पिछले अंक से आगे …..
रात और गहराई तो ठण्ड बढ़ी। कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा, जैकेट में लिपटा और दो रजाईयों के नीचे दबा हुआ। दरअसल समस्या ये है कि भीषण गर्मी तो मैं झेल लेता हूँ लेकिन ठण्ड अधिक नहीं झेली जाती। लेकिन अब ठण्ड लग रही थी काफ़ी, जैकेट और दो रजाईयाँ ना-काफ़ी थी। घड़ी में देखा तो उसने तंबू के अंदर का तापमान आधा डिग्री सेल्सियस बताया, यानि कि बाहर यकीनन शून्य से नीचे तापमान था। खैर, अपन उठे, दो लौंग दांतों के बीच दबाई, थोड़ी गर्माहट महसूस हुई और फिर से रजाई में घुस गए कि किसी तरह रात कट जाए, अगले दिन सुबह तो निकल लेना है यहाँ से।
सुबह हुई, हमारा सामान लगभग पैक ही था, जो थोड़ा बहुत बाहर निकला था उसको समेटा और गाड़ी में लाद अपन निकल लिए, वापस लेह शहर की ओर। जैसे ही पांगोंग से हट के पहाड़ी सड़क पकड़ने वाले थे तो स्पांगमिक गाँव के पास तरूण ने गाड़ी रुकवाई, वो कुछेक तस्वीरें और लेना चाहता था। इधर हमारी गाड़ी में डीज़ल की कमी थी तो ड्राईवर ने गाँव में दुकान से डीज़ल जुगाड़ा। थोड़ी देर बाद हम लोग अपने रास्ते लगे। मैं और इशान अपने-२ संगीत के जुगाड़ों (मैं अपने कोवोन एस9 और इशान अपने फोन) द्वारा संगीत के नशे में नींद की दुनिया के बॉर्डर इलाके में तफ़रीह कर रहे थे, तरूण के पास ऐसा कोई साधन था नहीं तो वो ऐसे ही नींद की दुनिया का बॉर्डर पार करने का प्रयत्न कर रहा था। 😀 चांग ला पार किया लेकिन इस बार उतरे नहीं, सीधे निकल लिए। रास्ता घणा अन-ईवेंटफुल रहा, और हम सही सलामत शाम तीन-चार बजे के आसपास लेह अपने होटल पहुँच गए। होटल वाले ने थोड़ी ना-नुकुर की (हमारी बुकिंग वहाँ अगले दिन की थी) लेकिन फिर आखिरकार उसने हमको एक शानदार कमरा दे दिया। अपन जाकर बिस्तर पर पसर गए, जल्दी ही नींद ने आ घेरा, इधर तरूण और इशान निकल लिए शॉपिंग आदि करने के लिए।
अगले दिन की शुरुआत हमारी बहुत शानदार हुई। पाँच बजे तरूण को एक मठ आदि के फोटू-वोटू लेने जाना था, मैंने और इशान ने मना कर दिया कि हम न जाएँगे इत्ते सवेरे, लेकिन जब वह गया तो नींद अपने आप ही खुल गई। इधर होटल में चैक-इन का समय सुबह आठ बजे का था, सात बजे ही हमको खड़का दिया कि बालकों कमरा खाली कर अपने बुक किए कमरे में जाओ। यह होटल का पागल-पन ही लगा और कुछ नहीं। जो कमरा हमको पिछले रोज़ दिया था बिना बुकिंग के, वह भी उतने ही किराए का था जितना हमारा बुकिंग वाला, और किसी खास कमरे की बुकिंग होटल वाले नहीं करते, जो उपलब्ध होता है उसी में से देते हैं। तो फिर जिसके लिए हमसे कमरा खाली करवाया उसी को दूसरा कमरा देना था, हमको काहे दूसरे में शिफ़्ट किया। लेकिन चूंकि हम इस शर्त को पिछले रोज़ कमरा लेते हुए मान चुके थे तो कोई विकल्प नहीं था, एक बार कमिटमेन्ट कर दी तो कर दी! :tup:
इधर आखिरकार सब की जाग हो ही गई थी, कमरा शिफ़्ट कर लिया तो काहे की नींद, जो थी वो पतली गली से निकल ली। अब समय था नाश्ते का और दिन के ऐजेन्डे का। नाश्ते के लिए हम एक शानदार जगह गए, होटल के नज़दीक ही टहलने भर की दूरी पर स्थित जीवन कैफ़े। यह कैफ़े बहुत शानदार जगह है, खाना-पीना बढ़िया है, फील भी बढ़िया आता है।
