….. बिन बुलाए मेहमान की तरह आता है अपनी मर्ज़ी से जिसके जाने का कोई समय तय नहीं होता!

मेरा भी समय खराब ही चल रहा है पिछले कुछ समय से, कदाचित्‌ शनि की दशा चल रही है। साल के शुरु में घर से बेघर हो बेगाने शहर में अब्दुल्ला दीवाने हुए, चैन की सांस न मिली (हर समय किसी न किसी चीज़ में अटकी जो रहती)। सोचा वापस आकर ये करेंगे वो करेंगे लेकिन झण्डा कहीं भी न गड़ा सके अभी तक, पेलम पिलाई लगी हुई है बस!! 🙂

इधर ऑफिस के काम के लिए अभी तक अपना लैपटॉप प्रयोग कर रहे थे। जब मुम्बई में थे डेस्कटॉप मिला हुआ था, वह अब भी हासिल है, वहीं ऑफिस में रखा है और लगभग नियमित ही प्रयोग हो जाता है। लेकिन चूंकि डेस्कटॉप को साथ टाँगकर नहीं घूमा जा सकता इसलिए अपने लैपटॉप का प्रयोग कर रहे थे और ऑफिस से लैपटॉप की मंज़ूरी आने की प्रतीक्षा थी। बॉस ने यह बता दिया था कि एक रकम निश्चित कर दी जाएगी और उतने बजट में मनपसंद लैपटॉप ले सकोगे, उस बजट से बाहर का लेते हो तो फालतू लगने वाले पैसे अपनी जेब से डालने होंगे। बस अब बजट के आने की प्रतीक्षा थी। दो सप्ताह पहले वह भी आ गया, बॉस ने बता दिया कि यह रहा बजट, एप्पल का मैकबुक प्रो (Apple MacBook Pro) ले लो। 😮 यह सुन मानो मुझ पर तो गाज गिरी, मन दहल गया यह सोच कि क्या अब डार्क साइड की ओर कदम बढ़ाना होगा, उस गली जाना होगा जिसके पते नक्शे को अपनी एटलस से निकाल फाड़ा था किसी ज़माने में?!! 🙁 अनहोनी की आशंका लिए बॉस से पूछा कि क्या इसके बिना काम नहीं चल सकता तो जो शर्त रखी गई उसको विण्डोज़ पर पूरा करने की कोशिश की गई कि यदि सफ़ल हुए तो मैकबुक लेने की पाबंदी न होगी और अपन आराम से सोनी वायो (Sony Vaio) ले सकेंगे!! पर जैसा कि मैंने कहा, समय खराब है, शनि की दशा हावी है, इसलिए सफ़लता न मिली और आखिरकार मैकबुक ले लिया!! हाय रे मेरी प्रिय आज़ादी, उसका तो मानो कत्ल हो गया!! 😥

खैर अब ले लिया तो ले लिया, फैले हुए रायते पर क्या अफ़सोस करना। बहरहाल, तो अब उस पर सैटअप करने की मुहीम चालू हुई बीते शनिवार को ताकि ऑफिस का सारा तामझाम उस पर डाल के मैकबुक पर शिफ़्ट हो जाएँ (केवल ऑफिस के काम के लिए) और अपने डैल एक्सपीएस (Dell XPS) की साफ़ सफ़ाई करें। हालांकि मैकबुक पर लॉयन (Mac OSX Lion) डला हुआ आया फिर भी एक बार सॉफ़्टवेयर अपडेट चला दिया और उसने दुखी होते हुए दो घण्टे लगा कर डेढ़ जीबी (1.5GB) का अपडेट डाऊनलोड किया। एप्पल से ऐसी ही धीमी गति की आशा थी क्योंकि इतने से डाऊनलोड को डेढ़ घण्टे से अधिक नहीं लगना चाहिए था क्योंकि मेरा इंटरनेट कनेक्शन किसी और काम में प्रयोग नहीं हो रहा था और सिर्फ़ वह अपडेट डाऊनलोड हो रहा था!! खैर, अपडेट डाऊनलोड हुआ, इंस्टॉल भी हो गया, बल्ले भई। एप्पल आईडी (Apple ID) बना ली और मैकबुक में अपने खाते से जोड़ भी दी। यह कार्य तीसरे प्रयास में हुआ क्योंकि पहली दो बार एप्पल का पर्फेक्ट सिस्टम फेल हो गया और सही से आईडी खाते से जोड़ नहीं पाया (न कोई संदेश/चेतावनी ही दी कि फेल हो गया तथा क्यों हुआ)। या हो सकता है सिस्टम को विश्वास न आ रहा हो कि मैंने एप्पल आईडी बनाई है और मैकबुक से उसको जोड़ रहा हूँ!! 😉 वैसे शुक्र है कि तीसरी बार में हो गया अन्यथा मैंने तो इसी कार्य के लिए दो घण्टे निकाल के रखे हुए थे कि रात को सोएँगे नहीं क्योंकि इतना समय तो एप्पल के एडवांस्ड ऑपरेटिंग सिस्टम और यूटोपिअन (Utopian) प्लैटफॉर्म को लग ही जाएगा एक आईडी की वैधता जाँचने और उसको खाते से जोड़ने में!! 😀

