शुक्रवार 20 जून की रात्रि बारह चालीस का विमान था और मंज़िल थी पूर्वी योरोपीय देश हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट। चार दिन की ग्लोबल वॉयसिस की सम्मिट थी, पाँच दिन का मेरा घूमने फिरने का कार्यक्रम, कुल मिलाकर दस दिन की बुडापेस्ट यात्रा। समय से काफी पहले मैं हवाई अड्डे पर पहुँच गया और सीधे एयर फ्रांस (Air France) के काऊँटर पर अपना टिकट दिखा के अपना सामान उनके हवाले किया और सीट के लिए अपनी पसंद बता के दिल्ली से पेरिस (Paris) और पेरिस से बुडापेस्ट (Budapest) के विमानों के बोर्डिन्ग पॉस (boarding pass) लिए। उसके बाद मुद्रा बदलवानी थी, हंगरी (Hungary) की मुद्रा नहीं थी इसलिए भारतीय रुपयों को यूरो (Euro) में बदलवाया। चूंकि मैं समय से काफी पहले आ गया था इसलिए इंतज़ार भी करना था, तो सोचा कि इमिग्रेशन (immigration) तथा सिक्योरिटी क्लियरेंस कर लिया जाए। अपना केबिन लगेज (luggage) उठा अपन भी लग गए इमिग्रेशन की लंबी कतार में। तकरीबन 40 मिनट खड़े रहने और आधी पंक्ति आगे आ जाने के बाद देखा कि मैंने इमिग्रेशन का फॉर्म तो भरा ही नहीं, फोन कर इस बारे में आशीष से पूछा (यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी इसलिए उससे सलाह ली थी हर चीज़ की) तो उसने कहा कि मुझे भी भरना होगा। मन में कैसी भावना आई यह शब्दों में बयान करना कठिन है, इतनी देर कतार में खड़े रहने के बाद जगह छोड़नी होगी तथा पुनः कतार में लगना होगा!! 🙁 परन्तु अन्य कोई रास्ता भी न था, कतार छोड़ वापस आया और फॉर्म लेकर भरा। इस बीच कतार जल्दी ही आगे खिसक गई थी, यदि फॉर्म पहले भरा होता तो अब तक अपना नंबर भी आ गया होता।
बहरहाल, फॉर्म भर मैं वापस कतार में लगा, कतार बहुत धीरे-२ खिसक रही थी। खैर किसी तरह अपना नंबर आया, इमिग्रेशन का फॉर्म दिया और उसके बाद सुरक्षा जाँच के लिए आगे बढ़ गया। सुरक्षा जाँच भी आराम से निपट गई जल्दी ही, तो उसके बाद जिस द्वार पर मेरे वाले विमान को लगना था उसके सामने की सीटों में से एक पर विराजमान हुए, तकरीबन चालीस मिनट बाकी थे तो मोबाइल पर इंटरनेट चला ब्लॉग पढ़ समय व्यतीत किया। आखिरकार द्वार खुले और एक लोहे की सुरंग में से होते हुए अपन विमान तक पहुँचे जहाँ एयर फ्रांस की एक सुन्दर एयरहोस्टेस (Air Hostess) ने स्वागत किया। 🙂 विमान में अंदर पहुँच अपनी सीट देखी कौन सी है और उस पर पसर गए! अंदर से विमान ठीक किसी बढ़िया ट्रेन की कुर्सी कार माफ़िक लगा, लोग बाग़ भी ऐसे ही थे, लगभग सभी भारतीय थे और आइल (aisle) सीटों पर बैठे अन्य यात्रियों पर अपना सामान मारते हुए चल रहे थे, मेरी भी आइल सीट थी!! 🙁
साभार Cubbie_n_Vegas
ग्यारह घंटे की दिल्ली से पेरिस की उड़ान थी, कब शुरु होगी और कब खत्म होगी। नियत समय से भी समय ऊपर हो गया था और मैं सोच रहा था कि कब विमान खिसकेगा। बस इतना सोचना था कि विमान थोड़ा सा खिसका, बोर्डिंग बंद हो गई थी, लेकिन गेट से हट के विमान पुनः खड़ा हो गया। यह तो बढ़िया बात थी कि मेरे बाजू में एक ही सीट थी, यदि बीच वाले भाग में मिल जाती जहाँ 4-5 सीटें एक साथ थी तो गड़बड़ हो जाती। मैंने अपने बगल वाली सीट की खिड़की से बाहर देखा तो सामने ही ऑस्ट्रिअन एयर (Austrian Air) का विमान दिखा जिसकी बोर्डिंग चल रही थी, कदाचित् वियना (Vienna) जाने वाला विमान था, पहले मेरा इरादा भी उसी में जाने का था लेकिन अंत-पंत एयर फ्रांस की टिकट ली। ऑस्ट्रिअन एयर के विमान के पीछे एक स्विस एयर (Swiss Air) का विमान दिखा और उसके पीछे एक एयर इंडिया (Air India) के विमान की पूँछ दिखी। अपने आगे वाली सीट के पीछे लगी जेब में से विमान का ब्रोशर (brochure) और सुरक्षा निर्देश निकाल पढ़े तो जाना कि अपना एयर फ्रांस का विमान एयरबस (Airbus) 340-300 है। खिड़की से चेहरा मोड़ वापस अपने केबिन में नज़र डाली तो एक और सुन्दर एयर होस्टेस बाजू से निकल गई!! 😉
मेरे बगल में बैठे भारतीय युवक से बातें हुई तो पता चला कि वह गुड़गाँव का रहने वाला है और बार्सीलोना (Barcelona) जा रहा है जहाँ के विश्वविद्यालय में वह कंप्यूटर ऑर्कीटेक्चर (Computer Architecture) में डॉक्टरेट कर रहा है। सुनकर अपन प्रभावित हुए और उससे इधर-उधर की बातें हुई, वह भी यह जान प्रसन्न हुआ कि अपन सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं। बात चली तो उससे जानना हुआ कि जिस विश्वविद्यालय से वह डॉक्टरेट कर रहा है उसका कंप्यूटर विभाग दुनिया के शीर्ष कंप्यूटर शिक्षा विभागों में से एक है, यह बात मुझे पता नहीं थी इसलिए ज्ञानवर्धन हुआ। 🙂
आखिरकार विमान हिला और हवाई पट्टी की ओर जाने लगा। कुछ दूरी पर केएलएम (KLM) के एक विमान को भी हिलते देखा, कदाचित् वह भी उड़ान भरने वाला था। मैंने अपना मोबाइल फोन बंद करने से पहले ऑफिस द्वारा दिया गया अंतर्राष्ट्रीय सिम कार्ड मोबाइल में डाला और अपने वाला निकाल के अलग रख लिया। हवाई पट्टी पर पहुँच विमान पुनः रुक गया, कदाचित् सिग्नल नहीं मिला था उड़ान के लिए, जेट इंजन चालू हो चुके थे और बहुत शोर हो रहा था तथा साथ ही जेट इंजनों का कंपन भी महसूस हो रहा था। कुछ मिनट बाद सिग्नल मिला, विमान चल पड़ा, गति पल प्रति पल तेज़ होती गई, एक हल्का सा झटका लगा और धरती काफ़ी नीचे छूट गई; मेरी पहली विमान यात्रा आरंभ हुई!! 🙂
उड़ान के कुछ ही मिनट बाद ड्रिंक्स सर्व हुई, मैंने थोड़ा सा सादा सोडा लिया जिसको ये लोग स्पार्कलिंग वॉटर (sparkling water) कहते हैं। उसके बाद रात्रि भोजन परोसा गया, मैंने मायूस न होने के लिए भारतीय खाने की जगह फ्रेन्च खाना लिया और मेरे बगल में बैठे बार्सीलोना जाने वाले सहयात्री ने भारतीय खाना लिया। मेरा अंदाज़ा सही निकला, फ्रेन्च खाना ठीक ठाक था लेकिन बगल वाले सहयात्री को अपने खाने से बहुत मायूसी हुई!! 😉 शायद दिन भर के ऑफिस के काम की थकान थी या विमान का असर था, नींद आने लगी तो सीट पर थोड़ा और पसर गया, एक एयर होस्टेस द्वारा कुछ समय पहले दिए गए पैकेट में से इयर फोन (ear phone) निकाले और अपनी टीवी स्क्रीन पर उपलब्ध संगीत में से शांत वाद्य (instrumental) संगीत चुन मैं आँख बंद कर सो गया। मधुर संगीत कान में बज रहा था, विमान वालों द्वारा उपलब्ध कराया गया चादर जैसा कंबल गर्म था, आराम से नींद आ गई। पता नहीं कब आँख खुली, कानों में से इयर फोन निकाल सामने मौजूद सीट की जेब में डाल दिए और स्क्रीन पर नक्शा खोला यह देखने के लिए कि कहाँ तक पहुँचे। नक्शे पर देख जाना कि विमान समुद्र की सतह से लगभग चालीस हज़ार फीट की ऊँचाई पर तुर्की के आसपास कहीं उड़ रहा था, अभी आधा रास्ता ही हुआ है यह देख पुनः सो गया।
जब उठा तो दिन का उजाला खिड़की से अंदर आ रहा था, और मैं अपने को बहुत तरोताज़ा महसूस कर रहा था। लगभग आधे घंटे बाद सुबह का नाश्ता परोसा गया। उसके बाद पेरिस आने में अधिक समय नहीं लगा और शीघ्र ही विमान फ्रांस (France) की राजधानी पेरिस (Paris) के चार्ल्स डी गॉल (Charles de Gaulle) हवाई अड्डे पर उतर गया। विमान टर्मिनल में सीधे नहीं लगा था इसलिए यात्रियों को विमान से टर्मिनल तक ले जाने के लिए तीन बस आईं थी। पेरिस की सुबह बहुत ही सुहावनी लग रही थी, आकाश एकदम स्वच्छ और नीला था, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो रात को बरसात हुई हो। बस में सवार हो निश्चित टर्मिनल पर पहुँचा जहाँ से मुझे बुडापेस्ट के लिए विमान लेना था, लेकिन कौन से द्वार पर विमान लगेगा यह तो वहाँ मौजूद जानकारी देने वाली स्क्रीनों को देख के ही जाना जा सकता था। एक…दो…तीन…चार…. हद हो गई, एक के बाद एक चार स्क्रीन दिखी और सब बंद!! 😡 आखिरकार एक स्क्रीन दिखी जो चालू थी और उस पर अपने विमान का द्वार नंबर देखा लेकिन वह द्वार ढूँढने में पुनः दिक्कत हुई!! वाहियात बात यह कि हवाई अड्डे के काउंटरों पर मौजूद कर्मचारियों की अंग्रेज़ी बहुत दुखी थी, आधे से अधिक शब्द वो फ्रेन्च के बोल देते और मैं मूर्खों की तरह उनका मुँह ताकता रह जाता!! सबका यही हाल था और मैं मन ही मन अंग्रेज़ों और फ्रेन्च की सदियों पुरानी दुश्मनी को गालियाँ दे रहा था। 😡 एक व्यक्ति जिसकी अंग्रेज़ी ठीक मिली वह थी ब्रिटिश एयरवेज़ (British Airways) के काउंटर पर बैठी एक ब्रिटिश महिला, लेकिन उन्होंने अफ़सोस जताते हुए कहा कि उनको नहीं पता वह द्वार कहाँ है जो मैं खोज रहा हूँ!!
खैर, अपन भटकते-२ किसी तरह पहुँच गए द्वार पर, वहाँ दो महिला कर्मचारी मौजूद थीं और शुक्र की बात कि उनको अंग्रेज़ी आती थी!! बकौल उनके विमान की बोर्डिंग में एक घंटा था तो मैं पास ही एक बेन्च पर बैठ गया और यात्रा संस्मरण लिखने के लिए मोबाइल पर नोट्स लिखने लगा। आधे से अधिक यह सफ़रनामा इसी तरह लिखे नोट्स पर आधारित है। अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि लट्ठमार पंजाबी सुनाई दी, सिर उठाकर देखा तो उसको बोलने वाली एक बुज़ुर्ग सिख महिला अपने पतिदेव के साथ दिखीं। उस समय मानों वह पंजाबी के शब्द कानों में शहद की भांति पड़े, गिटपिट फ्रेन्च और अंग्रेज़ी से अलग अपने देश की भाषा जो अपने को समझ भी आती है!! 🙂
सुरक्षा जाँच के लिए द्वार खुला तो अपन भी पहुँच गए, जूते आदि उतार सब जाँच करवाई, बस कपड़े नहीं उतरवाए यही गनीमत थी!! उसके बाद थोड़ी और प्रतीक्षा और बोर्डिंग के लिए द्वार खुल गए। द्वार पर दिल्ली में एयर फ्रांस द्वारा जारी किया गया बोर्डिन्ग पॉस फाड़ दिया गया और उसकी जगह नया बोर्डिन्ग पॉस दिया गया, क्योंकि विमान मालेव हंगरिअन एयरलाइन्स (Malév Hungarian Airlines) का था जिसकी एक पार्टनर एयर फ्रांस है। इस बार सुरंग में नहीं जाना हुआ, सीढ़ियाँ उतर नीचे पहुँचे और विमान तक पैदल मार्च। विमान एक छोटा और खटारा बोइंग (Boeing) था, समझ आ रहा था कि जब फ्रेन्च अपनी एयरबस को अमेरिकी बोइंग से बेहतर बताते हैं तो कोई कारण है ऐसा बताने का!! 😉 सीट इस बार भी मेरी विमान के पंख के ऊपर आइल वाली थी, लेकिन इस बार मेरे बगल में लगभग तीस बरस की एक सुन्दर महिला बैठी थी जो कि बुडापेस्ट होते हुए इस्तानबुल (Istanbul) जा रही थी, बेचारी थकी सी लग रही थी और विमान में बैठते ही सो गई। इस वाले विमान का पॉयलट बहुत ही वाहियात था, विमान चालक कम और काऊब्वॉय (cowboy) अधिक प्रतीत हो रहा था और बहुत ही वाहियात तरीके से उड़ा रहा था, लेकिन तकरीबन पौने दो घंटे बाद बुडापेस्ट में उसकी लैन्डिंग एकदम मक्खन जैसी थी, विश्वास नहीं आया कि सारे रास्ते यह घटिया तरीके से उड़ाते हुए आया और इतनी शानदार लैन्डिंग करी!!
तो आखिरकार बुडापेस्ट अपन पहुँच गए, टर्मिनल में जाकर अपने सामान की प्रतीक्षा करने लगा। मन ही मन सोच रहा था कि यदि सामान गुम हो गया तो बहुत बड़ा लफ़ड़ा हो जाएगा!! जी हाँ यहाँ भी सामान गुम हो जाता है, जर्मन विमान सेवा लुफ़्थान्सा (Lufthansa) को इस कार्य में महारत हासिल है ऐसा मैंने बहुत लोगों से सुना है। लेकिन मेरा सूटकेस गुम नहीं हुआ यह देख मुझे चैन मिला। सामान लेकर मैं बाहर की ओर आया तो अपने ड्राइवर को कहीं नहीं पाया जिसको होटल वालों ने भेजा हो, बंदा लेट था, तो इतने में मैंने 48 घंटे का एक बुडापेस्ट कार्ड ले लिया जिसका भुगतान यूरो में किया क्योंकि मुद्रा नहीं बदलवाई थी, वहाँ मौजूद एकलौते मुद्रा बदलने वाले ओटीपी बैंक (OTP Bank) का भाव अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन यूरो से फोरिन्ट में पर्यटन काउंटर वाले ने कराया और बाकी की रक़म मुझे फोरिन्ट में वापस करी। उसी हंगरिअन पर्यटन के काउंटर से फोकट में मिल रहे दो बड़े नक्शे और बुडापेस्ट पर छपी पुस्तिकाएँ ली। इतने में ही उसी समय आकर खड़ा हुआ एक बंदा दिखा जिसके हाथ में मेरे नाम का बड़ा सा कागज़ था, जाकर उससे बात की और फिर बाहर खड़ी उसकी गाड़ी में सामान लाद अपन निकल पड़े बुडापेस्ट शहर की ओर, अपना ठिकाना पेस्ट वाला भाग था!!
अगले भाग में जारी …..
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