न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता।
अस्सी के दशक के अंत में दूरदर्शन पर नसीरूद्दीन शाह का एक धारावाहिक आया था, मिर्ज़ा ग़ालिब, जिसे गुलज़ार साहब ने बनाया था और जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने जिसमें गज़लें गाई थी। पापा के पास इसकी दोनो कैसेट थी (जगजीत सिंह की अन्य सभी एल्बमों की भांति, अभी भी कहीं पड़ी होगी) और जब वे इसको सुना करते तो मुझे इसका सिर्फ़ कवर पसंद आता था, बाकी सब बेकार लगता था, हाल यह था कि मैं जगजीत सिंह को सुन पक गया था, पसंद बिलकुल नहीं था वह गायन लेकिन यह रट गया था कि फलानी गज़ल या गीत फलानी एल्बम में है!! 😉
उस समय इसकी तारीफ़ करने लायक अक्ल नहीं थी, आज एहसास होता है कि यह वाकई सोने जैसी चीज़ है। जगजीत सिंह साहब की आवाज़ और मिर्ज़ा ग़ालिब के लिखे बोल – नशीली चीज़ जिसे सुनकर मज़ा आ जाए। 🙂 रात के इस समय उसी को सुना जा रहा है, आहा, आनंदम!! :tup:
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