बहरहाल, आईडी जुड़ गई, और मैं सोच रहा था कि कमाल है, अभी तक एप्पल ने मेरे से क्रेडिट कार्ड नहीं माँगा। मैक एप्प स्टोर (Mac AppStore) के एप्प का नुमाइंदा डॉक में मौजूद बता रहा था कि किसी एप्प का अपडेट उपलब्ध है, तो उसको खोला। उसने भी एप्पल आईडी माँगा, वहाँ लॉगिन किया तो लॉगिन करते ही उसने क्रेडिट कार्ड माँग लिया। यानि खरीदा अभी कुछ नहीं लेकिन एप्पल को क्रेडिट कार्ड पहले ही चाहिए। शुक्र है कि क्रेडिट कार्ड ही माँगा, गुर्दा या किडनी वगैरह नहीं माँग ली, वर्ना इनका क्या भरोसा!! 😉 तो क्रेडिट कार्ड दे दिया और एप्पल ने तुरन्त ही उस पर एक डॉलर का चार्ज मार दिया। कहने को कहेंगे कि यह जाँच के लिए किया जाता है कि कार्ड वैध है कि नहीं, परन्तु इनसे गूगल की तरह इस शराफ़त की आशा नहीं कर सकते की नल्ला चार्ज मारेंगे यानि कि वह डॉलर रिवर्स कर वापस लौटा देंगे। सोचने वाली बात है कि इनके जितने मैक/आईफोन/आईपॉड/आईपैड बिकते हैं और जितने आईट्यून्स स्टोर (iTunes Store) पर खाते बनते हैं उसमें ये प्रत्येक खाते पर एक डॉलर का चार्ज करते हैं (जाँच करने के लिए) तो इस लिहाज़ से कितने फोकटी डॉलर कमा रिये होंगे ये लोग!! और हम अपने यहाँ के राजनेताओं को खामखा करप्ट कहते हैं!! 😉 तो मन खराब नहीं करा मैंने, पहले से ही जब ऐसी हरकतों की आशा हो तो मन खराब नहीं होता, इसलिए मन में बस यही था कि तेल देखेंगे और तेल की धार देखेंगे। 🙂

