पिछले अंक से आगे …..

थोड़ा ऊपर जाकर सोचा कि देखें पुष्कर कैसा लगता है। बात यूं है कि ऊँचाई से किसी भी शहर आदि को देखने का अपना अलग ही मज़ा है। बड़े शहरों में यह मज़ा आप किसी ऊँची इमारत पर चढ़ कर ले सकते हैं, उनकी कोई कमी नहीं होती लेकिन पुष्कर जैसे शहर में, जहाँ कदाचित्‌ ही कोई इमारत चार-पाँच मंज़िला से ऊँची होगी, यह काम किसी पहाड़ी पर चढ़ कर ही किया जा सकता है और ठीक ऐसी ही एक पहाड़ी पर आधा हम लोग चढ़ चुके थे। तो जो नज़ारा हमने देखा वह आप भी देखो!! :tup:


( पुष्कर का पैनोरमा – बड़े रूप में यहाँ देखें )


लगभग सारा पुष्कर ही नज़र आ गया, ज़्यादा बड़ा नहीं है। दूर पुष्कर सरोवर भी दिखाई दे गया, उसी के किनारे पर हमारा होटल। 🙂 फोटो में दायीं तरफ़ से जो पहली पहाड़ी है उस पर सावित्री मंदिर है।

ऊपर पहुँचे तो देखा कि मंदिर बहुत ही साधारण है, कदाचित्‌ यहाँ बहुत लोगों का आना नहीं होता, अधिकतर जनता सावित्री मंदिर ही जाती है और उसके बाद नीचे सरोवर किनारे ब्रह्मा के मंदिर। मंदिर में पूरी श्रद्धा के साथ सिर नवाया, मित्र को प्रमाण चाहिए था कि उसने देवी को नमन आदि किया है तो इसलिए उसकी फोटो भी ली गई, नमन करते हुए और फिर पोज़ बनाते हुए भी। मंदिर में जो पुजारी लड़का था (जूनियर पुजारी या कदाचित्‌ पुजारी का बेटा/भाई) वह बहुत ही चंचल प्रवृत्ति का था। हमको दर्शन आदि करवा पीछे की तरफ़ गया तो हम भी उधर हो लिए कि वहाँ से भी ज़रा नज़ारा कर लेंगे। वहाँ एक फ्रेन्च व्यक्ति से परिचय हुआ, कुछ देर तक हम बातें करते रहे, उसकी हिन्दी काफ़ी अच्छी थी। पता चला कि वह भी पहले सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हुआ करता था, उसकी कंपनी कसीनो में लगने वाले सिस्टम्स बनाती थी। फिर कुछेक वर्ष पूर्व वह फुल टाइम फोटोग्राफ़र बन गया और अब पिछले दो साल से भारत भ्रमण कर रहा है, अपनी कॉफ़ी टेबल बुक के लिए तस्वीरे एकत्र कर रहा है।

शाम होने को थी, तो उस फ्रेन्च व्यक्ति और उसके मित्र से विदा ले हम नीचे की ओर बढ़ चले। रास्ते में कुछ और लोग रसोई गैस के सिलेण्डर और खाना पकाने के बड़े बर्तन ऊपर लाते दिखाई दिए, जब हम ऊपर आ रहे थे तब भी ये लोग दिखे थे। उत्सुक्तावश मैंने पूछ लिया कि भई क्या माजरा है तो पता चला कि अगले दिन कोई प्रोग्राम इत्यादि है भजन-कीर्तन का, मूर्ति स्थापना आदि होनी है। थोड़ा और नीचे बढ़े तो एक व्यक्ति और उनके साथ एक भगवा धारी पुरुष दिखाई दिए। रुक कर दुआ सलाम हुआ तो पता चला कि वे जनाब गुड़गाँव ही के हैं और गायत्री देवी उनके गुरु (कदाचित्‌ वही भगवा धारी पुरुष) की कुल देवी हैं और वे यहाँ पर सब मामला फिट करेंगे इस बार। मैंने ज़रा विस्तार से पूछा तो बोले कि सावित्री मंदिर ही की तरह यहाँ भी सीढ़ियाँ आदि बना देंगे एकदम बढ़िया सी ताकि लोगों को ऊपर जाने में दिक्कत न हो, मंदिर भी जो अभी कुटिया टाइप बना हुआ है वह भी तुड़वा के बढ़िया तरीके से बना दिया जाएगा। सुनकर हमने सोचा कि चलो किसी को तो परवाह है इस जगह की, अच्छा है, यहाँ आने वाले लोगों का कुछ भला होगा, ऊपर मंदिर तक जाना सहज हो जाएगा। तो इन सज्जन से भी हम विदा ले वापसी की राह पर आगे बढ़ लिए। 🙂

किसी तरह गिरते-पड़ते-टटोलते हुए हम वापस बाज़ार वाली सड़क पर पहुँचे। गिरते-पड़ते-टटोलते हुए इसलिए क्योंकि जैसे ही हम पहाड़ी से उतर ज़मीन पर आए वैसे ही बिजली गोल हो गई, मानो न चाहती हो कि हम सही सलामत बिना किसी गंदी-संदी जगह पाँव रखे वापस पहुँचे। और जब हम सही सलामत एकदम सूखे-२ बाज़ार पहुँच गए तो मानो बिजली को अपना मिशन फेल हुआ जान पड़ा और वह वापस आ गई। इधर बिजली वापस आई, बाज़ार फिर से रोशन हो उठा और मित्र को लगा कि अब एकाध कुछ छुट-पुट खरीद लिया जाए वरना बीवी से घर जाकर…..! 😀 तो शुरुआत हमने विण्डो शॉपिंग से करी और बिना कोई असल शॉपिंग किए ऐंवई अपने कराहते पैरों की और वाट लगाई। जब इंतहां हो गई तो तय हुआ कि कुछ लेने लायक ही नहीं है, इसलिए पेट पूजा की ओर ध्यान दिया जाए। रात्रि भोजन के लिए हम पहुँचे पुष्कर की (एज़ फार एज़ आई नो) एकलौती शानदार जगह, सनसैट कैफ़े। खाना तो हमने साधारण ही लिया लेकिन ज़रा सिन (sin) करने का मन कर आया था तो एक शानदार डेज़र्ट (dessert) मंगवाया गया और उसका भोग हम दोनों ने मिलकर लगाया (एक ही जने के वश की बात हो सके तो फिर सिनफुल तो न होगा न)! 😀


( हैल्लो टू द क्वीन – एक शानदार डेज़र्ट )


अब जब पेट और आत्मा दोनों तृप्त हो चुकी तो हम लोग वापस होटल लौट लिए। अगले रोज़ मित्र सुबह-२ जल्दी उठ के ब्रह्मा मंदिर के दर्शन कर आया, मुझे ब्रह्मा जी ने अप्वायंटमेंट नहीं दिया था इसलिए मैं नहीं गया। अब चलने की तैयारी थी, अपने-२ बस्ते हमने गाड़ी में लाद लिए और नाश्ते के लिए पहुँच गए फिर से सनसैट कैफ़े। मित्र ने तो कोई आण्डु-पाण्डू सी चीज़ ली और मैंने मंगवाया इज़रायली नाश्ता।


( इज़रायली ब्रेकफॉस्ट – बड़ी फोटो यहाँ देखें )


एक बार पुनः तृप्ति का अनुभव हुआ और अब हम वापस दिल्ली की और निकल पड़े। निकले ही थे कि मन में कहीं कुछ खटक रहा था कि कुछ भूल गया हूँ, क्या बस यही ध्यान नहीं आ रहा था। जब किशनगढ़ निकल गया, और टूटी-फूटी सड़क के बाद शानदार चार लेन का एक्सप्रेसवे शुरु होने ही वाला था तो एक जगह ट्रैफिक सिग्नल पर रुके, सड़क किनारे मिठाई की दुकान पर मेरी निगाह गई और ध्यान आया कि पुष्कर में एक हलवाई के मालपुए बहुत शानदार होते हैं और उनको लेना भूल गया! 😀 खैर, वह अगली बार सही! :tup: