योरोपियन यूनियन को खर्च आदि के लिए जो सदस्य देशों से पैसा मिलता है लगता है वह उनको पूरा नहीं पड़ता, इसलिए इधर-उधर भी हाथ पाँव मारते रहते हैं!! योरोपियन यूनियन वालों का पसंदीदा बैंक माइक्रोसॉफ़्ट (Microsoft) है। माइक्रोसॉफ़्ट और बैंक? जी हाँ, योरोपियन यूनियन के लिए तो माइक्रोसॉफ़्ट बैंक ही है जिससे वे आए दिन करोड़ों अरबों डॉलर वसूलते रहते हैं। माइक्रोसॉफ़्ट के संस्थापक और पूर्व चेयरमैन बिल गेट्स (Bill Gates) की उदारता तो जग ज़ाहिर है, वे दुनिया के सबसे बड़े दानवीरों में से एक हैं, महाभारत काल के महाबली कर्ण से प्रभावित लगते हैं। 🙂 उनकी यही दानवीरता माइक्रोसॉफ़्ट की आत्मा में भी बसी नज़र आती है और इसलिए माइक्रोसॉफ़्ट भी योरोपियन यूनियन जैसों को डॉलर बाँटती रहती है।

और यह कैसे होता है? ज़्यादा कुछ नहीं करना पड़ता, योरोपियन कमीशन को बस थोड़ी नौटंकी स्टेज करनी होती है। अब योरोपियन यूनियन और उसमें मौजूद देशों में उनका कानून लागू होता है, उनकी ज्यूरिस्डिक्शन (Jurisdiction = अधिकार क्षेत्र) है। किसी योरोपियन कंपनी द्वारा माइक्रोसॉफ़्ट पर एकदम फालतू किस्म का मुकदमा ठोका जाता है और अपेक्षित रूप से माइक्रोसॉफ़्ट उसे हार जाती है और योरोपियन कमीशन जुर्माने के तौर पर करोड़ों डॉलर वसूल लेती है। 🙄

तीन-चार वर्ष पूर्व रियल प्लेयर (Real Player) बनाने वाली योरोपियन कंपनी रियल नेटवर्क्स (Real Networks) ने योरोपियन कमीशन के सामने गुहार लगाई थी कि माइक्रोसॉफ़्ट विन्डोज़ (Windows) के साथ मीडिया प्लेयर सॉफ़्टवेयर देता है जिस कारण उसका थकेला रियल प्लेयर कोई नहीं खरीदता!! और जैसा कि अपेक्षित था, अदालत ने क्रांतिकारी फैसला सुनाया कि विंडोज़ इस्तेमाल करने वालों को यह विकल्प मिलना चाहिए कि वे कौन से सॉफ़्टवेयर में गाने सुनना और फिल्म देखना चाहते हैं, उन पर कोई सॉफ़्टवेयर थोपा नहीं जाना चाहिए। और साथ ही अदालत ने कोई 75-76 करोड़ डॉलर की जुर्माने के रूप में माइक्रोसॉफ़्ट से उगाही कर ली थी!! अब पहली बात तो मैं अपना मत व्यक्त करता हूँ – रियल प्लेयर ऐसा थकेला सॉफ़्टवेयर होता था (अब है कि नहीं पता नहीं) कि यदि मुझे फोकट में भी मिलता तो मैं उसको प्रयोग न करता, उसको पैसे देकर खरीदने का तो सवाल ही नहीं उठता!! दूसरी बात यह कि इस क्रांतिकारी फैसले से उस उपभोग्ता को कितना लाभ पहुँचा जिसके नाम पर यह चौथ वसूली हुई थी?? उपभोग्ता तो वहीं का वहीं रह गया, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। क्यों? क्योंकि माइक्रोसॉफ़्ट ने तो अदालती फैसले के बाद विन्डोज़ का बिना मीडिया प्लेयर का संस्करण उपलब्ध कराना शुरु कर दिया था लेकिन वह उपभोग्ता थोड़े ही चुनता था, उसका चुनाव कंप्यूटर निर्माता कंपनियों के हाथ में था, जिस कंपनी को रियल नेटवर्क्स पैसा खिला दे वह बिना मीडिया प्लेयर वाली विन्डोज़ में रियल प्लेयर का ट्रायल वर्ज़न डाल उपभोग्ता को खिसका देता। 🙄 और आज भी कुछ अलग नहीं होता है, यदि आप ब्रांडिड कंप्यूटर अथवा लैपटॉप खरीदें जैसे कि डैल (Dell), सोनी वायो (Sony Vaio), एचपी (HP) आदि तो उसमें पहले से बहुत से ट्रायल वर्ज़न इंस्टॉल हुए आते हैं उन सभी सॉफ़्टवेयरों के जिनके निर्माता इन कंप्यूटर निर्माताओं को रोकड़ा देते हैं। और यह तब है जब आप पैसे देकर कंप्यूटर खरीद रहे हो न कि फोकट में ले रहे हो और उसके बावजूद ये फालतू कचरा आपको थमाया जाता है। 👿

