विश्व 20-20 मुकाबले में इंगलैंड ने भारत को बाहर का रास्ता दिखाया और इसी के साथ क्रिकेटिया मूढ़ लोगों की बकवास शुरु हो गई….. यानि कि कप्तान धोनी को गालियाँ और हार को धोनी के माथे मढ़ना। रोने वाले रो रहे हैं कि सहवाग को नहीं खिलाया इसलिए हार गए। बेवकूफ़ों को इतनी अक्ल नहीं है कि उसको चोट लगी हुई है इसलिए धोनी ने उसको बाहर बिठाया हुआ है, चोट यदि विकट हो गई तो फिर सहवाग लंबे समय के लिए बाहर हो लेगा। लेकिन मूढ़ लोगों को यह बात समझ नहीं आती, उनकी सुनो तो सहवाग ने अकेले ही मैच जीत लेना था, जैसे सहवाग न हुआ हनुमान का प्रहार हो गया कि जिसको पड़ा उसका बोलोराम हुआ!! सहवाग को लेकर धोनी की जान को रोने वाले कदाचित्‌ पिछले ही महीने समाप्त हुए आईपीएल (IPL) और उसमें सहवाग के जलवों को भूल रहे हैं, कितनी तोप चलाई थी सहवाग ने उसमें कोई बताए ज़रा!! 🙄

और जो लोग सहवाग को लेकर धोनी की जान को नहीं रो रहे वे उसकी बल्लेबाज़ी को लेकर रो रहे हैं। आजकल लोग धोनी की जान को वैसे ही रोते हैं जैसे पहले सौरव गांगुली और सचिन तेन्दुलकर की जान को रोते थे। मैच के बाद धोनी ने कहा कि खराब बल्लेबाज़ी के कारण उनकी हार हुई है, बात लगभग दुरुस्त है, 150 रन का लक्ष्य कोई कठिन लक्ष्य नहीं था। इस बात को लेकर लोग रो रहे हैं कि धोनी को शर्म आनी चाहिए कि सिर्फ़ उसकी बल्लेबाज़ी खराब थी। अब कोई मुझे बताए कि बाकी किस बल्लेबाज़ ने तोप चलाई!!

गौतम गंभीर – 26 गेंदों में 26 रन
रोहित शर्मा – 8 गेंदों में 9 रन
सुरेश रैना – 5 गेंदों में 2 रन
रवीन्द्र जडेजा – 35 गेंदों में 25 रन
युवराज सिंह – 9 गेंदों में 17 रन
महेन्द्र सिंह धोनी – 20 गेंदों में 30 रन
युसुफ़ पठान – 17 गेंदों में 33 रन

अमां धोनी कप्तान है कोई सुपरमैन नहीं है कि जब भी बाकी टीम आँख मूंद खड्डे में गिर जाए तो उनको बाहर निकल लाए। उसकी बल्लेबाज़ी को रोने से पहले यह तो बताओ कि दूसरा कौन सा खिलाड़ी तोप चला गया? गंभीर फेल हुआ, रोहित शर्मा मानो बल्लेबाज़ी भूल गया है, सुरेश रैना मानो नया-२ बल्ला पकड़ना सीखा है, रवीन्द्र जडेजा ने तो कदाचित्‌ भारतीय टीम में अपने करियर का गला घोंट दिया है, युवराज की तो आदत ही है एक मैच में ठोक ठाक के स्कोर मारने की और फिर अगले दस पंद्रह मैचों में फुस्स होने की जब तक टीम से निकाले जाने की नौबत न आ जाए!! और उधर दूसरी ओर गेंदबाज़ी में इशांत शर्मा का तो लगता है कि गेंदबाज़ी का हुनर बालों में था, बाल क्या कटवाए, सितारे गर्दिश में आ गए जो हर मैच में अपनी धुलाई करवा रहा है!!

लेकिन इन सभी को कोई नहीं रोएगा, रोया हमेशा कप्तान की जान को ही जाता है यह भारतीयों का एकमात्र नियम है। अगर जीत मिलती है तो जिसने रन मारे या विकेट लिए वह हीरो है लेकिन यदि हार गए तो कप्तान निकम्मा और $%^# हो जाता है। फिर चाहे वह मोहम्मद अज़हरूद्दीन हो या सचिन तेन्दुलकर, सौरव गांगुली हो या महेन्द्र सिंह धोनी, हर हार का ज़िम्मेदार कप्तान ही होता है।

सौरव गांगुली को रोने वाले और अब धोनी को रोने वाले यह नहीं जानते कि गांगुली के रूप में वर्षों बाद एक बढ़िया कप्तान भारतीय क्रिकेट टीम को मिला था जो कि वास्तव में कप्तानी के लायक था और यह उसने साबित भी किया था (भारतीय क्रिकेट इतिहास में सबसे अधिक सफ़ल कप्तान)। गांगुली के जाने के बाद मानो ग्रहण लग गया था जो राहुल द्रविड़ की चंपू कप्तानी का दौर चला, शनि की दशा भारी थी!! अनिल कुंबले के समय टीम थोड़ी संभली (टैस्ट मैचों में) और वहीं दूसरी ओर धोनी ने एकदिवसीय टीम को वापस जीत के लिए भूखा शेर बनाया!!

मैं यह नहीं कहता कि धोनी की गलती यहाँ नहीं है, कदाचित्‌ उसको इशांत शर्मा को बिठा के प्रवीण कुमार को मौका देना चाहिए था, पिछले मैच में भी रूद्र प्रताप सिंह को इशांत शर्मा की जगह खिलाया जा सकता था, आखिर आर.पी.सिंह अच्छी फॉर्म में है और यह उसने कल भी दिखा दिया। लेकिन सारा का सारा दोष धोनी के सिर मढ़ देना मुझे व्यक्ति के मूढ़ होने का सूचक जान पड़ता है!!

 
 
फोटो साभार सीमा के के, क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेन्स के अंतर्गत