहीं पहुँचती हैं और कदाचित् इसी कारण ये मामला अभी तक उनकी जानकारी में नहीं था!! 😉 😀
मेरे आगे वाली कुर्सी पर सम्मिट में भाग लेने वाली सबसे कम उम्र की दर्शक अपने पिता के साथ बैठी थी। तीन या चार वर्ष की यह बच्ची(और कदाचित् भावी ब्लॉगर) अपनी मम्मी को सामने मंच पर बोलते देखने के लिए आतुर थी और कभी अपनी रंगो की पुस्तक में रंग भर तो कभी बेसब्री से उचक कर खड़े हो किसी तरह समय व्यतीत कर रही थी। दिन के आखिरी सत्र में उसकी मम्मी, स्टेफानी हैनके (Stephanie Hankey), पैनल पर थीं और जैसे ही अपनी प्रेज़ेन्टेशन देने वे मंच पर आईं यह बच्ची खुशी से उठ खड़ी हुई। 🙂 उसको पूरे समय किसी से मतलब नहीं था, वह सिर्फ़ अपनी मम्मी की प्रतीक्षा कर रही थी, बचपन कितना मासूम होता है। 🙂 बाजू में बैठे उसके पिता की स्वीकृति लेकर उसकी फोटो ली और उनको फोटो कहाँ मिलेगी उसका पता लिखकर दे दिया ताकि वे भी फोटो की एक प्रति अपने पास रख लें।
आखिरकार पहले दिन का कार्यक्रम समाप्त हुआ, लगभग सभी ने चैन की सांस ली, मैंने भी ली!! 😀 इसके बाद बाहर निकले, आखिरकार एक प्याली काली कॉफी ले ही ली सुस्ती भगाने और तरोताज़ा होने के लिए। रेज़वान के साथ-२ ब्राज़ील से आए ग्लोबल वॉयसिस के एक अन्य लेखक से बातचीत हुई, वे काफ़ी समय बुर्कीनाफासो (Burkinafaso) में रहे हैं। इधर उधर कितने ही लोगों से बात हुई और फिर जब तकरीबन सवा सात बजे रात्रि भोजन के लिए नीचे जा रहे थे तो कराची से तशरीफ़ लाए डॉ. आवाब अलवी और साथ आई उनकी बेग़म तथा साहबज़ादे से परिचय हुआ और थोड़ी देर उन्हीं के पास खड़े हो नेहा और मैंने उनके साथ गप्पें मारी। बुडापेस्ट में दस दिन रहा और हिन्दी में बात करना बहुत ही कम हुआ। नेहा और अपर्णा से ही हिन्दी में बात होती थी, इसलिए उन कुछ मिनटों की हिन्दी में होती बातचीत में बड़ा सुकून मिलता था। यह भी एक कारण था कि डॉ. आवाब से बात कर और अच्छा लगा क्योंकि वहाँ मौजूद लोगों में नेहा और अपर्णा के अतिरिक्त एक वे ही थे जिनसे हिन्दी में बात हो सकती थी, इसलिए उनसे हिन्दी में ही बात करी!! 🙂
कुल मिलाकर सम्मिट का पहला दिन बहुत ही शानदार रहा, अपेक्षा से कुछ अधिक ही रहा और कई लोगों से मिलना हुआ, रोचक बातें हुई और शाम होते-२ दिमाग का दही हो गया। 🙂 फिर भी, अगले दिन की प्रतीक्षा थी और उससे कोई कम अपेक्षा नहीं थी। 😉
अगले भाग में जारी…..
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