( जीवन कैफ़े – Jeevan Cafe )
वहाँ वैसी सुगंध आ रही थी जैसे किसी बेकरी में सुबह-सवेरे आती है, भूख और बढ़ गई, तो नो होल्ड बार्र्ड ऑडर दे दिया गया खाने-पीने का।
( पिज़्ज़ा चिपोले – Pizza Cipolle )
( वेज सैण्डविच – Veg Sandwich )
( हनी लेमन पैनकेक – Honey Lemon Pancake )
मैंने फ्रेन्च क्रेप मंगवाया था लेकिन वह था नहीं तो हनी लेमन पैनकेक मंगवाया और यह सबसे वाहियात लगा, पैनकेक कम और सूजी का मोटा चीला अधिक लगा। 🙁 बहरहाल, उसको नज़रअंदाज़ किया जाए तो बाकी सब एकदम बढ़िया था। चॉकलेट मिल्कशेक बहुत शानदार था, याक का दूध स्वादिष्ट होता है। :tup:
नाश्ते के बाद दिन के ऐजेन्डे को निपटाने हम लोग निकल पड़े। सबसे पहले स्थान पर लिस्ट में था स्पितुक मठ। तरूण ने एक साईकल किराए पर ली और वह उसी पर निकल पड़ा, इशान और मैं गाड़ी में थे। स्पितुक मठ लेह हवाई अड्डे के पास ही एक टीलेनुमा पहाड़ी पर स्थित है, आस पास की पहाड़ियों का अच्छा नज़ारा दिखाई पड़ता है।
मठ में ऊपर काफ़ी पर्यटक आए हुए थे, इशान और ऊपर वाले हिस्से में चला गया और मैं एक बड़े प्रार्थना चक्र के पास खड़ा नज़ारे का आनंद ले रहा था। 🙂
( रेत भरा कटोरा – Sand Bowl )
कुछ देर बाद हम आगे बढ़े, थोड़ा आगे हमें तरूण मिल गया, उसकी साईकल को गाड़ी की छत पर बाँधा और हम चुंबकीय पहाड़ी (Magnetic Hill) की ओर बढ़ चले। यह पहाड़ी लेह से श्रीनगर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग १ पर लेह से कोई चालीस किलोमीटर की दूरी पर है। इसकी खास बात? सड़क पर एक जगह चिन्ह बना हुआ है, वहाँ से आगे की सड़क थोड़ा ऊँचा हो जाती है, वहाँ आप गाड़ी को न्यूट्रल में डाल के छोड़ दो और गाड़ी अपने आप धरती के गुरुत्वाकर्षण के विपरीत ऊपर की तरफ़ उठी सड़क पर खिसक जाएगी। यह प्रयोग हमने साईकल द्वारा भी करके देखा और उस पर भी यह कार्य करता है। वहाँ इस जगह पर सिर्फ़ पर्यटक ही थे, अन्यथा यह इलाका एकदम सुनसान है, सड़क के दोनों ओर बस रेतीला मैदान और पहाड़ियाँ ही हैं।
कुछ देर रूकने के बाद हम आगे बढ़े, चुंबकीय पहाड़ी के थोड़ा और आगे ज़ांस्कर और सिंधु नदियों का संगम है।
( ज़ांस्कर और सिंधु नदियों का संगम – Confluence of Zanskar & Indus rivers )
वहाँ भी पर्यटकों की काफ़ी भीड़ थी, लोग सड़क पर ही रुक के नीचे संगम आदि को निहार रहे थे और फोटो ले रहे थे। हम वापस मुड़ने को थे कि एकाएक मन हुआ कि नीचे की ओर जाकर देखा जाए, तो गाड़ी हमने आगे की ओर ले ली जहाँ से एक सड़क मिलती थी जो पहाड़ी से नीचे ले गई। अभी हम नीचे जाने वाली सड़क पर मुड़े ही थे कि एक बहुत ही सुंदर नज़ारा दिखाई दिया जिसका तुरंत ही पैनोरमा खींचने का मन हुआ।
इसके बाद आगे बढ़े लेकिन संगम पर रुकने का मन नहीं हुआ, सोचा आगे जाकर देखा जाए। थोड़ा आगे जाने पर ऐसा स्थान आया कि सड़क के एक ओर पहाड़ी थी और दूसरी तरफ़ सिंधु नदी और नदी के पार पुनः पहाड़ी, आबादी का कोई चिन्ह नहीं। ऐसा लग रहा था कि मानो लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स सरीखी किसी फैण्टसी फिल्म की लोकेशन हो या ऐसी किसी कहानी में हम उतर आए हों जहाँ ऐसे स्थान होते हैं। थोड़ा आगे सड़क मुड़ गई और आगे नदी पर बनी एक लोहे की पुलिया थी। ड्राईवर ने गाड़ी सड़क से उतार एक किनारे खड़ी कर दी और हम लोग पुलिया पर खड़े हो सामने मौजूद मनोरम दृश्य को निहार रहे थे। चारों ओर सन्नाटा जिसमें केवल नदी के बहते पानी का शोर था या जिसे कभी-कभार आता कोई वाहन भंग करता था, प्रकृति की रचना के समय से खामोश खड़े पहाड़, अनवरत बहता सिंधु का हरा पानी और दोपहर के समय बहती ठण्डी हवा, अपने आप ही मन में एक शांति का अनुभव हुआ, मानो मन कह रहा हो – आई एम एट पीस।
( सिंधु नदी – Indus river )
कुछ समय वहाँ बिताने के बाद हम लोग वापस हो लिए। वापसी पर रास्ते में गुरुद्वारा पत्थर साहब पड़ता है, तो गाड़ी वहाँ रोकी गई और जूते आदि उतार हम गुरुद्वारे में अंदर होकर आए। यह गुरुद्वारा इस स्थान पर कोई चार-पाँच सौ वर्ष से है, अभी कुछ समय पहले आई बाढ़ में इसकी इमारत भी नष्ट हो गई थी जिसे भारतीय सेना की एक इंजीनियर्स रेजिमेन्ट ने दो-तीन महीने में ही पुनः बना दिया था और अब इसके रख-रखाव की ज़िम्मेदारी उन्हीं की है। साथ ही यह भी पता चला कि इस इलाके में नदियों आदि पर जो पुलियाएँ आदि बनी हुई हैं वे सब पहले राज्य सरकार द्वारा बनाई गई थी और खस्ता हाल में थी, बाढ़ में वे नष्ट हुई तो सेना वालों ने उनको पुनः बनाया और अब वे बहुत ही मज़बूत बनी हैं। सेना वाले वाकई बढ़िया कार्य करते हैं, इनके और बीऑरओ (BRO) द्वारा बनाई गई सड़कें भी बहुत शानदार होती हैं।
गुरुद्वारे से आगे बढ़े तो लेह हवाई अड्डे के पास ही एक पक्षी विहार नामक जगह है, पक्षियों के नाम पर कुछ खास तो हमें दिखा नहीं परन्तु वहाँ झील है और सामने पहाड़ियाँ, नज़ारा अत्यंत मनोरम है।
दोपहर बीत रही थी, तीन बज चुके थे, सूर्यदेव ढलने की कगार पर बादलों के पीछे छिप चुके थे और ठण्डे मौसम में भूख लग आई थी। हम लोग वापस लेह शहर पहुँचे, सबसे पहले तरूण की साईकल वापस की गई और फिर गाड़ी वाले को विदा किया। बाज़ार में पहुँच इशान के फोरस्कवेयरी ज्ञान के चलते हम एक रेस्तरां में पहुँचे लेकिन वह खाली था इसलिए हमें मामला शंका से परिपूर्ण लगा। वहाँ खाने का विचार छोड़ हम तरूण के (पता नहीं कहाँ के) ज्ञान के सदके ढूँढते-२ लामायूरु नामक रेस्तरां में पहुँचे, वहाँ मामला ठीक लगा, काफ़ी जनता वहाँ भोजन कर रही थी। वहाँ साधारण टाइप भोजन किया गया। मेरा सुझाव जीवन कैफ़े जाकर भोजन करने का था लेकिन तरूण और इशान वहाँ दो बार जा चुकने के बाद किसी अन्य जगह के तलबगार थे, इसलिए लामायूरु रेस्तरां में भोजन किया गया। दोपहर भोज निपटाने के बाद वापस अपने होटल पहुँचे, थकान हो गई थी इसलिए सभी का सुस्ताने का इरादा था। अपन टीवी खोल फिल्म देखने लगे, तरूण और इशान अपने-२ लैपटॉप उठा होटल के रिसेप्शन हॉल चले गए वहाँ मौजूद फोकटी वाई-फाई (Wifi) का लुत्फ़ उठाने।
अगले दिन सुबह सवेरे साढ़े सात बजे की वापस दिल्ली की उड़ान थी जिसने तकरीबन साढ़े नौ बजे दिल्ली पहुँचाया। जब लेह से उड़े तो तापमान तकरीबन सात डिग्री था, दिल्ली पहुँचे तो छत्तीस डिग्री, मानो एक झटका कि भई चार दिन की छुट्टी समाप्त हुई अब वेलकम बैक टू रियैलिटी! 😀
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