कई बार ऐसे वाकये सामने आते हैं कि मन में आता है लोग पुलिस वालों को माँ-बहन की और अन्य हाई फाई गालियाँ देते हैं तो गलत नहीं देते। ऐसा नहीं है कि सभी पुलिस वाले बुरे होते हैं लेकिन कई पुलिस वालों का व्यवहार ऐसा होता है कि लगता है उनको गाली देना भी गाली का घोर अपमान है, जो पुलिस के अयोग्य तो हैं ही साथ ही मनुष्य योनि के भी अधिकारी नहीं हैं।

कल दिल्ली में मतदान का दिन था। मेरी नानी जी अस्सी पार कर चुकी हैं, अस्थमा की मरीज़ हैं और उनको चार-पाँच कदम चलने में ही दिक्कत होती है। लेकिन वे वोट डालने हमेशा जाती हैं और कल भी रिक्शे में नौकरानी के साथ बैठ अपना वोट डालने गईं। हमारे इलाके का मतदान केन्द्र एक सरकारी स्कूल था और स्कूल के बाहर खड़े एक पुलिस वाले ने रिक्शे को अंदर जाने नहीं दिया, कहा कि पैदल चलकर अंदर जाओ। नानी जी ने कहा भी कि भई ज़्यादा नहीं चला जाता, हर बार रिक्शा पुलिस वाले थोड़ा अंदर तक जाने देते हैं जहाँ से मतदान कक्ष आठ-दस कदम दूर होता है, और वैसे भी उस समय भीड़ बिलकुल नहीं थी मतदान केन्द्र में इक्के दुक्के मतदाता ही थे जो सब मतदान कक्षों में थे। लेकिन इस पर उस ठुल्ले ने फबती कसी – “जब चला फिरा नहीं जाता है तो आई क्यों हो”!! साथ में कोई पुरूष नहीं था तो उसकी इतनी हिम्मत हो गई कहने की वरना कदाचित्‌ ऐसा कहने की उसकी औकात न होती!! उसने रिक्शे को अंदर जाने से रोका इसका बिलकुल बुरा नहीं लगा, वह अपनी ड्यूटी कर रहा था और अंदर जाना स्वीकार्य न होगा ऐसी बद्‌तमीज़ी को किसी भी तरह जस्टिफाई नहीं किया जा सकता!! 😡

कहने को कदाचित्‌ उसकी शिकायत थाने में की जा सकती है लेकिन क्या लाभ? इससे अधिक संगीन जुर्म करने के बावजूद तो इन ठुल्लों का कुछ होता नहीं!! पता नहीं ये ठुल्ले क्यों अपने को हाकिम समझते हैं, गलती जनता की भी है कि इनसे डरती है और इनको सिर चढ़ा के रखती है, ठीक नेताओं की भांति, अन्यथा ये लोग जनता के टुकड़ों पर पलते हैं, पब्लिक सर्वेन्ट हैं न कि पब्लिक ओनर। ठुल्ला हो या न हो, लेकिन इंसान तो है, यह क्या तरीका है किसी बुज़ुर्ग से बात करने का??!!

यह जान अब मन में तो यही आता है कि कमबख्त अपनी जवानी और ताकत के नशे में है इसलिए ऐसा बोल गया, कल को हाथ पैर कट गए या लकवा मार गया तो किसी चौराहे पर भीख माँगता नज़र आएगा लेकिन फिर सोचता हूँ कि उसके लिए क्यों अपशब्द निकालूँ, उसके घर वालों का तो कोई दोष नहीं है, उसके साथ कुछ बुरा होगा तो भुगतेंगे तो उसके घर वाले भी।

लेकिन बात वही है कि न जाने कब तक हम लोग निरीह गाय बने ऐसे लोगों को अपने सिर पर बिठाए रहेंगे!! एक कमज़र्फ़ ठुल्ले ने मेरी बुज़ुर्ग नानी जी को ऐसे अपशब्द कहे तो मुझे बात अंदर तक चुभ गई, न जाने जो लोग इन ठुल्लों और नेताओं से और अधिक रूप से प्रताड़ित हैं उनको कैसा लगता होगा!!