बहुत दिन हुए थे कहीं घूमना फिरना नहीं हुआ था। जब से पिछले वर्ष अगस्त में दिल्ली वापसी हुई उसके बाद से मानो ज़िन्दगी थम सी गई, ठहराव आ गया था। अब घर वालों की सुनें तो इस वर्ष जनवरी में जो सुबह-गए-रात-वापस टाइप जो हरिद्वार जाना हुआ था वह इस ठहराव को छिन्न-भिन्न करने के लिए काफ़ी था, बोले घूम-फिर तो आए तुम, अब क्या करना है घड़ी-२ घूमने की रट छोड़ो। अब मैं समझाता कि वो तो एक मित्र को उसकी शादी से पहले पाप मुक्त कराने गंगा जी के पवित्र जल में डुबकी लगवाने के लिए जाना भर हुआ था बस, कोई घूमने फिरने के लिए थोड़े ही गए थे, तो इस पर घरवालों का ऐसा घूरना होता कि मानो हम बेअक्ल हो और अहमकपन वाली बात कर रहे हों। 😕
खैर, सप्ताह पे सप्ताह बीते और कुछ मित्रों के साथ एक सप्ताहांत पर पुष्कर जाने का कार्यक्रम बनाया गया। शुरुआत में मुझे मिलाकर कोई सात लोग थे लेकिन मान-मनौव्वल आदि होते-२ नौबत यह आई कि हम सिर्फ़ दो जन रह गए। मेरा साथी मित्र बोला कि चलना है या कैन्सल करें प्रोग्राम, तो मैंने कहा कि जाएँगे ज़रूर, किसी के भरोसे नहीं हैं, गाड़ी में बैठ के निकल लेंगे। मित्र बोला कि गाड़ी चलाने में दिक्कत तो नहीं क्योंकि तुम अकेले चलाने वाले होगे तो मैंने कहा कि मुम्बई से दिल्ली की ड्राईव भूल गया क्या, मुम्बई से उदयपुर पहुँचने में उन्नीस घंटे लगे थे और मात्र तीन घंटे पिछली रात नींद ली थी और फिर उन्नीस घंटे गाड़ी चलाई थी! अपने स्टैमिना पर अपने को भरोसा है, टेन्शन नहीं लेने का! :tup:
तो बिलकुल बैकपैकिंग टाइप मामला था, कोई बुकिंग नहीं कुछ नहीं। शुक्रवार 16 मार्च को ऑफिस का काम दिन में निपटाया, शाम को दो दिन के कपड़े बस्ते में डाले और बस्ता लादा गाड़ी में और अपन निकल लिए, पहला स्टॉप गुड़गाँव जहाँ से इस मित्र को लेना था, फिर अगला स्टॉप मानेसर का मैकडॉनल्ड्स जहाँ रात का खाना-पीना करना था और उसके बाद सीधे पुष्कर। रात जवान थी और हम किशोर कुमार को सुनते हुए एसी गाड़ी में भगे चले जा रहे थे, ट्रैफिक की चिल्ल-पों ने मानेसर के बाद पीछा छोड़ दिया था, सपाट सड़क लगभग खाली पड़ी थी। जयपुर तक एक समस्या आनी थी वह यह कि गाड़ी (जो कि खुला भागने को उतावली थी) को सड़क पर खुला छोड़ नहीं सकते थे, कुछेक मीटर के बाद ही सड़क पर डायवर्ज़न आता और हम सर्विस लेन में आ जाते और फिर सड़क पर और फिर सर्विस लेन में। जयपुर तक यह मामला इसलिए क्योंकि गुड़गाँव-जयपुर वाला राजमार्ग बन रहा है, साल भर हो गया लेकिन इसका काम अभी पूरा नहीं हुआ है। बेहरोड़ से कुछ पहले टोल लगता है अस्सी-नब्बे रूपए का और वह भी उस सड़क के लिए जो आधी भी नहीं बनी है। दिन दहाड़े और रात अंधेरे – खुली लूट है!! यह मुझे मुम्बई से दिल्ली आते हुए भी अखरी थी और अब भी अखरी, मन ही मन चार गालियाँ दी और निकल लिए। सड़क बनी हो और उस पर टोल वसूल किया जाए तो बुरा नहीं लगता लेकिन ऐसी सड़क का टोल वसूला जाए जो कि निर्माणाधीन हो तो गुस्सा आना लाज़मी है। 😡
