कई जगह पढ़ा है और कई लोगों ने बताया है कि यदि आपका माल चोरी होता है तो इसका अर्थ है कि वह अच्छा है क्योंकि घटिया चीज़ को कोई क्यों चुराएगा!! भूतकाल में मेरी फोटुओं की चोरी ने इस बात की ओर तो मेरा ध्यान कर ही दिया कि मैं ठीक-ठाक फोटो लेता हूँ तभी किसी ने चोरी के लायक समझा। अब जब मेरी पोस्ट भी चोरी हो गई तो पता चलता है कि अपन लिखते भी ठीक-ठाक ही हैं तभी किसी ने चोरी की। पिछले वर्ष 2007 में 13 मार्च को मैंने एक पोस्ट छापी थी, समाज के सर्वज्ञ, जिसको कि अजमेरा इंस्टीट्यूट ऑफ़ मीडिया स्टडीज़ नाम के ब्लॉग पर चोरी करके यहाँ छापा गया है।
चोरी करने वाला भी कोई ऐरा गैरा नहीं है। चोरी करने वाले साहब अपने को रवि बहार कहते हैं और पेशे से अपने को कॉलेज अध्यापक, पत्रकार और लेखक बताते हैं, यानि कि ऊँचे दर्जे के चोर हैं। 🙄
जब एक अध्यापक जो कि पत्रकार भी हो और लेखक भी तथा वह आपका माल चोरी करे तो आपका सीना गर्व से नहीं फूलेगा? मेरा सीना गर्व से तो नहीं फूला खैर लेकिन तरस अवश्य आया इन साहब पर। लगता है कि ये लेखक चोरी करके ही बने हैं, दूसरों की रचनाओं को बिना अनुमति के चुरा कर अपने नाम से छापने वाले लेखक हैं!! 🙄 और अपने विद्यार्थियों को क्या पढ़ाते होंगे? शायद दूसरों का माल कैसे चोरी किया जाता है और उसको कैसे अपने नाम से आगे बेचा जाता है!! तौबा…..!!
आप भी देख लें कि इस हाई-फाई चोर लेखक ने कहीं आपकी पोस्ट आदि भी तो नहीं चुरा ली!!
अपडेट (2008-02-04): अभी देखने पर पता चला है कि इन साहब ने अपने उक्त ब्लॉग पर चोरी कर छापी गई मेरी पोस्ट तो हटा ही दी है और साथ ही उस ब्लॉग पर से तमाम अन्य पोस्ट भी हटा दी हैं।
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