ऐसे ही पिछले वर्ष छुट्टियों पर दिल्ली से बाहर की गई घुम्मकड़ी के दौरान ली गई तस्वीरें देख रहा था कि फरवरी में ली गई खजुराहो की तस्वीरें दिखाई दीं। एकाएक ही मन जैसे उन पूर्व-मध्यकालीन मंदिरों की उड़ान पर चला गया; उस समय हरिप्रसाद चौरसिया जी की बांसुरी के मधुर संगीत की स्वर लहरियाँ कानों से टकरा मानों जन्नत का सा एहसास करा रहीं थी। जब वहाँ पिछले वर्ष गया था तो पश्चिमी मंदिरों के समूह को देखने हम सुबह सवेरे गए थे, उस समय वहाँ अधिक पर्यटक नहीं थे, मंदिर के अंदर बैठने पर मानों ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सदियाँ बीत गई हों वहाँ बैठे-२ और पता ही नहीं चला, इतनी शांति थी हर ओर कि मन के सभी शोर जैसे उससे डर कर भाग गए थे!!

जब वह सुन्दर और शीतल तंद्रा भंग हुई तो सोचा कि कुछ अलग किया जाए, एकठो स्लाईडशो टाइप अपन भी बना लें तो उस समय खजुराहो में ली गई तस्वीरों में से सबसे बेहतरीन तस्वीरों को जोड़ यह बना डाला। 🙂 स्पीकर अथवा हेडफोन को भी चालू कर यह वीडियो देखें, पार्श्व संगीत बढ़िया है। :tup:

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प्रतिबिंब पर जब खजुराहो की एक तस्वीर पोस्ट की थी तो नीरज दादा से साथ में लगाने के लिए यह पंक्तियाँ ली थीं:

ए चंदेलों के जमाने के शहर खजुराहो
देवताओं के ए खामोश नगर खजुराहो
ए तिलिस्मात न जामये खजुराहो
पर तवे रौनके इकबाल कमर खजुराहो

तेरा हर नक्श है पत्थर पै जवानी का उभार
तुझमें महफज है अय्यामें गुजिशता की बहार
सनअते संग तराशी के ऐ मशहूर दयार
मंदिरों से तेरी तारीख का कायम है मयार

यह किसकी रचना है यह तो नीरज दादा को भी नहीं पता लेकिन सुन्दर रचना है यह तो मुझ जैसा (इन मामलों में)गंवार भी कह सकता है! :tup: