डिजिट ब्लॉग की दीवार गिर गई, मरम्मत का काम करना बाकी है इसलिए यह तकनीकी बकवास यहाँ अपने देशज इश्टाइल में

फायरफॉक्स (Firefox) मैं एक अरसे से इस्तेमाल करता आ रहा हूँ, उस समय से जब इसका नाम फायरफॉक्स न होकर फायरबर्ड (Firebird) हुआ करता था और अपने शुरुआती दौर में बीटा संस्करण में था। उपलब्ध ब्राऊज़रों की खेती में इसके अतिरिक्त या तो इंटरनेट एक्सप्लोरर 6 (Internet Explorer 6) था या फिर ऑपरा (Opera)। ऑपरा उन दिनों फोकट में नहीं मिलता था और इतना कोई खास भी नहीं था। और इंटरनेट एक्सप्लोरर 6 (Internet Explorer 6) को मैक्सथन (Maxthon) नामक फ्रंटएण्ड (front end) के साथ प्रयोग किया जाता था। फायरबर्ड धीरे-२ तरक्की करता गया और मोज़िला (Mozilla) ने इसका नाम बदल के फायरफॉक्स कर दिया (क्योंकि फायरबर्ड नामक एक मुक्त स्रोत [ open source ] डाटाबेस सॉफ़्टवेयर है और उन्होनें हल्ला किया था नाम चुराने पर)। ब्राउज़र मुझे भा गया तो धीरे-२ इस पर पूरी तरह शिफ़्ट हो गया और इंटरनेट एक्सप्लोरर 6 को नमस्ते कर दी। जब इंटरनेट एक्सप्लोरर 7 (Internet Explorer 7) आया तो वह भी फालतू ही लगा, मानो सिर्फ़ वर्ज़न बम्प (version bump) है इसलिए उसको नहीं डाला। जब इंटरनेट एक्सप्लोरर 8 ( Internet Explorer 8 ) आया तो कुछ लगा कि हाँ माइक्रोसॉफ़्ट (Microsoft) ने कुछ तरक्की की है इस मामले में और अच्छा अपग्रेड निकाला है, तो उसको इंस्टॉल कर लिया लेकिन मुख्य ब्राउज़र अभी भी फायरफॉक्स ही था। फायरफॉक्स में काम के प्लगिन और टूलबार भी थे जिनकी आदत पड़ गई थी इसलिए यह भी एक वजह थी कि यह मुख्य ब्राउज़र था।

परन्तु एक दिक्कत जो शुरु से इसमें है वह है मेमोरी लीक (memory leak) की समस्या, इसमें गार्बेज कलेक्शन (garbage collection) बहुत ही वाहियात है। यानि आम भाषा में कहें तो इसका अर्थ यह है कि यदि फायरफॉक्स को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दो तो यह रैम (RAM) चूसना शुरु कर देता है, और ज़रुरत न होने पर भी चूसता रहता है। हर वर्ज़न रिलीज़ पर मोज़िला वाले आश्वासन देते कि मेमोरी लीक की समस्या ठीक कर दी है लेकिन हर बार वह आश्वासन ढोल ही साबित होता, सिर्फ़ आवाज़ और अंदर से खाली!! 😈 कैजुअल ब्राउज़िंग में तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन यदि कंप्यूटर में मात्र 2-3 जीबी (2-3 GB) रैम ही है और फायरफॉक्स में 6-7 टैब खुले हुए हैं और साथ में एक आईडीई (IDE) भी खुला हुआ है तथा वेब-सर्वर और डाटाबेस भी चल रहा है तो कंप्य़ूटर की रोने वाली हालत हो जाती है क्योंकि 800-900 एमबी (800-900 MB) रैम तो फायरफॉक्स ही चूस जाता है। 😡 तो आखिरकार तंग आकर मैंने फायरफॉक्स को भी नमस्ते कर दी और गूगल क्रोम (Google Chrome) को मुख्य ब्राउज़र बना लिया। इंटरनेट एक्सप्लोरर 9 (Internet Explorer 9) आया तो वह डाल लिया, प्रयोग करने में यह इंटरनेट एक्सप्लोरर 8 से काफ़ी अच्छा और हल्का है लेकिन अभी इसका प्रयोग मौसमी ही है, इसको भी प्रयोग करना चालू करेंगे। :tup: फायरफॉक्स भी पड़ा हुआ है सिर्फ़ और सिर्फ़ फायरबग (Firebug) के कारण क्योंकि उसका कोई समानांतर प्लगिन क्रोम के लिए अभी उपलब्ध नहीं है। लेकिन फायरफॉक्स अब तभी चालू होता है जब उसकी आवश्यकता होती है अन्यथा वह बंद ही रहता है। :tdown:

इधर नया फोन लिया, विनोद मिश्रा काफ़ी समय से पीछे पड़ा था कि विण्डोज़ मोबाइल (Windows Mobile) को छोड़ एण्ड्रॉयड (Android) पर आ जाओ। नया वाला विण्डोज़ फोन (Windows Phone) मुझे कुछ खास जंचा नहीं अभी, तो फोन बदलने की आवश्यकता महसूस हुई तो नया लाँच हुआ सैमसंग गैलेक्सी एस2 (Samsung Galaxy S2) ले लिया। इधर हमारे एक्सक्लूसिव मित्र नोकिआ (Nokia) को नमस्ते कर, हमारी सलाह के चलते, एचटीसी वाईल्डफॉयर एस (HTC Wildfire S) लेकर एण्ड्रॉयड पर ऑलरेडी मूव कर गए थे। हालांकि जब हमने इनसे कहा था कि यदि लंदन होते हुए आ रहे हो तो हमारे लिए गैलेक्सी एस2 ले आना तो इन्होंने पूछा था कि उसमें क्या खास है तो मैनें बताया कि उसमें 1.2ghz डुअल कोर प्रोसेसर (dual core processor) है, 1जीबी रैम (1GB RAM) है तो इन्होंने तपाक से सवाल दागा था कि क्या करूँगा इसका क्या हवाई जहाज़ उड़ाना है!! 😀 बहरहाल तो मैंने यहीं से यह उड़ाऊ फोन ले लिया जब उपलब्ध हुआ। 😉

