पिछले कुछ समय से अपनी ब्लॉगिंग की दुकानों पर ताला पड़ा हुआ है, जीतू भाई भी कभी कभार रास्ता भूल जाते हैं अपनी दुकान का। पिछली बार जब भूले तो बताए दिए कि काहे बाकी लोग नहीं भूल रहे हैं। 😈 अब अपन भूले नहीं तो नहीं भूले, भई और भी ग़म हैं ज़माने में, ब्लॉगिंग को ही पकड़-२ कब तक घसीटते रहेंगे, बासीपन आने लगा था, नया मैटीरियल मिल ही नहीं रहा था! बस कुछ ऐसा ही सोच अपने को तसल्ली देने की कोशिश करते, कि जो छूट रहा है उसको छूटने दो, पुराना कुछ छूटता है तो ही नया हासिल होता है। बस ऐसे ही अपने को सांतवना देते और नया कुछ पाने के लालच में रहते। क्या आपको इस बात पर विश्वास आया? नहीं आया? अपने को भी नहीं आया और हुआ यह कि न तो सांतवना ही पास रही और न ही कुछ नया हासिल हुआ, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का!! 😥

वैसे इतने साल ब्लॉगिंग में घिस रहे हैं, कई चलन देखे हैं। यहाँ हिन्दी ब्लॉगिंग में भी एक से बढ़कर एक चलन देखे हैं। इस तरह के मामले में अक्सर देखा है, कोई न कोई ऐलान कर देता कि मैं फलां फलां दिन से (यदि खड़े-पैर वाला हिसाब नहीं है और इस्तीफ़े के माफ़िक अग्रिम नोटिस में यकीन रखते हैं) ब्लॉगिंग से सन्यास ले रहा हूँ, जितना मर्ज़ी कोई मनाने का प्रयास कर ले हम न मानेंगे!! और फिर एकाएक मनाने वालों का तांता लग जाता, लोग-बाग पूछने लग जाते कि भई बताओ ज़रा, किसने तुम्हारी मूँछ (या पूँछ) का बाल हिला दिया, काहे इतना सेन्टी हो रिये हो, देखो ऐसे न करो, अब टंकी से उतर ही आओ!! और बहुत मनुहार कराने के बाद ईनामी घोषणा होती कि फलां फलां की इज़्ज़त रखते हुए हम वापस आ रहे हैं। 👿 समझ न आने वाली बात यह होती कि उस फलाने व्यक्ति की इज़्ज़त तुम्हारे पास आई कहाँ से और किस हक से तुम उसको अपने पास रख रहे हो, पब्लिक लाईब्रेयरी की किताब थोड़े ही है कि निकलवाई और घर ले गए साल छह माह के लिए!! 😐

खैर यह तो होता था जाने का और तुरंत ही लौट आने का सिलसिला। दूसरा होता था चुप-चाप चले जाने का और धूम धड़ाके के साथ लौटने का। धीरे-२ एकएक ही कोई खिसक लेता, थोड़े समय बाद खुजली होती कि किसी ने नोटिस ही नहीं किया, कोई पूछ भी नहीं हुई कि यार वो बंदा लिखना काहे बंद कर दिया! कहीं ऐसा तो नहीं कि सब सोच रहे हों कि चलो बला टली, खामखा ही ऊलजलूल लिखा करता था और सभी का दिमाग खराब किया करता था, जब देखो अपनी किसी पोस्ट का लिंक थमा दिया करता था, दुआ-सलाम करना भी मानो पनौती हो गया था!! 😮 बस इसी दहशत के चलते बंदा अपने आने की घोषणा ऐसी धूम के साथ करता जितनी धूम के साथ अपनी शादी न की होगी उसने, जान पहचान वालों को तो भूलो मत, अनजानों को भी निमंत्रण पत्र बाँटे जाते कि फलां-फलां तारीख को फलाने मुहूर्त में हमारी वापसी की पोस्ट अवतरित होगी! मानो वापसी की पोस्ट न हुई, ईश्वर दर्शन की घोषणा हो गई कि फलाने मुहूर्त में प्रभु दर्शन देंगे, सपरिवार पधारें, सतसंग का लाभ उठाएँ और प्रसाद (टिप्पणियाँ) चढ़ा के जाएँ!! 😎

अब होने वाले इन दोनों ही तरह की पोस्टों पर सेन्टी होते, खूब टंसुए बहाए जाते (खुशी हो या ग़म, दोनों ही मौकों पर काम आते हैं, इसलिए ग्लीसरीन की शीशी पास रखें), पर्सनली न भी जानते हों तो भी वर्चुअली ही सही, बलगीर होकर मिलते। कुछ जो खुराफ़ाती टाइप होते वो यहाँ अपने मौज़ मज़े का सामान ढूँढते, इधर उधर ऊँगल करते और फिर दूर खड़े हो तमाशा देखते। और हम? हम पढ़ते, टाइम पास की चीज़ लगती, टाइप पास करते और आगे बढ़ते (आप भी यह फालतू बड़बड़ पढ़ टाइमपास ही कर रहे हैं न?)। कोल्ड-हार्टिड बॉस्टर्ड भी कह सकते हैं, सेन्टी नहीं होते, क्या करें, जबरन कराईयेगा?!! 😀 जिस तरह जल्लाद आदि होता है उसी तरह बस….. और क्या कहें!!

तो बहरहाल यह न समझा जाए कि हमने वापसी के चलते यह पोस्ट ठेली है!! न….. न….. कैसी वापसी? हम गए ही कहाँ थे? यहीं खूंटा गाड़े बैठे हैं। हुआ यूँ कि आज ऐसे ही खुजली हो आई, कोई और विषय मिला नहीं तो सोचा कि इसी पर दन-दना-दन ठेल दें। 😉

 
 
फोटो साभार Official Star Wars Blog, क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेन्स (Creative Commons License) के अंतर्गत