….. और भारत के प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी आज़ादी के लिए हथियार उठा लेने चाहिए!! ( ठीक बॉलीवुड फिल्मी इश्टाईल )
क्यों, क्या आप इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं? रख भी सकते हैं, भारत में किसी विचार से इत्तेफ़ाक रखने पर पाबंदी नहीं है (कुछ तरह के इत्तेफ़ाकों को अंजाम देने पर अवश्य है)!!
पर अरुणधती राय (Arundhati Roy) तो इस बात से पूरे का पूरा इत्तेफ़ाक रखती है। इत्तेफ़ाक की क्या बात है, वह तो इस बात को बढ़ चढ़कर कहने फिरने वाली महिला है। माफ़ कीजिए यदि बुकर पुरस्कार विजेता अरुणधती राय के लिए सम्मान न ऊबर रहा हो, जिन लोगों का मैं सम्मान नहीं करता उनके लिए सम्मानजनक संबोधन निकालना ज़रा कठिन कार्य हो जाता है और ऐसे कठिन कार्य को करने के मूड में मैं फिलहाल नहीं हूँ!! यदि आप इन मोहतरमा के बारे में नहीं जानते हैं तो थोड़ा जानिए। इन मोहतरमा को तुक्के से इनके एक उपन्यास, द गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स (The God of Small Things), के लिए बुकर पुरस्कार मिला सन् 1997 में। उसके बाद से आज तक ग्यारह वर्षों में कोई अन्य तोप न चला पाने के कारण इन्होंने चर्चा में रहने का एक कारगर तरीका अपनाया है, खामखा के विवादों को खड़ा करना और भड़काना, (नेताओं द्वारा) जाँची परखी हिन्दू-मुस्लिम की गंदी राजनीति के गटर के बदबूदार पानी को हर जगह फैलाना।
अभी परसों ही इन मोहतरमा का ब्रिटिश समाचारपत्र गार्जियन (Guardian) की वेबसाइट पर एक लेख छपा। लेख को उपन्यास बनाने में इन मदाम ने कोई कसर न छोड़ी। पूरा झेलाऊ लेख पढ़ने के बाद भी मुझे बात कुछ समझ नहीं आई कि बन्दी आखिर कहना क्या चाह रही है और यह कौन सी दुनिया में रहती है??!! अपनी फैन्टसी (fantasies) और कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ (conspiracy theories) को मदाम वास्तविक जीवन के जाल में बुना हुआ समझ रही हैं, किसी और ही पैरेलल (parallel) पर जी रही हैं या किसी सॉयकायटरिस्ट (psychiatrist) की तलबगार हैं??!! मदाम का कहना है कि मुम्बई के हमले के बाद खामखा ही पाकिस्तान की ओर ऊँगली उठाई जा रही है, तथा मदाम के अनुसार लश्कर-ए-तैय्यबा के संस्थापक हाफ़िज़ सईद की सोच और सन् 1944 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख बने माधव सदाशिव गोलवलकर की सोच में कोई अंतर नहीं है, दोनों व्यक्तियों की सोच एक ही है जो आज भी उनके आतंकवादियों को ब्रेनवाश कर सिखाई जा रही है। उनके अनुसार भारत में आतंकवाद के बीज को गोलवलकर ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही बो दिया था और वही आगे चलकर अन्य हिन्दू नेताओं ने सींचा और मुसलमानों का जीना हराम किया। और बहुत ही सहूलियत से अरुणधती राय उस काल को इग्नोर (ignore) कर देती है जो कि दो सौ वर्ष का ब्रिटिश शासन काल था जिसमें किसी भारतीय की औकात नाली के कीड़े से अधिक नहीं थी यदि वह ब्रिटिश हुक्मरानों के तलुवे चाटने वाला कुत्ता नहीं था!! तो अंग्रेज़ों को वे भला बुरा नहीं कहती। या कदाचित् कह डालती हैं क्योंकि कमबख्त अंग्रेज़ों ने ही तो भारत-पाकिस्तान विभाजन किया था!! और आश्चर्य की बात है कि अपना यह कचरा बेचने अरुणधती राय एक ब्रिटिश अखबार के पास ही गई!! और बड़ी ही सहूलियत के साथ अरुणधती राय ब्रिटिश काल के पहले का काल भी भूल जाती हैं जो कि मुसलमान तानाशाहों का शताब्दियों का काल रहा है??
