जून में एन्सी ने नैनोफिक्शन (nanofiction) पर एक पोस्ट अपने ब्लॉग पर लिखी, और उसमें कुछ अति लघु कथाएँ भी छापी। जब जून के अंतिम सप्ताहांत पर छुट्टियाँ मनाने नाहन गए तो उस समय इस पर और ज़िक्र हुआ कि आखिर यह मामला है क्या।
जिस तरह फ्लैश फिक्शन (flash fiction) होती है कुछ उसी तरह नैनोफिक्शन (nanofiction) है, या यूँ कहें कि फ्लैश फिक्शन का और भी अधिक छोटा कर दिया गया रूप है। फ्लैश फिक्शन में प्रायः कथा 300 से 1000 शब्दों में होती है, कोई निर्धारित सीमा नहीं है, कथाकार पर निर्भर करता है, कुछ लोग 300 शब्दों में निपटा देते हैं और कुछ 1000 शब्दों तक ले जाते हैं। लेकिन नैनोफिक्शन में निर्धारित सीमा है, कथा 55 शब्दों से अधिक नहीं हो सकती। इसका प्रचलित नाम 55 फिक्शन (55 Fiction) है। अब इस नैनोफिक्शन अर्थात् 55 फिक्शन के कुछ नियम है:
- 55 शब्द या कम, इससे अधिक बिलकुल नहीं होने चाहिए
- एक सैटिंग होनी चाहिए
- एक या एक से अधिक पात्र होने चाहिए
- किसी तरह का संघर्ष/टकराव/मतभेद होना चाहिए
- कोई नतीजा होना चाहिए (सिर्फ़ नीति विद्या तक ही सीमित न हो)
जैसा कि साहित्यिक रचनाओं में होता है, रचनाकार की स्वतंत्रता के चलते इन नियमों को बहुत लोग अनदेखा कर देते हैं, आखिर किसी क्रिएटिव कार्य को किसी नियम में कैसे बांधा जा सकता है!! और यदि नियमों में बंधे रहें तो क्या बासीपन नहीं आ जाएगा? कुछ समय बाद एक ही तरह का मसौदा पुनः अवतरित नहीं होने लगेगा? संभावना तो अवश्य लगती है ऐसी, कदाचित् अन्य लोगों को भी लगी होगी या वे अपनी रचना को अधिक बंधन में नहीं बांधना चाहते होंगे, जितने कम बंधन उतना बढ़िया और आसान काम। 😉
तो मैंने सोचा कि इस पचपन शब्दिया कथा की विधा को मैं भी आज़मा के देखूँ, हो पाता है कि नहीं। मामला वाकई आसान नहीं है जैसा कि एन्सी ने पहले ही चेता दिया था, पचपन शब्दों में एक पूर्ण कथा को शुरु कर समेट देना टेढ़ी खीर है। पर देखते हैं कि हो पाता है कि नहीं, एकाध दिन में छापते हैं जो भी बन पड़ता है। :tup:
फोटो साभार Ravenelle, क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेन्स (Creative Commons License) के अंतर्गत
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