मैं न जाने कौन सी दुनिया में रहता हूँ, कदाचित् ऐसा ही कुछ कोई सोचे जो यह पढ़ेगा। अभी एकाध सप्ताह पहले तक मुझे लोकपाल बिल आदि के विषय में नहीं पता था, अच्छी तरह से तो अभी भी नहीं पता है। पर जो थोड़ा बहुत इसके विषय में पढ़ा है उससे यह पता चला है कि इस बिल के पास हो जाने से लोगों द्वारा एक लोकपाल का चुनाव होगा जो कि सरकार के मंत्रियों, सरकारी अफ़सरों आदि पर नज़र रखेगा और भ्रष्ट मंत्रियों तथा अफ़सरों को सज़ा दिलवाना जिसका कार्य होगा। यह लोगों द्वारा चुना गया उनका प्रतिनिधि लोगों के लिए कार्य करेगा, इससे भ्रष्टाचार काबू में आएगा और भ्रष्टाचार रहित समाज का सपना साकार होगा। फेसबुक पर कई लोगों ने अन्ना हज़ारे के परिचय वाला एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें लोकपाल बिल से संबन्धित कुछ ऐसे ही स्वप्न का स्वप्न अन्ना हज़ारे ने दिखाया है। वे इसी को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर आमरण अनशन पर भी बैठे।
हो सकता है कि लोकपाल बिल आने से कुछ अच्छा हो परन्तु मेरी समझ में तो अभी यह ही नहीं आया है कि इससे फर्क क्या पड़ेगा? लोकपाल और उनके मातहत जूनियर लोकपाल एक इंडीपेन्डेन्ट बॉडी होंगे भारतीय चुनाव आयोग की तरह और उन पर किसी सरकार की मनमानी नहीं चलेगी, बाकी काम उनका वही होगा जो एंटी करप्शन विभाग आदि का होता है। ठीक है मान लिया कि निष्पक्ष होने के कारण लोकपाल को कार्य करने में सहूलियत होगी और मेरा अपना मानना भी यही है कि एंटी करप्शन विभाग को किसी सरकार आदि के नीचे नहीं होना चाहिए क्योंकि भ्रष्टाचार तो पब्लिक ऑफिस में भी हो सकता है और यदि वे जिस ऑफिस के आधीन हैं उसी में है तो यह कॉन्फ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट (conflict of interest) का मामला हो जाता है जिस कारण उन लोगों को अपना कार्य ईमानदारी से करने में दिक्कत हो सकती है या उनकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह भी लग सकते हैं।
पर मुद्दा यह है कि जिस तरह से लोकपाल बिल को प्रक्षेपित किया जा रहा है वह अपने को समझ नहीं आया। अफ़सरों, ब्यूरोक्रैट्स (bureaucrats) आदि को तो छोड़ दो, वे तो अपनी काबिलियत के चलते चुने जाते हैं लोकतंत्र के चलते नहीं परन्तु सरकार और मंत्री तो (ऑलमोस्ट) लोक मत के बूते पर ही आते हैं न? इनको प्रायः जनता ही चुनती है तो इनकी करतूतों के लिए भी तो जनता ही ज़िम्मेदार है न? आज जो लोग कांग्रेस की सरकार को अभी तक की सबसे भ्रष्ट सरकार का तमगा देने को तत्पर रहते हैं, मुझे याद है कि पिछले चुनावों के समय यही लोग कांग्रेस की तारीफ़ करते नहीं थकते थे कि बीजेपी की सरकार ठीक सी थी लेकिन बदलाव आना चाहिए इसलिए फॉर ए चेन्ज कांग्रेस की सरकार चाहिए। 😮 और आज वही लोग कांग्रेस की सरकार को गरियाते हैं। लो कल्लो बात, और हम नेताओं को बिना पैन्दी का लोटा कहते हैं जो मौका देख कहीं भी लुढ़क लेते हैं?!! उस समय कनफ़्यूजन मुझे यह था कि लोगों को साला चेन्ज किस बात का चाहिए था?! कोई दाल भात है कि रोज खा-२ के ऊब गए तो स्वाद बदलने के लिए चिली चिकन नोश फ़र्मा लिया? अमां अपनी बीवी से नहीं बोर होते? उसको भी बदलते हो क्या फॉर ए चेन्ज? या अपने बच्चों और माँ-बाप के साथ ऐसा करते हो? 🙄
बहरहाल, तो बात अपने को यह समझ नहीं आई कि लोकपाल ऐसा क्या उखाड़ लेंगे जो जनता के मौजूदा प्रतिनिधि नहीं उखाड़ पाए? क्या लोकपाल भ्रष्ट नहीं हो सकते? या फिर उनको मंगल ग्रह से आयात किया जाएगा फॉर द जॉब? या साईबॉर्ग्स (cyborgs) आदि को लोकपाल बनाया जाएगा जिनको ईमानदारी और कर्मठता की घुट्टी बिट्स एण्ड बाईट्स (bits & bytes) में पिलाई गई होगी? 😐 मॉनिटर को कौन मॉनिटर करेगा? भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कानून बनेंगे यह तो बढ़िया बात है लेकिन यदि मात्र कानून बना देने से बात बन जाती और उसकी अभिपूर्ति हो जाती तो फिर न अन्ना हज़ारे अनशन पर जाते, न ही इतना हो हल्ला मचता और न ही अपनी कनफ़्यूजन में मैं यह सब बकवास लिख रहा होता!! कानून में ताकत सिर्फ़ तभी होती है जब कानून माना जाए और जो न माने उसको मनवाया जाए, अन्यथा वह मात्र किसी फाईल अथवा किताब में कोरे कागज़ पर स्याही की चंद लकीरों से अधिक कुछ नहीं होता।
