रीमा के ब्लॉग पर एक पुरानी पोस्ट पढ़ रहा था जिसमें उन्होंने अपने साथ बीते तीन वाकयों का ज़िक्र किया है जिसमें उनका पाला रेस्तराओं में अशिष्ट वेटरों से पड़ा। उनके अनुभव को पढ़ मैंने अपने अभी तक के अनुभवों को टटोला तो पाया कि दिल्ली और गुड़गाँव के तमाम हाई क्लास तथा मिडल क्लास और कुछ लो क्लास (आम तबके वाले) रेस्तराओं में भटक चुकने के बाद मैं यह बात विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ऐसे अनुभव मेरे साथ अधिक नहीं हुए जहाँ बैरे ने प्रोफेशनलिस्म की जगह अपना गंवारपन दिखाया हो!

एक बार योगेश के साथ क्नॉट प्लेस के बरकोस (Berco’s) में डिनर करने गया था तो ऑर्डर देने पर स्टीवर्ड (steward) को कहा कि ऐपेटाईज़र (appetizer) और ड्रिंक्स (जिंजर फिज़्ज़ यानि अदरक का शर्बत, बहुत ही मस्त होता है) पहले लाए और खाना बाद में। लेकिन स्टीवर्ड को ध्यान नहीं रहा होगा और उसने सब सामान एक साथ ही सर्व करवा दिया। इस पर उसको आराम से लेकिन कड़े शब्दों में बोला था कि बात को कान से सुन निकालना नहीं चाहिए, कम से कम कस्टमर की बात को!! यह बात उसको याद रह गई होगी क्योंकि अगली बार आशीष के साथ वहाँ लंच पर गया तो उसने ऐपेटाईज़र और ड्रिंक्स पहले सर्व करवाई और खाना बाद में।

बेकार वाकया रजौरी गार्डन के सिटी स्कवेयर मॉल (City Square Mall) में स्थित यो चाईना (Yo China) रेस्तरां में हुआ। दरअसल बात यह है कि वहाँ की सर्विस ही बेकार है, किसी और यो चाईना (Yo China) रेस्तरां में ऐसी घटिया सर्विस नहीं देखी जैसी सिटी स्कवेयर मॉल (City Square Mall) वाले में देखी है। वहाँ के सभी वेटर निहायत ही गंवार और $%#@&^!% हैं। :tdown: एक बार योगेश और मैं वहाँ डिनर के लिए गए थे, शाम कोई साढ़े आठ बजे का समय था, और सिटी स्कवेयर मॉल (City Square Mall) वाले यो चाईना (Yo China) में कोई भीड़ नहीं थी, आधी टेबल खाली थीं। मैं और योगेश एक टेबल पर बैठे, पास से वेटर गुज़रा तो उसको बुलाया और वह “अभी आता हूँ” का इशारा करके चला गया। दस मिनट बाद हमारे पीछे वाली टेबल पर दो लोग आकर बैठ गए। वही वाला वेटर आया और उन लोगों को पानी आदि सर्व करने के बाद उनका ऑर्डर लेकर चला गया लेकिन हमें न पानी सर्व हुआ था न ही ऑर्डर लिया गया था। कुछ मिनट बाद जब वह वेटर आया तो मैंने उसको खड़े होकर अच्छी खासी झाड़ पिलाई, मैनेजर आ गया तो साथ में उसको भी चार बात सुनाई। कोई तरीका थोड़े ही होता है कि कस्टमर आकर बैठा है और वेटर ऑर्डर लेने के लिए भी नहीं आ रहा, जो लोग बाद में आए उनका ऑर्डर लेकर चला गया लेकिन हमें नहीं पूछा। अब हम लोग कोई शक्ल से भिखमंगे थोड़े ही दिख रहे थे और न ही लंगर में खाने गए थे। 😡 आजू बाजू की टेबल पर बैठे लोग मज़े से देख रहे थे और मैनेजर शर्म से पानी हुआ जा रहा था। उसके बाद मैनेजर ने अलग ले जाकर उस वेटर को खरी खोटी सुनाई होगी, क्योंकि खाना हमको पीछे वाली टेबल से पहले सर्व हुआ और उसके बाद से जब तक हम लोगों ने खाना नहीं खा लिया वह वेटर हमारी ही टेबल के आसपास मंडराता रहा कि कहीं हमें किसी और चीज़ की आवश्यकता पड़े तो वह सर्व कर सके। लेकिन गुस्सा हम लोगों का शांत नहीं हुआ था इसलिए उस कमबख्त वेटर के लिए कोई टिप नहीं छोड़ी गई। 😈 अन्य मित्रों आदि से भी यही रिपोर्ट्स मिली हैं कि सिटी स्कवेयर मॉल (City Square Mall) वाला यो चाईना (Yo China) दो कौड़ी की सर्विस देता है और खाना वाहियात होता है। जो पेप्सी आदि वहाँ सर्व की जाती है वह पानी होती है, यानि कि गैस निकली हुई होती है, कितना ही कह लो वेटर को कि घंटे भर पहले न निकाल के रखे पेप्सी को लेकिन उन गंवार लोगों को समझ नहीं आती। अब तो साल-डेढ़ साल से अधिक हो गया वहाँ गए, दो कौड़ी की जगह पर हम नहीं जाते, जब पैसे खर्च कर रहे हैं तो टुच्ची जगह क्यों जाएँ!! :tdown:

बाकी कहीं दिल्ली के रेस्तराओं में ऐसा वाहियात या थोड़ा भी खराब अनुभव सर्विस के मामले में नहीं रहा, सर्विस वेटरों और स्टीवर्ड्स की प्रोफेशनल मिली है, खाना पीना चाहे बेशक निराशाजनक या घोर निराशाजनक रहा हो। टुच्ची सर्विस बर्दाश्त बिलकुल नहीं होती इसलिए यह नहीं कह सकता कि आदत हो गई है और बेकार सर्विस पर ध्यान नहीं देता।

छोटे ढाबों आदि में प्रायः सर्विस उत्तम मिली ही है, खाना भी लगभग सभी जगह बढ़िया मिला है। मेरे एक मित्र, मदन बाबू, जब यहीं घर के पास रहते थे (कोई 8-10 किलोमीटर के फासले पर) तो सप्ताह में एक बार तो उनके पास चला ही जाता था शाम को, मकसद उनसे मिलने से अधिक सरदार जी के उस ढाबे पर डिनर करना अधिक होता था जहाँ मदन बाबू रात का खाना खाया करते थे। छोटा सा चार टेबल का ढाबा था, सर्विस बढ़िया थी और खाना ऐसा लज़ीज़ होता था कि पेट भर जाता लेकिन मन नहीं भरता था। 🙂 हम दो लोग मेनू में मौजूद सभी महंगी आईटम मंगवाया करते थे, छक कर खाते थे और फिर भी बिल कभी अस्सी रूपए से ऊपर नहीं गया!! :tup: अब मदन बाबू शहर छोड़ गाज़ियाबाद में बस गए हैं तो उन सरदार जी के ढाबे पर भी गए डेढ़ साल से ऊपर हो गया है।

इसी तरह रजौरी गार्डन में योगेश और मेरी एक ढाबा टाइप होटल पसंदीदा जगह है खाना खाने के लिए। उसके आजू बाजू भी अन्य ढाबे टाइप होटल हैं, एक ही कतार में कोई तीन-चार होटल हैं लेकिन वह सबसे अधिक चलता है, शाम को यदि साढ़े आठ के बाद पहुँचो तो टेबल नहीं मिलती और प्रतीक्षा करनी पड़ती है, छुट्टी वाले दिन तो काफ़ी भीड़ होती है। उस होटल की सर्विस अच्छी है और खाना मस्त होता है, दाल आदि तो मस्त बनाता ही है वहाँ मटन भी बढ़िया मिलता है अच्छे से पकाया हुआ। और खाने के रेट भी सस्ते हैं, एक प्लेट में अच्छी खासी मात्रा देता है जो हम जैसे दो शौकीन लोगों से भी न खाई जाए। 🙂

सर्विस के मामले में मुझे छोटे शहरों के होटल, ढाबों आदि ने अधिक निराश किया है। एकाध जगह तो ऐसी घटिया सर्विस और ऐसे %$^&* वेटर कि उनको तो गाली देना भी मानो गाली का अपमान करना हो। और हैरत की बात यह कि ऐसा पर्यटन से कमाने वाली जगह के होटलों और ढाबों में हुआ। कदाचित्‌ उन लोगों को यह बात नहीं समझ आती कि यदि पर्यटकों के साथ ऐसा करेंगे तो कमाएँगे क्या और खाएँगे क्या क्योंकि पर्यटक उनके सड़े हुए होटल/ढाबों पर आना ही बंद कर देंगे!! या कदाचित्‌ ऐसा होगा कि वह इस खामख्याली में जी रहे होंगे कि एक बार पर्यटक से कमाई कर ली तो दोबारा उस पर्यटक के दर्शन होने नहीं, इसलिए नाराज़ भी हो गया तो क्या उखाड़ लेगा!! उनको इस बात का बिलकुल इल्हाम नहीं कि आज के समय में लाखों पर्यटक इंटरनेट जैसे माध्यम पर समीक्षाएँ आदि देखते हैं और किसी होटल आदि की नेगेटिव पब्लिसिटी होने पर वहाँ जाना पसंद नहीं करते। 🙄 इस पर तो खैर एक पुराण बाँचा जा सकता है, इसलिए आऊट ऑफ़ दिल्ली छोटे शहरों में हुए इन कटु अनुभवों पर अगली किसी तारीख में लिखूँगा।