उपन्यास….. इनको पढ़ना पहली बार तब हुआ जब मैं चौथी या पाँचवीं कक्षा में था। उस समय जिस स्कूल में था वहाँ तो पुस्तकालय के नाम पर एक दड़बा टाइप कमरा था जहाँ कम से कम हम लोगों का प्रवेश वर्जित था। उन दिनों मैं कॉमिक्स पढ़ा करता था। छुट्टियों में नानी जी के घर आया हुआ था तब की बात है, एक दिन मौसी अपने कॉलेज के पुस्तकालय से प्रेमचन्द के दो उपन्यास – गोदान और गबन – लाईं अपने पढ़ने के लिए। एक तो वे पहले से ही पढ़ना आरंभ कर चुकीं थीं तो कौतुहलवश दूसरे को मैंने पढ़ना आरंभ किया, कौन सा पहले पढ़ा यह ध्यान नहीं लेकिन अंत-पंत दोनों पढ़े। उसके बाद सेवासदन और मानसरोवर भी पढ़े, माँ और मौसी हैरानी से देखते थे कि कैसे पढ़ पा रहा हूँ ऐसे गंभीर उपन्यास लेकिन मुझे समझ में यह नहीं आता कि वे इनको इतना हाई-फाई क्यों मानते थे, एक कहानी ही थी और कुछेक चीज़ों को छोड़ सब समझ आ ही रहा था मुझे, मैं तो मात्र एक कहानी के रूप में ही उनको पढ़ रहा था। प्रेमचन्द के चार उपन्यास पढ़ डाले लेकिन लेखन स्टाईल मुझे पसंद नहीं आया, कहानियाँ रोचक न लगीं!!
On 04, Feb 2009 | 7 Comments | In कतरन | By amit
बंगलूरू में रवि रतलामी जी से हुई मुलाकात माइक्रोसॉफ़्ट की सॉफ़्टवेयर लोकलाइज़ेशन संबन्धित एक कॉन्फरेन्स के दौरान। बीयर वाली हवाई सेवा का अनुभव लगभग अच्छा रहा, वापसी की उड़ान में एक एयर होस्टेस ने मेरी सुईड जैकेट पर कॉफी गिरा दी। कोई और होता तो उसकी ऐसी की तैसी कर देता पर यहाँ भूल समझ मामला छोड़ दिया, जैकेट ड्राईक्लीन होने ही देनी है। 😉 तीन घंटे बैठ आराम से रवि जी से बातें की गई, शुएब बाबू को मिलने को कहा लेकिन संपर्क देरी से होने के कारण उनके आने का समय नहीं था, तो मुलाकात अगली बार के लिए टल गई।
On 25, Jan 2009 | 6 Comments | In कतरन | By amit
आज संडे है….. दारू पीने का दिन है!! नहीं यह मैं नहीं कहता, बस एकाएक ही बीस वर्ष पहले आई फिल्म चालबाज़ का वह सीन याद आ गया जब रजनीकांत का टैक्सी ड्राईवर वाला किरदार अंगूरी की बोतल ले खुशी से झूमता हुआ गा रहा होता है – “आज संडे है….. दारू पीने का दिन है” और एकाएक ही रंग में भंग पड़ जाता है क्योंकि बोतल में दारू की जगह श्रीदेवी ने घासलेट (मिट्टी का तेल) भर दिया होता है!! 😀 फिल्म में इसी तरह के कई लोटपोट कर देने वाले सीन थे!!
वैसे आज संडे….. यानि कि रविवार है ही, लेकिन अपन बिना दारू के ही काम चला लेंगे – उसके नाम वाली वेन्गर्स की चॉकलेट ज़िन्दाबाद! 😀 :tup:
होनी को कौन टाल सकता है!!
On 24, Jan 2009 | 6 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
सप्ताह भर पहले ही की तो बात है – बन ठन की समस्या ने पुनः आ घेरा था कि मौसेरी बहन के विवाह में क्या पहना जाए!! तमाम तरह के सुझाव दिए गए, आखिरकार घरवालों की सम्मति से फैसला किया गया कि विलायती बन-ठन की जाएगी मॉडर्न इश्टाईल में – विलायती इश्टाईल ब्लेज़र जीन्स के साथ। यानि कि ब्लेज़र पर रोकड़ा खर्च करना ही पड़ेगा!! 😮 तो इसी मनसूबे को अन्जाम देने मामाजी के बड़े लड़के को साथ ले पिछले ही सप्ताहांत पहुँच गए क्नॉट प्लेस। वहाँ कई ब्रांड देखी – अमेरिकी कंपनी वैन ह्यूसेन (Van Heusen) का माल पसंद नहीं आया, घणा बड़ा शोरूम और चवन्नी छाप दुकान की भांति जरा-२ सा माल रखा हुआ था। ब्लैकबैरी (Blackberry) की दुकान ही दड़बे साइज़ की थी तो वहाँ भी कुछ न मिला। आखिरकार लुई फिलिप (Louis Philippe) के शोरूम में पहुँचे लेकिन वहाँ भी पंगा हो गया। जिस प्रकार का ब्लेज़र पसंद नहीं आया उसमें तो अपना साइज़ उनके पास था और जो ब्लेज़र पसंद आया उसमें माकूल साइज़ नहीं था – गड़बड़ घोटाला!!
On 24, Jan 2009 | 2 Comments | In कतरन | By amit
फीडबर्नर से गूगल पर अपने सभी ब्लॉगों की फीड को स्थानांतरित कर लिया है। चूँकि फीड फिर भी अपने ही डोमेन पते से बाँटी जाती है इसलिए फीड के पते पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और पुराने वाले पते धड़ल्ले से काम करेंगे (अभी तो फिलहाल कर ही रहे हैं) तथा जो श्रद्धालु पुराने भक्त हैं (यानि कि फीड को सबस्क्राइब किए हुए हैं) उनको भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। :tup: यदि फीड को अपने डोमेन से न बाँट कर फीडबर्नर के डोमेन से बाँटा जा रहा होता तो खामखा की सिरदर्दी होती, क्योंकि तब फीड पते बदल जाते। 😈
अभी तो सब मामला सही दिखे है, फिर भी यदि किसी को कोई समस्या नज़र आए (मेरे द्वारा संचालित किसी ब्लॉग पर) तो बताने का कष्ट अवश्य करें। :tup:
वेन्गर्स की चॉकलेट.....
On 23, Jan 2009 | 10 Comments | In Here & There, इधर उधर की | By amit
फोटो साभार – Vintage Home Arts
दिल्ली के क्नॉट प्लेस में भीतर वाले चक्र में एक प्रसिद्ध बेकरी है – वेन्गर्स (Wenger’s)। यह काफ़ी पुरानी बेकरी है, तकरीबन 75 वर्ष पुरानी। इसकी पेस्ट्री आदि तो बढ़िया होती ही हैं, मुझे इसकी बनाई चॉकलेट कुछ खासी पसंद हैं। होता यूँ भी है कि ये लोग चॉकलेट का जैसा नाम रखते हैं उसमें वैसा माल भी डालते हैं, यानि कि बादाम होगा चॉकलेट का नाम तो उसके अंदर कुरकुरे बादाम डले हुए होंगे, काजू नाम होगा तो उसमें काजू डले होंगे!!
स्लमडॉग करोड़पति और प्रतिभा विहीन अमिताभ बच्चन
On 17, Jan 2009 | 15 Comments | In Mindless Rants, Movies, फ़ालतू बड़बड़, फ़िल्में | By amit
अभी कुछ दिन पहले हल्ला सुना एक फिल्म के बारे में, नाम स्लमडॉग मिलियनेयर (Slumdog Millionaire)। यह एक फिल्म है जो कि एक अंग्रेज़ ने बनाई है कि कैसे एक स्लम में पला बड़ा हुआ लड़का एक “कौन बनेगा करोड़पति” टाइप के कार्यक्रम में जीत की कगार पर पहुँच जाता है और सब उसकी इस उपलब्धि से सन्न रह जाते हैं। जिन लोगों ने फिल्म देख ली उनसे सुनने/पढ़ने में आया कि फिल्म बहुत ही धांसू है, फिल्म ने अवार्ड वगैरह भी जीत लिया!! आने वाले शुक्रवार, 23 जनवरी को यह फिल्म भारत में “स्लमडॉग करोड़पति” के नाम से हिन्दी में रिलीज़ हो रही है। मैं भी सोच रहा था कि शायद मैं भी देख आऊँगा सिनेमा पर क्योंकि मैं भी उन लोगों में हूँ जिन्होंने इंटरनेट से पॉयरेटिड कॉपी डाउनलोड कर नहीं देखी है और सिनेमा में देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। मैं प्रतीक्षा नहीं कर रहा, मूड हुआ तो देख आएँगे और यदि जानने वालों से खास समीक्षा नहीं मिली तो नहीं देखेंगे, कोई बड़ी बात नहीं है!!
शादी में जाना भी एक आफ़त!!
On 14, Jan 2009 | 12 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
इस बार की परीक्षाओं में आखिरी पर्चा बचा है जो 19 जनवरी को है, तो इसलिए अभी बीच में चार दिन की राहत है, वैसे राहत कहाँ, कहने को ऑफिस से छुट्टी पर हैं लेकिन आज और कल ऑफिस के कुछ महत्वपूर्ण कार्य निपटाने हैं, पन्द्रह दिन से छुट्टी पर हैं तो ऑफिस को जुदाई सहन नहीं हो रही!!
उधर अनूप जी बारात कांड बाँचे तो इधर एक प्रश्न पुनः मुँह उठा सामने आ खड़ा हुआ जिसको मैं पिछले कुछ दिनों से टाल रहा था। फरवरी के आरंभ में मौसेरी बहन की शादी है, प्रश्न है कि क्या पहना जाए! तीन दिन फंक्शन है तो तीन दिन के लिबास पर ध्यान देना है। इधर घरवालों ने और एकाध मित्रगण ने डपट दिया कि हमेशा की तरह कम से कम शादी में मौजी बाबा बनकर मत जाना, थोड़ा सलीके के कपड़े पहन बन-ठन के जाना। कहा गया कि जिसकी शादी है उसका बन-ठन के जाना इतना महत्वपूर्ण न हो लेकिन शादियों में शिरकत करने वाले तुम जैसों का बन-ठन के जाना आवश्यक हो जाता है, कि क्या पता किसी लड़की वाले को तुम पसंद आ जाओ। तौबा!! 😕 और यही अविवाहित लड़कियों को भी झेलना पड़ता होगा!!