मैक एप्प स्टोर से एक फोकट का कोड एडिटर डाऊनलोड किया (ठीक ठाक है इस पर नहीं वरन्‌ फोकटी है इस बात पर अधिक हैरानी थी), ड्रॉप बॉक्स (Dropbox) इंस्टॉल किया और फिर सोचा कि देखें मैक के लिए कीपास (KeePass) उपलब्ध है कि नहीं क्योंकि विण्डोज़ और एण्ड्रॉयड पर तो वही प्रयोग करता हूँ। मैक के लिए कीपास मिला कीपासएक्स (KeePassX) के नाम से जिसकी समस्या यह है कि वह सिर्फ़ स्नो लेपर्ड (Snow Leopard) तक के लिए है और एप्पल से बैकवर्ड कंपैटिबिलिटी (backward compatibility) की आशा करना ऐसा है जैसे बीन बजाने पर भैंस के झूमने की आशा करना!! 😉 एक और शगूफ़ा मिला किसी गुलफ़ाम का बनाया हुआ, कीपास2 फॉर ओएस एक्स, उसके लिए उसको डॉट नेट चाहिए। अब माइक्रोसॉफ़्ट से तो डॉट नेट रनटाईम मिलेगा नहीं मैक के लिए इसलिए मोनो को इंस्टॉल किया (यदि डॉट नेट एप्पल का होता तो शर्तिया वह मोनो जैसे किसी प्रोजेक्ट पर केस ठोक के उसको बंद करा देता)। मोनो इंस्टॉल करने के बाद इसको चलाया और पंगे/स्यापे चालू!! कभी चले कभी नहीं, ऐसे-2 ऑप्शन दे कि वो मैक में उपलब्ध ही नहीं क्योंकि यह और कुछ नहीं कीपास ही है बस उसको मोनो के साथ चलाने के लिए कहा गया है, लिनेक्स पर भी चल जाएगा!! यानि कि कीपास का मामला खटाई में जाता लगा। अब एक तो पासवर्ड मैनेजर चाहिए ढंग का और मैं विण्डोज़/एण्ड्रॉयड के लिए अलग और मैक के लिए अलग नहीं प्रयोग करना चाहता वरना मैनेज करना एक दुःस्वप्न हो जाएगा। तो सोचा कि वनपासवर्ड (1Password) आज़मा के देखा जाए। यह फोकटी नहीं है और एक प्रयोक्ता के लाइसेन्स के लिए पचास डॉलर माँगता है, विण्डोज़ तथा मैक वाले साथ लेने पर कुल साठ डॉलर हैं शायद। तो इसका ट्रॉयल डाऊनलोड कर इंस्टॉल किया, कोसते हुए कीपास का सामान इसमें स्थानांतरित किया जो कि बहुत घटिया तरीके से हुआ और इसको चलाने के पाँच मिनट में ही इसके आगे हाथ जोड़ दिए और अन-इंस्टॉल कर दिया, बहुत ही वाहियात सॉफ़्टवेयर है, यूज़ेबिलिटी (usability) के नाम पर सिफ़र और इसके पचास डॉलर माँगते हैं, जबकि इसको प्रयोग करने के लिए डॉलर प्रयोगकर्ता को मिलने चाहिए!!

देखा जाए तो गलती वनपासवर्ड को बनाने वालों की कम और एप्पल की अधिक है, बढिया जगमगाते इंटरफेस को अधिक तवज्जो देना और यूसेबिलिटी को कम या देना ही नहीं एप्पल के सामान के डीएनए में है। उदाहरणार्थ – मैक में राइट क्लिक का कंसेप्ट नहीं होता, एप्पल के माऊस में सिर्फ़ एक बटन होता है लेफ़्ट क्लिक के लिए, मैकबुक के ट्रैकपैड पर सिर्फ़ एक बटन होता है लेफ़्ट क्लिक के लिए। राइट क्लिक यदि करना है तो कीबोर्ड पर कंट्रोल बटन दबा के क्लिक करने पर राइट क्लिक वाला काम होगा। विण्डोज़ में जो कार्य कंट्रोल वाले बटन से होते हैं (जैसे कट/कॉपी/पेस्ट) उनके लिए मैक में कमाण्ड बटन प्रयोग में आता है लेकिन कंट्रोल बटन भी होता है इसलिए धोखा न खाएँ।


गूगल में राइट क्लिक लिखने पर ही मैक आ जाता है यानि कि लोग इसी को ढूँढते हैं, कल्लो बात आम लोगों के लिए बने ऑपरेटिंग सिस्टम की!!


अब यह डींग मारने में क्या जाता है कि मैकबुक और मैक ऑपरेटिंग सिस्टम साधारण लोगों के लिए बना है, सब कुछ अपने आप समझ में आ जाए इस बात का ख्याल रखा गया है?!! मुझे यह राइट क्लिक कैसे होगा जानने के लिए गूगल का सहारा लेना पड़ा, अपने आप दिमाग में नहीं आया!! अब मैं गंवार नहीं हूँ, कई वर्षों से सॉफ़्टवेयर डेवेलपर का पेशा संभाले हुए हूँ, कई वर्षों से कंप्यूटर प्रयोग कर रहा हूँ, आईक्यू (IQ) 140 से ऊपर है, चाहूँ तो कल मेन्सा सोसाइटी की सदस्यता का पर्चा सुलझा के सदस्यता पा लूँ, परन्तु यह राइट क्लिक मुझे अपने आप दिमाग में बत्ती जला के न आया। यह तो साधारण सी बात थी, आगे के शगूफ़े और भी हाई फाई हैं। विण्डोज़ में वाईफ़ाई नेटवर्क बनाना हो और इंटरनेट कनेक्शन साझा करना हो तो बहुत आसान है, वाईफाई नेटवर्क बनाने पर वहीं विकल्प दे देता है यदि इंटरनेट कनेक्शन साझा करना हो परन्तु मैक में तो मानो हर ज़रा से काम के लिए सिर एप्पल में फोड़ना पड़ता है। वाईफाई नेटवर्क तो बना लो लेकिन इंटरनेट कैसे साझा करोगे? यह ढूँढते-2 इत्तेफ़ाक से सिस्टम प्रेफरेन्स यानि कंट्रोल पैनल में मिला, कुछ और देर नहीं मिलता तो पुनः गूगल के पास जाना पड़ता उत्तर खोजने के लिए!!

इधर याद आया, स्वामीजी मैक की हिमायत में कुछ समय पहले बोले थे कि दस सेकण्ड में चालू होता है। वह याद आया तो सेकण्ड भी गिन लिए जी हमने, पूरे तीस सेकण्ड से एकाध ऊपर ही लगा कोल्ड स्टॉर्ट होने में आई5 तथा आठ जीबी रैम वाले मेरे मैकबुक को जबकि यही आई5 और आठ जीबी वाले मेरे डैल एक्सपीएस पर विण्डोज़7 मात्र बीस-बाईस सेकण्ड में कोल्ड स्टॉर्ट होती है। यदि आप दस सेकण्ड स्लीप से वेकअप की बात कर रिये थे तो जनाब विण्डोज़7 भी उतने में हो जाती है!! और यह तब है जब मैक बिलकुल नया है और कुछ डला हुआ नहीं है जबकि विण्डोज़ पर स्टॉर्टअप पर कई तामझाम डाले हुए हैं जैसे फायरवॉल, एण्टीवॉयरस, माईएसक्यूएल डॉटाबेस इंजन आदि। 😀 तो? चक दे फट्टे नाप दे किल्ली, रात नूं जलंधर सवेरे दिल्ली!! 😀

तो यह था मेरा मैक के साथ पहले दिन का अनुभव, दास्तान समय मिलने पर जारी रहेगी!! 🙂
 
अपडेट: खुदा का शुक्र है, कीपासएक्स (मैक के लिए कीपास जिसका ज़िक्र मैंने ऊपर किया है) आखिरकार चल गया। विण्डोज़ वाले कीपास जितने विकल्प नहीं हैं (एक-दो ऐसे हैं जिनकी मुझे नियमित प्रयोग करने की आदत है) परन्तु फिर भी जो अन्य विकल्प सामने थे उनसे तो हर हाल में बेहतर है और साथ ही यह भी बढ़िया बात कि मुझे अपना कीपास डाटाबेस किसी दूसरे सॉफ़्टवेयर के डाटाबेस में नहीं बदलना होगा, यानि विण्डोज़ पर जो डाटाबेस चलेगा वही मैक पर भी चलेगा। स्क्रू यू वनपासवर्ड, कीपास और कीपासएक्स ने चक दिए फट्टे!! :tup: