उधर इलाहाबाद और आसपास के लोग एक के बाद एक ब्लॉगर मीट ठेले जा रहे थे और इधर मैं सोचने में लगा हुआ था कि ऐसा क्या हुआ कि यहाँ दिल्ली में बेतकल्लुफ़ी वाली कॉफ़ी छाप ब्लॉगर मीट बंद हो गईं??!! दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में फौज है ब्लॉगरों की, एक समय था जब दूसरे शहरों के लोग हमसे ईर्ष्या किया करते थे कि हम लोग आए दिन ब्लॉगर चौपाल लगाए चाय-कॉफ़ी सुड़क रहे होते थे और वे लोग सोचते थे कि हम लोग वेल्ले हैं जो इतना टाइमपास किया करते हैं!! कहाँ गई वो ईर्ष्या? अब कोई क्यों नहीं करता? कोई ईर्ष्या करेगा कैसे, सोवियत यूनियन की ही भांति लोगों के पास फालतू टैम खत्म हो गया, जैसे बर्लिन (Berlin) की दीवार गिरी थी वैसे ही ब्लॉगर मीटों की कतार टूट गई!!

तो मन में बहुत समय से एक तलब उठ रही थी कि ब्लॉगकैम्प आदि तो हम लोग करते ही रहते हैं, अभी तक भारत में सबसे अधिक ब्लॉगकैम्प दिल्ली में ही हुए हैं (पहला और दूसरा), पुणे में दूसरा ब्लॉगकैम्प इसी माह हो रहा है और वह दिल्ली के बगल में आकर खड़ा हो जाएगा। लेकिन इन सब के अतिरिक्त बेतकल्लुफ़ी वाली बिना किसी निश्चित एजेन्डे वाली कॉफ़ी छाप मीट भी होनी चाहिए। इसी को लेकर दिल्ली ब्लॉगर समूह में मान मनौव्वल चल रहा था। इस मीट के लिए मुख्य आकर्षण खान-पान रखा गया कि भई अंट-शंट बकबक तो करेंगे ही लेकिन किसी ऐसी जगह जाएँगे जहाँ कुछ बढ़िया खान-पान संभव हो सके, मुख्य मुद्दा तो वही था। जगह के बारे में एक राय नहीं बन पा रही थी, अधिकतर लोग चांदनी चौक (Chandni Chowk) के लिए ज़ोर दे रहे थे (अब उससे बेहतर स्थान भी तो नहीं कोई इस काज के लिए), तो कुछ लोग इंडिया हैबिटैट सेन्टर (India Habitat Center aka IHC) का सुझाव दे रहे थे। आखिरकार मैंने सोचा कि ऐसे कुछ नहीं होने वाला, तो इसलिए जनमत लेने की सोची, एक पोल (Poll) बनाया, उसमें चांदनी चौक और इंडिया हैबिटैट सेन्टर के विकल्प दिए और बोल दिया मेम्बरान को कि जिसको जो पसंद हो उस विकल्प को मत दे और जिसको अधिक वोट मिले वही जगह तय रहेगी।


फोटो साभार तरूण

अपेक्षित रूप से चांदनी चौक की विजय हुई और मामला सैट हो गया कि क्नॉट प्लेस के एक कैफ़े कॉफ़ी डे (Cafe Coffee Day) में मिला जाएगा और वहाँ एकाध घंटा बैठ मेट्रो में सवार होकर चांदनी चौक पहुँचेंगे जहाँ दही-भल्ले, आलू की टिक्की और फिर परांठे वाली गली के मशहूर परांठों का भोग लगाया जाएगा!! 😀 अब चूंकि अपन आजकल पब्लिक ट्रांसपोर्ट से बंधे हुए हैं इसलिए पहले ऑटोरिक्शा में लद के नज़दीकी मेट्रो स्टेशन तक पहुँचे और वहाँ से मेट्रो में सवार होकर क्नॉट प्लेस नियत समय पहुँच ही गए, समय से दस मिनट पहले तरूण आ चुका था और एक मिनट पहले एक अन्य ब्लॉगर रिशू भी आ गया था। ऑटोरिक्शा का भी मज़ेदार किस्सा रहा, इस विषय में अगली किसी पोस्ट में लिखूँगा।


फोटो साभार तरूण

जिस कैफ़े का मामला तय था वह भरा हुआ था, सप्ताहांत था और शाम हो रही थी, आजकल लोगों की जेब भारी हो गई है कुछ ज़्यादा ही इसलिए पिछले एक वर्ष के वफ्के में यह फर्क आया है कि कॉलेज के लड़के अपनी-२ गर्लफ्रेन्डों के साथ प्रायः सभी कैफ़े कॉफ़ी डे और बरिस्ता (Barista) को भर देते हैं!! 😉 बहरहाल, निश्चित कैफ़े के सामने वाले कैफ़े में कुछ जगह खाली मिल गई और हम तीनों वहीं बैठ गए। पहले वाले कैफ़े के मैनेजर को बोल आए कि भई कोई ब्लॉगर मीट के लिए आए तो सामने वाले कैफ़े में भेज देना, एक साहब का लघु संदेश (SMS) आ गया था कि वे पहुँचने वाले हैं तो उनको उत्तर भेज दिया कि सामने वाले कैफ़े में पहुँचें।

ट्विट्टर पर आलोक भाई का समोसा पढ़ा कि वे दिल्ली में हैं तो उनको भी मोबाइल से एक लघु संदेश (SMS) हिन्दी में लिखकर भेज दिया कि ब्लॉगर मीट हो रही है और उसके बाद परांठे वाली गली के परांठों का प्रोग्राम है, वे भी आ जाएँ। इधर एक-एक करके लोग आ गए और हंसी ठठ्ठे के साथ हर तरह की फालतू चर्चा आदि हो रही थी, ब्लॉगर मीट वाज़ इन प्रोग्रेस!! 😉 तकरीबन छह बजे चांदनी चौक रवाना होने की बात हुई और इधर आलोक भाई का फोन आया कि वे बस निकल रहे हैं ब्लॉगर मीट में आने के लिए, तो मैंने उनको कहा कि हम लोग भी इधर से निकल रहे हैं इसलिए आप सीधे चांदनी चौक पहुँचों मेट्रो में सवार होकर।


फोटो साभार तरूण



फोटो साभार तरूण

एक ब्लॉगर अपनी पत्नी और छोटे बालक के साथ आए थे, उनको रात्रिभोज पर किसी परिचित के जाना था तो वे क्नॉट प्लेस से ही विदा हुए और बाकी हम लोग चांदनी चौक के लिए रवाना हुए। चांदनी चौक पहुँच दही भल्ले खाने बैठे थे कि आलोक भाई का फोन आ गया कि उनको उनकी ससुराल वालों ने पकड़ के बिठा लिया है, इसलिए वे तो नहीं आ पाएँगे अलबत्ता मैं रात साढ़े नौ बजे जनक पुरी पहुँच जाऊँ, वहीं चिट्ठाजगत वाले डॉ. विपुल भी मिल जाएँगे।


फोटो साभार तरूण

दही भल्ले निपटा के हम लोग परांठे वाली गली पहुँचे और वहाँ सभी ने नींबू, रबड़ी, पनीर, आलू और पुदीने के परांठों का भोग लगाया। वहाँ परांठे तवे पर नहीं सेके जाते जैसा कि आम तौर पर होता है और न ही तंदूर में बनाए जाते हैं। परांठे वाली गली में परांठे कम गहराई की छोटी कढ़ाई में तल के बनाए जाते हैं, कैलोरी का ढेर लेकिन स्वाद एकदम टकाटक। अपने को तो नींबू का परांठा भा गया, बहुत ही लज़ीज़ और अलग स्वाद का था। और तरूण के अनुसार (परांठे वाली गली के लिए अपना गाईड वही था) रबड़ी के परांठे पूरी दिल्ली में सिर्फ़ परांठे वाली गली में ही मिलते हैं। अब अपन ने कहीं और खाए नहीं और न ही देखे, इसलिए मान लिए उसकी बात!! 😉

परांठे निपटा के बढ़िया टकाटक लस्सी से प्यास बुझाई गई। अब साढ़े आठ का समय हो रहा था इसलिए ब्लॉगर एण्ड खान पान मीट बर्खास्त की गई, सभी के चेहरों पर मुस्कान और तृप्ति के भाव थे। तय किया गया कि इस तरह का मामला थोड़े-२ अंतराल के बाद होते रहना चाहिए, हंसी ठठ्ठा भी हो जाए और खान पान इत्यादि भी!! सभी अपनी-२ राह बढ़ गए अपने-२ घरों की ओर लेकिन अपना दिन अभी समाप्त नहीं हुआ था तो अपन मेट्रो में सवार होकर जनकपुरी की ओर चल दिए दूसरी ब्लॉगर मीट के लिए। फोन पर आलोक भाई विपुल जी से सलाह लेकर अपने को बता दिए कि फलाने स्टेशन पर उतर जाना और फलाने गेट से बाहर आ जाना, विपुल जी वहीं मिलेंगे। तो अपन कोई एक घंटे बाद साढ़े नौ बजे फलाने स्टेशन पर उतरकर फलाने गेट से बाहर आ गए और कुछ देर बाद वहाँ आलोक भाई और विपुल जी भी आ गए। विपुल जी की गाड़ी में सवार होकर हम लोग डिस्ट्रिक्ट सेन्टर (District Center) पहुँचे जहाँ के आलीशान (और खाली पड़े) बरिस्ता में हम लोग चौपाल लगाए।



( बाएँ से दाएँ –  डॉ. विपुल, मैं और आलोक भाई )


अब तीन लोग बेतकल्लुफ़ी में बैठें हों और तीनों ही तकनीकी खुरक वाले तो ज़ाहिर है तकनीकी चर्चा अधिक होगी। इधर-उधर की बातें भी हुई और अलग-२ मुद्दों पर तकनीकी चर्चा भी हुई। विपुल जी और आलोक भाई पहले ही भोजन कर आए थे और मैं इस मुगालते में था कि साथ में रात्रि भोजन होगा। समय बीत रहा था और हम लोगों ने सोचा कि कुछ खा लिया जाए, मैंने तो भोजन नहीं किया था आखिर। बस इसी मनसूबे को अंजाम देने हम लोग बरकोस (Bercos) में पहुँचे कि वहाँ थाई (Thai) खाना खाया जाएगा। बरकोस में मैंने विपुल जी से बॉररूम (Bar Room) की ओर रूख करने को कहा तो उन्होंने पूछा कि कुछ पीना है क्या तो मैंने कहा कि नहीं ऐसी कोई तमन्ना नहीं है, वहाँ बैठना इसलिए बेहतर रहेगा कि वहाँ का माहौल अच्छा और शांत होता है तथा बैठने का इंतज़ाम बढ़िया होता है, बोले तो कुर्सियाँ आदि रेस्तरां के मुकाबले अधिक आरामदायक होती हैं, खाना तो वहाँ भी सर्व हो जाता है इसलिए कोई टेन्शन नहीं।

ऐपेटाईज़र और थाई खाना मंगवाया गया, आलोक भाई और विपुल जी ने साथ दिया और बतियाते हुए कब रात्रि के बारह बज गए पता ही नहीं चला। रेस्तरां खाली हो चुका था, वे लोग बंद कर रहे थे और हम लोग बिल का भुगतान कर बाहर आ गए। इस तरह उस संक्षिप्त हिन्दी ब्लॉगर मीट का भी समापन हुआ। तकरीबन साढ़े बारह बजे मुझे मेरे घर के पास छोड़ते हुए विपुल जी आलोक भाई को उनके डेरे पर पहुँचाने निकल लिए।