यह आज की बात नहीं है, सालों से ऐसा होता आया है कि सिर्फ़ फैशनेबल लगने के लिए लोग किसी चीज़ का अनुसरण करने लग जाते हैं चाहे वह चीज़ उनकी समझ के दायरे से कोसों दूर हो। लेकिन अभी पिछले कुछ वर्षों में महानगरों में यह चलन कुछ खासा बढ़ते देखा है। जैसे-२ कॉस्मोपॉलिटन (Cosmopolitan) टाइप के समाज का दायरा बढ़ता जा रहा है, जैसे-२ अधिक व्यय करने के सामर्थ्य वाले मध्यम वर्ग का विकास होता जा रहा है वैसे-२ इन भेड़ चाल चलने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। जहाँ पहले एकाध ही कोई नज़र आता था वहीं आजकल ये लोग हर गली नुक्कड़ पर चरने निकले भेड़-बकरियों के झुंड की भांति जुगाली करते मिल जाते हैं।

लेकिन घबराने की कोई बात नहीं, ये आपको नुकसान नहीं पहुँचाते, मात्र अपनी समझ और हरकतों से आपका मनोरंजन करते हैं। हाँ ऐसा अवश्य है कि इनमें से कई स्नॉब (Snob) स्नॉबरी करते भी मिल जाएँगे। लेकिन उन स्नॉब लोगों को यदि एक बार को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए तो बाकी की यह जमात अन्य लोगों के लिए सर्कस के जोकर का कार्य करती है। ऐसा नहीं है कि ये लोग उछल-कूद करते मिल जाएँगे, या किसी जानवर आदि का खेल दिखाते मिलेंगे, इनकी हरकतें कुछ मौन मनोरंजन कराती हैं जिसे आपकी बुद्धि ताड़ जाएगी, आप मन ही मन मुस्कुराएँगे लेकिन अपनी मुस्कुराहट ज़ाहिर नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करना सभ्य न माना जाएगा और दूसरे व्यक्ति को यह भान हो गया तो वह आप पर बरस भी सकता है कि आप उसकी खिल्ली उड़ा रहे हैं जबकि कार्य स्वयं वो ऐसा कर रहा हो। 😉


( फोटो साभार – ताहमिद )

अभी दो-तीन दिन पहले की बात है, मैं घर के पास ही स्थित ज्ञानी के अड्डे (Gianis) पर आईसक्रीम (Ice Cream) लेने गया। वहीं एक युवा जोड़ा आया, नवाब साहब अपनी तूफ़ान-ए-हमदम के साथ चॉकलेट (Chocolate) आईसक्रीम का लुत्फ़ उठाने के तमन्नाई थे। उनकी गुल-ए-गुलज़ार ने कहीं सुना/पढ़ा होगा कि चॉकलेट आईसक्रीम यदि सिनफुल (sinful) न हो तो फिर चॉकलेट आईसक्रीम खाने का लाभ ही क्या। तो बस उन्होंने अपने आफ़ताब-ए-नज़र को अपनी सिन (sin) करने की तमन्ना बताई और साहब आ पहुँचे काऊँटर पर आईसक्रीम के बारे में पूछने। जैसा कि परिचित लोग सभी जानते हैं, खान-पान की जगहों के बारे में और उनके मेनू के बारे में मुझे काफ़ी जानकारी रहती है, कुछ अपने अनुभव से और कुछ साथी लोगों के अनुभव से। तो उन्होंने जब काऊँटर पर बैठे व्यक्ति पर एक असली चॉकलेटी आईसक्रीम की तमन्ना ज़ाहिर की तो आदत से मजबूर मैंने उनको मशवरा थमा दिया कि “बेल्जियन चॉकलेट” आईसक्रीम (Belgian Chocolate Ice Cream) को आज़माएँ, इससे अधिक चॉकलेटी आईसक्रीम ज्ञानी के अड्डे पर नहीं मिलेगी। तो उन साहब और उनकी मल्लिका-ए-जिग़र ने मेरे सुझाव को आज़मा के देखने की चाहत से “बेल्जियन चॉकलेट” आईसक्रीम का सैंपल लिया एक चमच्च में और उसको भी आधा-२ चख के देखा कि जान लें कि आईसक्रीम लेने लायक है कि नहीं। दोनों ने आईसक्रीम को चखते ही ऐसे मुँह बिचका दिया जैसे मानो किसी ने कुनैन की गोली का चूर्ण बना के जबरन उनकी हलक से नीचे उतार दिया हो बिना पानी के!! 😉

क्या हुआ? अब हुआ यूँ कि वे असली चॉकलेटी आईसक्रीम की तमन्ना ज़ाहिर किए थे और मैंने जो आईसक्रीम बताई वह असली चॉकलेट आईसक्रीम माफ़िक ही थी, नाममात्र को मीठा और पूरा चॉकलेट का स्वाद, आहा!! 😀 गुल ने टिप्पणी दी कि बहुत कड़वी है और गुलबानों से तो कुछ कहते ही न बना और वे सिर हिलाते वापस काऊँटर के पास दीवार पर टंगे बड़े मेनू (menu) की ओर आ गए कोई स्ट्रॉबरी आदि की आईसक्रीम लेने। अंत में उन्होंने कौन सी आईसक्रीम के साथ सिन (sin) किया यह मुझे नहीं पता क्योंकि तब तक मेरी खरीदी आईसक्रीम पैक हो गई थी और मैं वहाँ रुकने का वैसे भी कोई तमन्नाई नहीं था।


( फोटो साभार – डारविन )

ये एक नमूना है उस भेड़चाल वाले वर्ग का जिनका चॉकलेट ज्ञान कैडबरी की डेरी मिल्क (Dairy Milk) तक ही सीमित है और जो अमिताभ बच्चन के समझाए समझते हैं कि मिठाई और चॉकलेट में कोई फर्क नहीं है। वैसे अमिताभ अंकल का कहना भी सही है, जब चॉकलेट डेरी मिल्क हो तो वाकई मिठाई और चॉकलेट में कोई फर्क नहीं होता क्योंकि डेरी मिल्क चॉकलेट कम और चीनी अधिक होती है!! असल में चॉकलेट की छवि डिप्रेशन कम करने वाली है, मन में एक नई आशा जनने वाली है लेकिन डेरी मिल्क खा के तो किसी भी थर्टी प्लस को डिप्रेशन हो जाता है कि कमबख्त डॉयबिटीज़ (Diabetes) न हो जाए!! 😈

लेकिन कुछ भी कहो, उस भेड़चाल चलने वाले जोड़े का असली चॉकलेट आईसक्रीम से साक्षात्कार देखना मज़ेदार रहा, अंग्रेज़ी में कहें तो इट वाज़ क्वाइट अम्यूज़िंग। 😀 इन लोगों के व्यवहार पर हँसी इसलिए आती है कि ये लोग जो नहीं हैं वह होने का दिखावा करते हैं और फिर मुँह के बल सबके सामने गिरते हैं। आवश्यकता ही क्या है आपको भेड़चाल चलने की? जो हैं वह अपने आप को दिखाने में लोगों को शर्म क्यों होती है? कदाचित्‌ अपने प्रति किसी हीन भावना (inferiority complex) के कारण।

कुछ समय पहले ऐसे ही एक साहब मिले थे जिनका मामला कॉन्टीनेन्टल खाने का था, वह किस्सा यहाँ पढ़ें। 😎