अब इस वाले मामले में माइक्रोसॉफ़्ट से तो चौथ वसूल ली गई माइक्रोसॉफ़्ट का एकाधिकार यानि कि मोनोपली (monopoly) रोकने के लिए लेकिन बाकी एकाधिकार वाले मामलों में योरोपियन कमीशन खामोश क्यों रहा/है?!! उदाहरण के लिए आईपॉड (iPod) निर्माता सेब को देखते हैं। आज की तारीख में एमपी3 (MP3) प्लेयरों के मामले में आईपॉड (iPod) से अधिक हिस्सा बाज़ार में और किसी के पास नहीं है, कुछ सर्वेक्षण आंकड़ों की मानें तो साठ प्रतिशत से अधिक हिस्सा आईपॉड (iPod) के नाम दर्ज है। और यहाँ पर सेब के ऊपर मुकदमा निम्न कारणों के लिए बन सकता है:

  1. आईपॉड (iPod) में गाने डालने हों तो उसके लिए सेब के मीडिया प्लेयर सॉफ़्टवेयर आईट्यून्स (iTunes) की आवश्यकता पड़ती है, उसके बिना आईपॉड (iPod) में गाने नहीं डाले जा सकते। एकाध फोकटी सॉफ़्टवेयर बाज़ार में अवश्य हैं जिनके द्वारा आईपॉड (iPod) में बिना आईट्यून्स (iTunes) के गाने डाले जा सकते हैं। लेकिन मुद्दा यह है कि आईट्यून्स (iTunes) की आवश्यकता ही क्यों है, क्यों नहीं गाने बिना किसी अतिरिक्त सॉफ़्टवेयर के सीधे ही डाले जा सकते??!! अन्य एमपी3 (MP3) प्लेयरों में भी तो यह सुविधा है!!
  2. यदि सेब की गाने बेचने की दुकान से गाने खरीदने हैं तो उसके लिए भी आईट्यून्स (iTunes) सॉफ़्टवेयर की आवश्यकता है। क्यों नहीं यह दुकान आप अन्य दुकानों की भांति अपने वेब ब्राऊज़र में खोल सकते, आईट्यून्स (iTunes) में क्यों खुलती है?!!

सेब के साथ ऐसा मसला क्यों है? क्योंकि वह शुरू से ही मोनोपोलिस्ट (Monopolist) स्वभाव की कंपनी है, वे लोग नहीं चाहते कि कोई एक बार उनके जाल में फंसे तो वह फिर बाहर निकल सके!! और योरोपियन कमीशन इस बारे में कुछ करता क्यों नहीं? अजी जब माइक्रोसॉफ़्ट जैसी दुधारू गाय हो तो फिर सूखी मरियल गायों की ओर देखने की भी क्या आवश्यकता। हाँ यदि वाकई में नीयत नेक होती जैसी दर्शायी जाती है तो फिर ये किसी को न छोड़ते, चाहे माइक्रोसॉफ़्ट हो या सेब!! 🙄

