….. पिछले भाग से आगे
हॉस्टल वालों की ओर से भेजे गए व्यक्ति की फिएट पुन्टो (Fiat Punto) में सवार हो अपन हॉस्टल की ओर बढ़े चले जा रहे थे। सड़कें काफ़ी चौड़ी और सपाट थी, दिल्ली के सड़क से सजे गड्ढे नहीं नज़र आए, आधे घंटे की उस सवारी में मैं प्रतीक्षा करता रहा कि अब झटका लगेगा, अब कोई गड्ढा आएगा, लेकिन सड़क निकलती जा रही थी और मुझे टेन्शन होते जा रही थी कि क्या वाकई गाड़ी सड़क पर चल रही है!! मन में आशंका हुई कि कहीं इस गाड़ी में बड़े बोस साहब का सस्पेन्शन (suspension) सिस्टम तो नहीं लगा जो गाड़ी में बैठे लोगों को गड्ढे का एहसास ही न होने देता हो, मन में आया कि ड्राईवर से पूछ लूँ लेकिन फिर यह सोच के रह गया कि अभी तो वह एक रिसर्च प्रोजेक्ट ही है इसलिए प्रोडक्शन में न आया होगा। कौतूहल था ही इसलिए खिड़की से बाहर भी सब देख रहा था, जगह-२ बड़े-२ विज्ञापन वाले होर्डिंग दिखाई दे जाते, कोई मोबाइल फोन बेचने का होता तो कोई गाड़ी का, एक समानता जो उन सब में देखी वह यह कि सभी विज्ञापन माग्यार (Magyar) भाषा में थे, अंग्रेज़ी में कोई न दिखा। और तो और, सड़क चौराहों आदि पर लगे निर्देश आदि भी सभी माग्यार भाषा में थे!! कुछ लोग इसको निज भाषा प्रेम कहेंगे जो कि गलत नहीं है लेकिन यह साथ ही साथ पर्यटन के लिए बुरा है, पर्यटकों से माग्यार भाषा की समझ की अपेक्षा करना निरी मूर्खता से अधिक नहीं। इस लिहाज़ से दिल्ली बहुत अच्छी है जहाँ पर्यटक भटक न जाएँ इसका पूरा ख्याल रखा हुआ है और सड़कों आदि पर दिशा निर्देश वगैरह हिन्दी के साथ-२ अंग्रेज़ी में भी हैं!!