इस सब को भी यदि साइड में रख लोकपाल के चुनाव के विषय में देखें तो मामला भयावह लगता है! यदि मैंने गलत नहीं पढ़ा है तो मौजूदा लोकपाल बिल के प्रस्ताव में लोकपाल का चुनाव भारत रत्न से सम्मानित लोगों, भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेताओं, सुप्रीम तथा हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीशों, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, मुख्य इलेक्शन कमिशनर, लोक तथा राज्य सभा के अध्यक्षों आदि के हाथ में होगा। इनमें से सिर्फ़ लोक सभा अध्यक्ष जनता द्वारा चुना व्यक्ति होता है, तो लोकपाल का चुनाव जनता कैसे करेगी? भारत रत्न से सम्मानित लोग चुनेंगे? भारत रत्न से तो लता मंगेशकर भी सम्मानित हैं और नेलसन मण्डेला भी, इधर सचिन तेन्दुलकर को भी भारत रत्न देने की माँग की जा रही है। इन लोगों को यह सम्मान अपने-२ क्षेत्रों में नई ऊँचाईयाँ प्राप्त करने के कारण मिला है, कि अपने-२ क्षेत्रों में ये रत्न हैं, लेकिन इसका यह तो कतई अर्थ नहीं निकलता कि इनको देश चलाने की समझ भी है या ये इस काबिल हैं कि इनको किंग मेकर बनाया जाए!! लता जी अच्छा गायन करती हैं, उनका स्वर बहुत मीठा है परन्तु देश के विषय में वे सही फैसला लेंगी यह मुझे नहीं पता। मुझे सचिन का खेल पसंद है, क्रिकेट के इतिहास में उनके जैसा कोई नहीं हुआ और उनको भारत रत्न मिलना चाहिए लेकिन उनके खेल से देश के संचालन का क्या लेना देना है? और नेलसन मण्डेला, उनका भारत से क्या लेना देना और क्यों वे भारत के लिए कुछ करें? नोबेल पुरस्कार विजेताओं की बात करें तो उनका भारतीय नागरिक होना भी अनिवार्य नहीं है तो इस श्रेणी में वी एस नाएपॉल और अमर्त्य सेन भी आते हैं। और यदि भारतीय नागरिकों की बात करें तो अरुंधति रॉय भी आती हैं जिन पर कुछ ही समय पहले कदाचित् देशद्रोह का मुकदमा चलाए जाने की बातें हो रही थी!! नेशनल ह्यूमन राईट्स कमीशन यानि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, ये लोग वही हैं न जो कहते हैं कि आतंकवादियों को सज़ा न देकर उनके साथ रहम-दिली से पेश आना चाहिए? तौबा!! क्या कोई सर्कस बन रहा है? ये लोग उस व्यक्ति का चुनाव करेंगे जो कि कदाचित् भारत के सर्वशक्तिमान पद पर पदासीन होगा, जिसके पास किसी का भी बैंड बजाने और किसी की भी बारात निकालने का अधिकार होगा?!! आगे चलकर यह तानाशाही या राजशाही नहीं बनेगी इसके लिए क्या प्रावधान है? लोकतंत्र तो वैसे भी भारत में मज़ाक बनकर रह गया है!! क्या हम लोग स्वयं ही आत्मदाह के मार्ग पर जा रहे हैं, चिता तैयार कर उस पर बैठने जा रहे हैं एक चिंगारी की प्रतीक्षा में??!! 😮
हमारा समाज भेड़-बकरियों से अधिक अलग नहीं है, हम भी उनकी ही भांति जिधर हांक दिए जाएँ वहीं चल देते हैं। जितने लोग लोकपाल बिल और अन्ना हज़ारे के समर्थन में ट्विट्टर, फेसबुक, ब्लॉगों इत्यादि पर तड़ा-तड़ कीबोर्ड तोड़े जा रहे हैं इनमें से यदि चौथाई को भी पता हो कि लोकपाल बिल से आम जनता और उनको क्या लाभ होगा तथा भ्रष्टाचार कैसे समाप्त होगा तो मुझे बहुत आश्चर्य होगा!!
हमारे पास भ्रष्टाचार मुक्त समाज का स्वप्न नहीं है, हमारे पास तो मात्र स्वप्न का स्वप्न है!! :tdown:
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