और लगता है अब योरोपियन कमीशन को फिर से रोकड़े की आवश्यकता पड़ गई है, वैसे भी आजकल पश्चिमी अर्थव्यवस्था की अधिक वाट लगी हुई है। कुछ समय पहले ऑपरा ब्राऊज़र बनाने वाली योरोपियन कंपनी के सदके फिर से योरोपियन अदालत में माइक्रोसॉफ़्ट पर मुकदमा ठोका गया है, इस बार तकलीफ़ यह है कि माइक्रोसॉफ़्ट विन्डोज़ के साथ इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer) ब्राऊज़र काहे देता है, इससे वह अपने प्रतियोगियों की वाट लगा रहा है!! लो कल्लो बात, अब विन्डोज़ के साथ यदि ब्राऊज़र नहीं आएगा तो लोग दूसरा ब्राऊज़र क्या योरोपियन कमीशन के दफ़्तर में जाकर उतारेंगे?!! 🙄 यह सब भी जनता जनार्दन की भलाई के नाम पर हो रहा है लेकिन मुझे लगता है कि यहाँ भी मामले ने वैसी ही करवट बैठना है जैसे वो रियल प्लेयर वाले मामले में बैठा था। अंत-पंत फैसला कंप्यूटर निर्माताओं के हाथ में जाना है और जो कोई उनको अधिक पैसे खिला देगा उसी का ब्राऊज़र वे लोग कंप्यूटरों में डाल लोगों को खिसका देंगे!! जय हो!!

और अभी कुछ समय पहले पढ़ने में आया था कि गूगल भी इस मामले में योरोपियन कमीशन और ऑपरा (Opera) के साथ है, भई आखिर क्यों न होगा, अब गूगल भी तो क्रोम (Chrome) नामक ब्राऊज़र का निर्माता है!! और यह वही गूगल है जो थोड़े समय पहले तक मोज़िला (Mozilla) वालों को पैसे देता था ताकि वे फायरफॉक्स (Firefox) ब्राऊज़र में डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन के रूप में गूगल को रखें और इसके लिए गूगल ने उनके लिए अलग से एक खास पन्ना भी अपनी वेबसाइट पर बना रखा था!!

लेकिन इस मामले में चकित किया ऑपरा (Opera) ने। ऑपरा का ब्राऊज़र एक अच्छा ब्राऊज़र है, मैं इसका प्रयोग कंप्यूटर पर भी करता हूँ और अपने विन्डोज़ मोबाइल में भी। और इसलिए ऑपरा से ऐसी ओछी हरकत की आशा नहीं थी। :tdown: क्या वे लोग सोच रहे हैं कि इस तरह विन्डोज़ से इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer) हटवा के वे लोग वेब ब्राऊज़र बाज़ार का अधिक हिस्सा प्राप्त कर लेंगे? उन्होंने मोज़िला (Mozilla) के फायरफॉक्स (Firefox) ब्राऊज़र को देख के भी सीख न ली!! दस वर्ष बाद आज ऑपरा ब्राऊज़र का बाज़ार में जितना हिस्सा है उससे पच्चीस-तीस गुणा अधिक फायरफॉक्स (Firefox) ने पिछले चार-पाँच वर्षों में बिना ऐसी किसी हरकत के हासिल किया है!!

अब इस मामले में भी अन्य खेमे माइक्रोसॉफ़्ट जैसे मिल जाएँगे, जैसे कि हर बड़े लिनेक्स संस्करण के साथ फायरफॉक्स ब्राऊज़र आता है, सेब अपने मैक के साथ अपना थकेला सफ़ारी (Safari) ब्राऊज़र देता है। लेकिन मामला वही दुधारू गाय और मरियल गाय का है, योरोपियन कमीशन को लिनेक्स के खेमे से धेला नहीं मिलने वाला और जब माइक्रोसॉफ़्ट जैसी दुधारू गाय है तो सेब की ओर क्या देखना!!

लानत है!! 🙄