अब एण्ड्रॉयड पर आए तो सोचा कि फायरफॉक्स आज़मा के देखा जाए, इस पर और मेमो (Maemo) पर ही तो उपलब्ध है। वैसे कोई खास आशा नहीं थी फायरफॉक्स मोबाइल से, डेस्कटॉप संस्करण घस्सी है तो मोबाइल वाले से क्या आशा करें। अच्छा ही हुआ इससे आशा न रखी, परफॉर्मेन्स को तो मारो गोली इसकी तो रेन्डरिंग भी वाहियात है। मोबाइल ब्राउज़रों में विकल्प होता है टैक्स्ट रैप (text wrap) करने का जिससे कि ब्राउज़र स्क्रीन के अनुसार ही पन्ने के मसौदे को रीफॉर्मेट करके दिखा देता है ताकी आपको दाएँ-बाएँ न होना पड़े। अभी तक विण्डोज़ मोबाइल पर जितने ब्राउज़र आज़माए सब में यह बढ़िया और अपेक्षित रूप से काम करता था, एण्ड्रॉयड में उसके अपने ब्राउज़र और ऑपरा मोबाइल में भी बढ़िया काम करता है लेकिन इस मुए फायरफॉक्स को कीड़े पड़ें, विकल्प चुना हुआ हो भी यह मसौदे को फैला के ही दिखाता है मानो रैप करना आता ही न हो।


ऑपरा मोबाइल में साधारण अवस्था में एक वेबपेज



ऑपरा मोबाइल में ज़ूम अवस्था में एक वेबपेज – मसौदा अपने आप स्क्रीन के अनुसार एडजस्ट कर दिया ब्राउज़र ने



फायरफॉक्स मोबाइल में साधारण अवस्था में एक वेबपेज



फायरफॉक्स मोबाइल में ज़ूम अवस्था में एक वेबपेज – मसौदे को एडजस्ट करने की ब्राउज़र ने कच्ची कोशिश की


और उसको छोड़ भी दें तो दूसरी समस्या यह कि एण्ड्रॉयड वाला फायरफॉक्स मोबाइल प्लगिन समर्थन नहीं देता है। अडोबी फ्लैश प्लेयर (Adobe Flash Player) प्लगिन एण्ड्रॉयड के लिए उपलब्ध है, इंस्टॉल करो और एण्ड्रॉयड के अपने ब्राउज़र में तथा ऑपरा मोबाइल में फ्लैश चलता है लेकिन फायरफॉक्स को मानों खबर ही नहीं कि फ्लैश जैसी भी कोई चीज़ होती है।


ऑपरा मोबाइल में मेरा फोटो ब्लॉग – फ्लैश चल रहा है इसलिए फोटो दिखाई दे रही है



फायरफॉक्स मोबाइल में मेरा फोटो ब्लॉग – फ्लैश न चलने के कारण फोटो गायब है


अब ऐसे ब्राउज़र को काहे प्रयोग करना चाहेंगे जो इतनी बेसिक सी यूज़ेबिलिटी (usability) की चीज़ का बेड़ागर्क करता है!! एक तो मोज़िला ने फायरफॉक्स मोबाइल ऐसे बनाया जैसे मानो बहुत तकलीफ़ हुई हो और बना के ऐसे डाला मानो कितना बड़ा किला फतह कर लिया। जब ऐसे ही कच्चा-पक्का काम करना था तो आवश्यकता ही क्या थी, ऐसे कच्चे ब्राउज़र को कौन प्रयोग करना चाहेगा!!

और अब इधर सुनने में आया है कि मोज़िला एण्ड्रॉयड को आधार बना के अपना मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम बनाएगा। मानो जैसे पहले ही बाज़ार में मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम कम नहीं हैं – मुक्त स्रोत के बाज़ार में मेमो (Maemo), मीगो (MeeGo), सैमसंग बडा (Samsung Bada) और गूगल एण्ड्रॉयड (Google Android) पहले से ही हैं। इसके अतिरिक्त माइक्रोसॉफ़्ट का विण्डोज़ फोन (Microsoft Windows Phone) है जो मुक्त स्रोत या फोकट तो नहीं है परन्तु जिसको कोई भी लाइसेन्स कर सकता है। तो पहले से खचाखच भरे बाज़ार में मोज़िला अपना शगूफ़ा भी छोड़ना चाहता है। मेरे ख्याल से तो उनको पहले अपनी दुकान नं 1 यानि कि फायरफॉक्स की दिक्कतें दूर करने पर फोकस करना चाहिए, उसकी जड़ों में ही कमियाँ हैं उनको दूर करने के लिए उसका पूरा तीयापाँच करना पड़ेगा। और यदि मोज़िला को लगता है कि मौजूदा मुक्त स्रोत वाले मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम वो आब-ए-हयात नहीं समेटे हुए हैं जो मोज़िला प्रदान कर सकता है तो मोज़िला को चाहिए कि इनमें से ही किसी एक को पकड़ उसमें हाथ बंटाए बजाय अपनी अध-पकी रोटी बाज़ार में उतारने के!!