कोई भी समझदार व्यक्ति कह सकता है कि अब सौ से अधिक वर्षों पुरानी बातों का मौजूदा परिपेक्ष में कोई औचित्य नहीं है और मैं इस बात से सहमत भी हूँ लेकिन मैं यही कहना चाहूँगा – इफ़ यू डोन्ट वांट शिट टू बी स्मीयर्ड ऑन युअर फेस देन डोन्ट बी द वन टू डिग इट आऊट (If you don’t want shit to be smeared on your face then don’t be the one to dig it out)!! खैर, तो आज़ादी के बाद के समय से आगे बढ़ते हैं, समय काल 1965 और 1971 के युद्ध तो अरुणधती राय को याद न होंगे क्योंकि वे इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान ने भारत पर जबरन थोपे थे। उसके बाद अरुणधती राय 1992 की बाबरी मस्जिद के किस्से को ले आती है और फिर गुजरात के दंगों और उसमे हुए मुसलमानों के कत्ल-ए-आम का ज़िक्र करते हुए हिन्दुओं को फासिस्ट (fascist) कहती है और आगे कहती है कि इसी कारण छोटा सा मुस्लिम समुदाय भारत में सहम के रहता है क्योंकि उसको यहाँ अपना भविष्य नज़र नहीं आता।
लेकिन अभी बस नहीं हुआ है। अरुणधती राय के अनुसार अक्तूबर में दिल्ली के बाटला हाऊस में दिल्ली पुलिस की आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ एक ड्रामा थी। यानि कि अरुणधती राय साथ ही यह भी कहना चाह रही है कि उस मुठभेड़ में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या स्वयं उन्हीं के साथियों ने कर दी या फिर इंस्पेक्टर शर्मा पागल थे जिन्होंने स्वयं ही अपने को गोली मार ली क्योंकि मारे गए व्यक्ति तो आतंकवादी न होकर मासूम विद्यार्थी थे और एके47 राईफ़ल वे या तो मौज मजे के लिए लेकर बैठे थे या फिर उनको दिल्ली पुलिस ने ही वहाँ सैट किया!! 🙄 और अरुणधती राय के अनुसार कदाचित् मुम्बई का हमला भी एक नौटंकी थी जिसका असली मकसद पाकिस्तान को खामखा लपेटना और एटीएस मुम्बई के चीफ़ हेमंत करकरे को मारना था ताकि वे मालेगाँव वाले मामले में गिरफ़्तार प्रज्ञा सिंह को दोषी न साबित कर पाए!! वाह-२, अरुणधती राय का दिमाग कैसे वास्तविक जीवन में फैन्टसी और कॉन्सपिरेसी थ्योरीज़ को बुनता है!! अरुणधती राय के अनुसार इस तरह सरकारी अफ़सरों का कत्ल करवाना और मुम्बई आदि जैसी नौटंकियाँ स्टेज करना दुनिया भर में सरकारों और रसूख वाले लोगों के लिए आम बात है!! बोले तो वास्तविक जीवन न हुआ कोई थ्रिलर उपन्यास हो गया!! 🙄
आम बात है कि अरुणधती राय का कश्मीर मसले पर कहना है कि कश्मीरियों को भारत से आज़ादी चाहिए, भारत को कश्मीर आज़ाद कर देना चाहिए!! अरुणधती राय को अमरनाथ यात्रा और जम्मू में वैष्णों देवी की यात्रा पर जाने वाले हिन्दुओं से भी खासी दिक्कत लगती है कि इतने लोग क्यों जाते हैं। गोया अब अरुणधती राय से पूछना पड़ेगा कि कितने हिन्दुओं को अपने ही देश में अपने धार्मिक स्थलों पर जाना चाहिए और कितनों को नहीं!! भई आखिरकार अरुणधती राय पाकिस्तान और कश्मीर को अलग करने का प्रयास कर रहे देशद्रोहियों का स्वयं घोषित भोंपू हैं, जब भी बजेगी उनके लिए ही बजेगी!! कोई ज़रा इनसे पूछे कि कश्मीर कोई आज़ाद मुल्क था जिसको भारत ने जबरन कब्ज़ाया हुआ है?? एक पल को मान भी लिया जाए कि ऐसा है तो अरुणधती राय पाकिस्तान से उसके द्वारा कब्ज़ाया कश्मीर का हिस्सा तो नहीं माँगती नज़र आई कभी!! और उस हिस्से का क्या जो चीन के कब्ज़े में है, जिसे पाकिस्तान ने माल-ए-मुफ़्त दिल-ए-बेरहम समझते हुए चीन को तोहफ़े में दे दिया था??
अरुणधती राय से पूछा जाना चाहिए कि कश्मीर आज़ाद हो गया तो उसके बाद वह भारत के किस हिस्से को आज़ाद कराने के लिए मुहीम छेड़ेगी?? 🙄
अरुणधती राय का गुजरात में कत्ल हुए मुसलमानों के लिए दिल दुखता है और वह कश्मीर के लिए आज़ादी चाहती है। इस आला दिमाग औरत से कोई पूछे कि इसने क्या कभी कश्मीरी हिन्दुओं, खासतौर से कश्मीरी पंडितों के बारे में सुना है?? वे कश्मीरी हिन्दू जो कि हज़ारों वर्षों से कश्मीर की वादियों में रहते आए हैं, उस समय से जब इस्लाम का कोई वजूद ही नहीं था!! हिन्दुओं को फासिस्ट (fascist) कहने वाली अरुणधती राय को क्या कश्मीरी हिन्दुओं का आतंकवादियों द्वारा कत्ल-ए-आम और घरों से बेघर तथा निर्वासित हुए कश्मीरी हिन्दू नज़र नहीं आते? सन् 1989 से चार लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दू निर्वासित हुए और अपने ही देश में रिफ्यूजी बने!! क्या इस औरत को इस सबके बारे में नहीं पता? यदि नहीं पता तो लानत है, खामखा इतनी आलिम फाजिल बनती है और ऊँचे बोल बोलती है। और यदि पता है तो फिर कुछ कहने का क्या लाभ, क्या इसी से दोगलापन साबित नहीं हो जाता?? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 64 वर्ष पूर्व प्रमुख बने गोलवलकर को हिटलर की भांति फासिस्ट बताने वाली कश्मीरी हिन्दुओं के साथ हुए बर्ताव को क्या कहेगी??
अरुणधती राय के अनुसार गुजरात दंगो आदि के बाद से मुस्लिम समुदाय का हिन्दुओं से सहम जाना और डरना और आतंकवादी वार्दातें करना उचित है लेकिन कश्मीर में हुए कत्ल-ए-आम और आतंकवादी वार्दातों के कारण मुस्लिम समुदाय को शक की निगाह से देखना और आतंकवादी समझना सर्वथा अनुचित है!!
अब मैं यह मत नहीं रखता हूँ कि गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ़ जो हुआ वह अच्छा हुआ लेकिन मैं यह भी नहीं समझता कि जो कश्मीर में हुआ वह अच्छा हुआ। दामन किसी का पाक साफ़ नहीं है तो फिर दोष यहाँ एक का क्यों गिनाया जा रहा है?? क्या आतंकवादी किसी को पूछ के मारते हैं कि मरने वाला हिन्दू है कि मुसलमान? क्या मुम्बई में मुसलमान नहीं मरे या हिन्दू नहीं मरे? क्या नैशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (NSG) के कमांडो किसी धर्म समुदाय के लोगों को बचाने के लिए मुम्बई गए थे? कदाचित् मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को उनका धर्म पूछ के मारा गया था!! 🙄
मैं यह भी नहीं कह रहा कि पूरा मुस्लिम समुदाय आतंकवादी है और उनको शक की निगाह से देखना चाहिए लेकिन मैं यह भी कह रहा हूँ कि हर हिन्दू कातिल नहीं है। मैं यहाँ सिर्फ़ अरुणधती राय के कथनों का अर्थ निकालने का प्रयास कर रहा हूँ!!