बहरहाल, हम लोग आगे बढ़े जा रहे थे। पिछले जुलाई जब गैलेक्सी एस२ (Samsung Galaxy SII) लिया तो उसके बाद से एक साल पुराना एचटीसी एचडी२ (HTC HD2) जीपीएस नैविगेटर के तौर पर इस्तेमाल में आ रहा है। उस पर मैपमाईइण्डिया (MapMyIndia) का जीपीएस सॉफ़्टवेयर डाला हुआ है जो कि बढ़िया काम करता है, गूगल मैप्स (Google Maps) के मुकाबले निहायत ही बढ़िया और सटीक है। एक लाभ यह भी है कि निर्धारित मार्ग से भटक भी जाओ तो यह तुरंत नई दिशा आदि तय कर दिखा देता है कि कहाँ से जाना है। गूगल मैप्स में ऐसी सुविधा नहीं, मानो उसका मत हो कि – “पंचो की बात सिर माथे पर नाली तो यहीं से बहेगी!” – मानों हमारी कोई अपनी मन-मर्ज़ी ही नहीं! वैसे तो पुष्कर तक का रास्ता सीधा है, जयपुर तक सीधे पहुँचो और फिर बाई-पास से दाएँ तरफ़ मुड़ जाओ और वह सड़क सीधे अजमेर और फिर पुष्कर ले जाएगी, लेकिन फिर भी मैंने नैविगेटर चालू ही रखा, आजकल सीधी सड़कें भी धोखा दे जाती हैं। 😉
जयपुर से हम लोग अजमेर की तरफ़ मुड़े तो मजेदार वाकया हुआ। थोड़ा आगे तक सड़क खुदी हुई है (निर्माणाधीन है जी) तो वही सर्विस लेन में हो लिए। अब नैविगेटर ने भांप लिया कि सर्विस लेन में आ गए हैं (पहले भी भांपा होगा लेकिन हमने कोई तवज्जो नहीं दी थी) तो निर्देश दिया कि आगे से यू टर्न लो। अब हम लोग के दिमाग में भी पता नहीं क्या आया हमने ले लिया, दूसरी तरफ़ आ गए, सोचा भारतीय तरीका अपनाया जाए, लेकिन सुबह सवेरे चार बजे कौन मिलेगा रास्ता बताने के लिए। लेकिन किस्मत ज़ोरों पर थी, एक बुज़ुर्ग सड़क पर जाते मिल गए, उनसे पूछा तो बोले कि पुष्कर से तो यह सड़क आ रही है, दूसरी तरफ़ होवो तो पहुँचोगे वहाँ। हमने शुक्रिया अदा किया और आगे से फिर यू टर्न लेकर वापसी अपनी राह पर लगे! 🙂
मेरा मित्र थोड़ी देर में सो गया, कितनी ही गाली देने का मन हुआ यह मुझे पता है। अबे ठीक है तुमने दिन में ऑफिस का काम किया थक गए लेकिन मियां किया तो वो हमने भी और फिर भी गाड़ी चौकन्ने होकर सरपट दौड़ा रहे हैं। तो उसकी नींद हमसे बर्दाश्त नहीं हुई और धमाकेदार अंग्रेज़ी रॉक संगीत चला दिया, आवाज़ तेज़ कर दी। 👿 लेकिन वह भी ढीठ, सोया रहा, उठा नहीं और न ही संगीत का स्वर कम करवाया! 😈
आखिर भोर हुई और सुबह-सवेरे हम अजमेर पहुँचे, मेरा मित्र भी अब तंग आकर उठ गया!! 😀 कोई आठ बजे के करीब हम अपने पसंदीदा होटल, होटल सरोवर, पहुँचे, गाड़ी से निकले तो शरीर अकड़ा सा लगा, सीधा किया तो थकान महसूस हुई। तुरंत जाकर कमरा पकड़ा और तय हुआ कि पहले कुछ नाश्ता पानी कर लिया जाए उसके बाद कम से कम तीन घण्टे नींद ली जाएगी, बाकी सब उसके बाद। कोई एक बजे अलार्म बजा तो उनीन्दे से उठे, मन था कि थोड़ा और सो लें लेकिन पता था कि सोए तो फिर सो ही जाएँगे और रात से पहले उठना न होगा। तो स्नान आदि निपटाया गया और अपन बाहर निकल लिए। सबसे पहले लिस्ट में था पापमोचनी मंदिर। पुष्कर में दो मंदिर (अलग-२) पहाड़ियों पर स्थित हैं, एक सावित्री मंदिर है और दूसरा पापमोचनी मंदिर (कहते हैं देवी गायत्री का मंदिर है)। पिछली बार जब यहाँ आना हुआ था तो सावित्री मंदिर देखा था लेकिन समयाभाव के कारण पापमोचनी रह गया था। अब चूंकि दोनों अलग-२ पहाड़ियों पर हैं तो एक ही दिन में दोनो करना बहुत भारी लगता है। तो हम दोनों पापमोचनी की ओर निकल लिए। सावित्री मंदिर वाली पहाड़ी चढ़ना कदाचित आसान है क्योंकि वहाँ तरीके से सीढ़ियाँ बनी हुई हैं और ऊपर चाय-नाश्ते के लिए कैन्टीन भी है लेकिन पापमोचनी मंदिर वाली पहाड़ी पर मामला पुराने स्टाईल का ही है, पत्थर की पहाड़ी है, एक-एक हाथ ऊँचे पत्थरों पर चढ़ते हुए ऊपर जाओ। आधे रास्ते तक पहुँचते हुए मानो दम निकल गया, थोड़ा बैठे, एकाध फोटू वगैरह लिया, मित्र जो फोटू ले रहा था उसको थोड़ा ज्ञान बाँचा, और फिर आगे की चढ़ाई पुनः आरंभ की।
अगले अंक में जारी …..
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