पिछले कुछ समय में याहू सुर्खियों में रहा, कारण उसका खस्तेहाल होना, फिर माइक्रोसॉफ़्ट का उसको खरीदने का प्रस्ताव रखना और उसको याहू द्वारा ठुकरा दिया जाना था। माइक्रोसॉफ़्ट की ओर से होस्टाइल टेकओवर (hostile takeover) की अपेक्षा भी की जा रही थी लेकिन माइक्रोसॉफ़्ट ने ऐसी कोई कोशिश न करी और याहू द्वारा खरीद के प्रस्ताव को ठुकरा दिए जाने के बाद आराम से बैठ गई। लोगों ने सोचा कि मामला समाप्त हो गया, अब याहू वाले या तो वापस डॉलर छापना शुरु करेंगे या किसी और के हाथ बिकेंगे।
लेकिन मुझे यकीन नहीं आ रहा था, दमदार किरदारों वाला मामला ऐसे कैसे ठंडे-२ निपट सकता है। जल्द ही शंका सच साबित हुई, यानि कि फिल्म अभी बाकी है!! 😉
इंटरवल के बाद फिल्म में पदार्पण होता है एक अरबपति अमेरिकी फाईनेन्सर और कॉर्पोरेट रेडर (corporate raider) का और फिल्म पुनः चालू हो जाती है। नाम? आईकॉन, कार्ल आईकॉन (Carl Icahn) और इन बहत्तर वर्षीय अमेरिकी अरबपति का नाम दुनिया के पचास सबसे रईस लोगों में शुमार होता है और इनको कंपनियों के मैनेजमेन्ट का तख्ता पलटने में महारत हासिल है। ऐसा ये कैसे करते हैं? टार्गेट कंपनी के कई सारे शेयर खरीद उस कंपनी में वोटिंग अधिकार हासिल कर और उनका प्रयोग कर तथा अन्य शेयरहोल्डरों को अपनी ओर मिलाकर ये कंपनी के मैनेजमेन्ट को निकास द्वार दिखा देते हैं।
अब कुछ ऐसा ही ये याहू के साथ भी करने का इरादा रखते हैं। जहाँ इस वर्ष अप्रैल तक इनके पास याहू का एक भी शेयर नहीं था वहीं आज की तारीख़ में ये याहू के चार प्रतिशत शेयरों पर काबिज़ हैं जो कि काफ़ी अच्छी खासी संख्या है। इनका मानना है कि याहू की मौजूदा मैनेजमेन्ट नाकारा है, कंपनी की दुर्दशा की तो ज़िम्मेदार है ही बल्कि माइक्रोसॉफ़्ट की इतनी अच्छी पेशकश ठुकरा कर मैनेजमेन्ट ने एक निहायत ही अहमकाना हरकत की है और इसका उपाय यही है कि जैरी यैंग एण्ड पार्टी को क्लीन बोल्ड कर दिया जाए। इसलिए उसी इरादे के मद्देनज़र कार्ल साहब की याहू मैनेजमेन्ट से खुल्लम-खुल्ला छिड़ गई है, पत्रों का खुले रुप से आदान-प्रदान हो रहा है, एक क्या कह रहा है इसमें दूसरे की कतई रुचि नहीं है। कार्ल साहब का मकसद शेयरहोल्डरों को अपने प्रभाव में लाना है ताकि वे मौजूदा मैनेजमेन्ट के नीचे से कुर्सियाँ खींच सकें और उन पर अपने बन्दे बिठा सकें जो कि कदाचित् आगे माइक्रोसॉफ़्ट से याहू की डील कर सकें। उधर जैरी यैंग एण्ड पार्टी का मकसद अपनी कुर्सियाँ बचाए रखना है ताकि कार्ल बाबू की मंशा पूर्ण न हो सके। काफ़ी प्रबल संभावना है कि इस उठा-पटक के नतीजे अगस्त में होने वाली याहू के शेयरहोल्डरों की मीटिंग में सामने आ जाएँगे कि इस मुठभेड़ में कौन विजयी रहा – कार्ल आईकॉन या जैरी यैंग एण्ड पार्टी।
साथ ही मुझे पूरा विश्वास है कि माइक्रोसॉफ़्ट ने बेशक याहू से अपनी रुचि हट गई दिखाई है लेकिन ध्यान उनका भी इधर बराबर होगा कि कार्ल आईकॉन और जैरी यैंग एण्ड पार्टी की इस रस्सा-कशी में कौन बाज़ी ले जाता है क्योंकि यदि कार्ल बाबू जीतते हैं तो याहू को पाने के दरवाज़े माइक्रोसॉफ़्ट के लिए खुल जाएँगे। 😉
अपने को भी इस बिल्लियों की लड़ाई में मज़ा आ रहा है, आगे-२ देखिए होता है क्या, क्योंकि फिल्म अभी बाकी है!! 😉 :tup:
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