हर किसी के सब्र की एक सीमा होती है, जब वह सीमा पार हो जाती है तो व्यक्ति झल्ला जाता है। समीर जी ने भी वर्ड वेरिफिकेशन (word verification) यानि कि कैप्चा (captcha) से पीड़ित हो अपनी झल्लाहट निकाल ही दी। 😉
वास्तव में कैप्चा यानि कि वर्ड वेरिफिकेशन का प्रयोग इसलिए होने लगा क्योंकि अवांछनीय माल, जिसे स्पैम भी कहा जाता है, की सप्लाई स्वचालित कंप्यूटर प्रोग्रामों (automated computer programs) द्वारा बहुत अधिक बढ़ गई थी। अब समीर जी ने तो सुझाव दिया है कि भई मॉडरेशन लगा लो, काहे लोगों को ऊलजलूल अक्षर पढ़ने/लिखने को कहते हो, परन्तु यह सुझाव सिर्फ़ कम ट्रैफिक वाले ब्लॉग के लिए ही कारगर है। क्यों? वह इसलिए कि यदि आपके ब्लॉग पर रोज़ की 100-200 स्पैम टिप्पणियाँ आती हैं तो दिन का अच्छा खासा समय आप वायग्रा और अन्य दवाओं की टिप्पणी पढ़ने और उनमें से प्रकाशनीय टिप्पणियाँ छाँटने में ही लगा देंगे। फिर अपने ब्लॉग पर लिखेंगे कब और दूसरे ब्लॉग पढ़ेंगे कब? यह मैं अपने निजी अनुभव से कह रहा हूँ क्योंकि ऐसी स्थिति मैं लगभग चार वर्ष पूर्व भुगत चुका हूँ जब अपने ब्लॉग पर मैं मॉडरेशन लगाए हुए था। ऐसा नहीं है कि वर्ड वेरिफिकेशन ही एकमात्र उपाय है परन्तु यह उपाय लगाने में सरल है और इसकी सफलता की दर ऊँची है।
परन्तु सरल कैप्चा अथवा वर्ड वेरिफिकेशन लगाने की जगह वेबसाइटें कठिन वर्ड वेरिफिकेशन काहे लगाती हैं? इसका उत्तर है तकनीक का दिन-प्रतिदिन विकसित होना। स्पैमर लल्लू लोग नहीं होते, वे नई-२ तकनीक निकालते रहते हैं इस तरह के स्पैम रोकू उपायों को धराशायी करने के लिए। कुछ समय हुआ जब स्पैमरों ने अपने स्पैम सॉफ़्टवेयरों को इतना उन्नत कर लिया कि अभी तक अविजीत वर्ड वेरिफिकेशन का वे तीया पाँच कर गए। तो इससे निपटने के लिए वर्ड वेरिफिकेशन वाली इमेज सरल से कठिन हो गई ताकि स्पैमरों के सॉफ़्टवेयर उनको भेद न सकें और इसी के चलते आप और मुझ जैसे शरीफ़ लोगों की समस्याएँ बढ़ गई!! 🙁
तो आईये नज़र मारते हैं कैप्चा के कुछ प्रकारों पर जो आजकल प्रयोग होते हैं। निम्न तरह की वर्ड वेरिफिकेशन तो आसान होती है:
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लेकिन ये वाली तो माशा-अल्लाह कुछ सिर घुमाऊ ही होती हैं:
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परन्तु यदि वर्ड वेरिफिकेशन ऐसा हो तो क्या करेंगे?
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उसको खैर छोड़िए, कुछ लोग अधिक ही सनक जाते हैं और अलग तरह की कैप्चा लाते हैं, जैसे कि यह:
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यहाँ तक तो फिर भी सही है, लेकिन इसका क्या करें??!!
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इसको देख तो सचमुच ही दिमाग का प्रोसेसर (processor) पनाह माँग जाता है!! इस तरह के प्रश्न स्कूल और कॉलेज में वैसे ही रो-धो के किए हैं लेकिन ये तो पुराने पीपल के भूत की तरह पीछे पड़े हैं, यहाँ भी आ गए, अब भी ज़िन्दगी में चैन नहीं लेने देते!! 😡
इसलिए मैं तो यही कहूँगा समीर जी से कि वे तो सस्ते में ही छूटे हैं, साड्डा गम देखिए अपना गम राई समान लगेगा!! 🙂
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