अरुणधती राय के गार्जियन (Guardian) पर लिखे इस कचरे नुमा लेख में सबसे मज़ेदार बात लेख के अंत में आई। हुआ यूँ कि बाटला हाऊस में हुई मुठभेड़ के बाद के समय में अरुणधती राय के पुलिस को निर्दोषों का एनकाऊन्टर करने के लिए कोसने के वाकये पर टाईम्स नाओ (Times Now) न्यूज़ चैनल के अरनब गोस्वामी ने एक बार ऑन एयर कह दिया – “अरुणधती राय और प्रशान्त भूषण, मैं आशा करता हूँ कि तुम यह टेलीकास्ट देख रहे हो। हमें लगता है कि तुम घृणित हो।” (Arundhati Roy and Prashant Bhushan, I hope you are watching this. We think you are disgusting.)!! यह बात कदाचित् अरुणधती राय दिल पर ले गई और इसलिए गार्जियन (Guardian) में छपे अपने लेख के अंत में अपनी खीज निकालते हुए अरुणधती राय ने लिखा कि टाईम्स नाओ टेलीविज़न ने अब कदाचित् लोगों को सरेआम बेइज़्ज़त करना शुरु कर दिया है और एक टीवी एंकर के लिए मौजूदा एलेक्ट्रिक माहौल में ऐसा करना किसी भड़काऊ काम और धमकी से कम नहीं है और किसी अन्य स्थिति में ऐसा करने पर किसी भी पत्रकार की नौकरी चली जाती। लो कर लो बात, खुद मदाम अरुणधती राय तो फासिस्ट आदि जैसे फैन्सी शब्द लोगों के नाम के साथ सरेआम जोड़ती फिरती हैं लेकिन कोई उनको घृणित कह देता है तो मदाम को मिर्ची लग गई कि ऐसा कैसे हो गया क्योंकि लोगों को ऑन रिकॉर्ड भला बुरा कहना और बेइज़्ज़त करना तो मदाम अरुणधती राय का एक्सक्लूसिव अधिकार है!! 🙄 अब ऐसे में तो हम मदाम अरुणधती राय को यही कहेंगे – व्हाट गोज़ अराऊंड कम्स अराऊंड (What goes around comes around)!!
एक बात अरुणधती राय के लेख में यह भी देखी कि यह महिला समाज के ऊँचे तबके से अपनी घृणा को छुपाती नहीं है और लेख में भी छुपाई नहीं। और दिलचस्प बात यह है कि बुकर पुरस्कार मिलने और ख्याति पाने से पूर्व यही अरुणधती राय अपनी रोज़ी रोटी के लिए कई तरह के काम करती थी जिसमें से एक दिल्ली के पाँच सितारा होटलों में उसी (घृणित) रईस तबके को ऐरोबिक्स सिखाना था!! 😉 इंटरनेट के कितने लाभ हैं, किसी का भी आगा पीछा हाल पता करना कितना आसान है!!
वैसे एक बड़े आश्चर्य की बात यह भी है कि भारतीयों के खिलाफ़ इतना ज़हर उगलने वाली यह महिला रहती भारत में ही है और ऑफिशियली भारतीय नागरिक है। और यह एक लानती बात है कि राष्ट्रद्रोही हरकतों के बावजूद इस महिला को अभी तक राष्ट्रद्रोह के जुर्म में गिरफ़्तार नहीं किया गया है!! कुछ लोगों ने मुम्बई कांड के बाद इसकी बकवास पढ़/सुन के इसको गिरफ़्तार कर सज़ा दिलाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को संबोधित एक प्रार्थना पत्र लिखा है जिस पर अब तक तीन सौ से अधिक लोगों ने दस्तखत किए हैं।
मैं तो बस इतना ही कहना चाहूँगा कि अरुणधती राय के विकृत विचार जान मन कसैला हो गया। जयचन्दों की तो देश में कमी है ही नहीं, ऐसे राष्ट्रद्रोही और समाजद्रोही लोग भी हमारे बीच हैं और न केवल बीच हैं वरन् अपनी रोटियाँ सेंकने के लिए लगातार ज़हर उगल रहे हैं और समाज में दरार डाल रहे हैं!! मेरे विचार में तो इस महिला की भारतीय नागरिकता रद्द कर बिना किसी साजो सामान के एक नाव में अकेले हिन्द महासागर में अंतर्राष्ट्रीय पानी में छोड़ देना चाहिए ताकि यह इसके अनुसार घृणित भारत की नागरिक भी न रहे और कहीं भी जाने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र। बिना पासपोर्ट और कागज़ात के कहीं और आश्रय मिले या न मिले कदाचित् चहेते पाकिस्तान में तो आश्रय मिल ही जाएगा।
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