सप्ताह भर पहले ही की तो बात है – बन ठन की समस्या ने पुनः आ घेरा था कि मौसेरी बहन के विवाह में क्या पहना जाए!! तमाम तरह के सुझाव दिए गए, आखिरकार घरवालों की सम्मति से फैसला किया गया कि विलायती बन-ठन की जाएगी मॉडर्न इश्टाईल में – विलायती इश्टाईल ब्लेज़र जीन्स के साथ। यानि कि ब्लेज़र पर रोकड़ा खर्च करना ही पड़ेगा!! 😮 तो इसी मनसूबे को अन्जाम देने मामाजी के बड़े लड़के को साथ ले पिछले ही सप्ताहांत पहुँच गए क्नॉट प्लेस। वहाँ कई ब्रांड देखी – अमेरिकी कंपनी वैन ह्यूसेन (Van Heusen) का माल पसंद नहीं आया, घणा बड़ा शोरूम और चवन्नी छाप दुकान की भांति जरा-२ सा माल रखा हुआ था। ब्लैकबैरी (Blackberry) की दुकान ही दड़बे साइज़ की थी तो वहाँ भी कुछ न मिला। आखिरकार लुई फिलिप (Louis Philippe) के शोरूम में पहुँचे लेकिन वहाँ भी पंगा हो गया। जिस प्रकार का ब्लेज़र पसंद नहीं आया उसमें तो अपना साइज़ उनके पास था और जो ब्लेज़र पसंद आया उसमें माकूल साइज़ नहीं था – गड़बड़ घोटाला!!

अब समय था फॉलबैक ऑप्शन (fallback option) पर गिरने का (आईला, तभीच्च इसको फॉलबैक कहते हैं), तो हम लोग अविलंब रेमण्ड (Raymond) के शोरूम में पहुँचे, तसल्लीबक्श अंदाज़ में कपड़ा पसंद किया गया – जितने का कपड़ा आया उतने में तो दो माह का इंटरनेट कनेक्शन का भाड़ा निकल आए और फिर भी पैसे बच जाएँ!! 😮 सिलाई का दाम भी ऐसा कि क्या कहें – मास्टर जी ने बेतकल्लुफ़ी से नाप लिया और उतनी ही बेतकल्लुफ़ी से सुना कि अपने को ब्लेज़र कैसा चाहिए। कुछ-२ वैसा ही एक ब्लेज़र लगभग मेरे ही नाप का उनके पास तैयार सा पड़ा था तो वह भी दिखा दिया कन्फर्मेशन के लिए!!

इन औपचारिकताओं की पूर्ति हुई और हमको बिल थमाया गया जिसको क्रेडिट कार्ड के हवाले किया गया जो कि उसने राजी-खुशी उठा लिया और हमसे जमानतदार के रूप में दस्तखत करवा लिए गए!! 😈

अभी इस फटके के गम से उबरना न हो पाया था कि कल रात माता जी ने जले पर नमक छिड़क दिया। कैसे? उन्होंने अपनी अलमारी में से निकाल मुझे लुई फिलिप (Louis Philippe) की (कपड़े वाली) वह सुईड जैकेट (Suede Jacket) दिखाई जिसे मैंने पिछले वर्ष सर्दियों में इस तरह के मौकों के लिए खरीदा था!! अब इसकी उपस्थिति का पहले ध्यान होता तो ब्लेज़र पर फटका नहीं लगता!! 🙁

अब समझ आ रहा है कि अपना इन्फोर्मेशन ओवरलोड (information overload) हो गया है, दिमाग की मेमोरी फुल हो चुकी है!! इसलिए अब हर चीज़ का एक कैटालॉग (Catalogue) बनाना पड़ेगा, एक इन्वेन्टरी लिस्ट (Inventory List) की भांति ताकि हर समय सनद रहे कि क्या उपलब्ध है और क्या नहीं है, तभी ऐसे फटकों से बचाव होगा।

फिलहाल तो बस यही कह अपने को सांत्वना दे रहा हूँ कि होनी को कोई नहीं टाल सकता – रेमण्ड वाले की बिक्री मुझसे होनी थी इसलिए हो गई, मुझे फटका लगना था इसलिए लग गया!!