भारत – एक ऐसा देश जिसने कई चीज़ों के मायनों को नया आयाम दिया है। आधुनिक काल में “सेक्यूलर” शब्द को भी नया आयाम दे दिया गया है। इसका अर्थ अब धर्म निर्पेक्ष होना नहीं रहा वरन् केवल एक खास धर्म की ओर ध्यान देना है। वर्ना क्या कारण है कि कभी किसी “सेक्यूलर” नेता द्वारा दीपावली/होली या लोहड़ी/बैसाखी या क्रिसमस/ईस्टर आदि की दावत नहीं दी जाती लेकिन इफ़्तार पार्टी देने की सभी में होड़ लगी हुई होती है।
धर्म-निर्पेक्षता का नया आयाम
On 17, Jul 2015 | 23 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
ढोंगी धर्मनिर्पेक्षता
On 01, Dec 2014 | 10 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
जैसे धर्म को ढकोसला बताने वाले ढकोसलेबाज़ जन्तु होते हैं उसी प्रकार ढोंगी धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदार होते हैं।
अभी कुछ समय पहले एक मानव अधिकार के ठेकेदार से बात हो रही थी। वे जनाब जम कर इज़राईल (Israel) को लानत-फ़लानत भेज रहे थे, मैं तसल्ली से सुन रहा था। इस बात को स्वीकारने से मुझे कोई परहेज़ नहीं है कि लड़ाई-झगड़ा ठीक नहीं है, समय और साधन की बर्बादी है और विकास के मार्ग में रोड़ा भी है। एक नज़रिए से काफ़ी विकास इन्हीं कारणों से होता है, लेकिन फिलहाल उस दार्शनिक सूत्र को नज़रअंदाज़ करते हैं। बात चलते-२ जैसे ही इस्लामिक स्टेट ऑफ़ ईराक़ एण्ड सीरिया (ISIS) पर आई तो मानव अधिकारवादी साहब असहज हो गए।
ढकोसले और ढकोसलेबाज़
On 25, Nov 2014 | 14 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
ऐसे लोग बहुतया हैं जो किसी धर्म को मानने वाले परिवार में जन्म लेते हैं परवरिश पाते हैं लेकिन व्यस्क होने पर उन्हें परम् ज्ञान की प्राप्ति होती है और वे उस धर्म आदि को ढकोसला बता दुत्कार देते हैं। ठीक है, आज़ाद देश है और हर किसी को अपनी-२ आस्था रखने की स्वतंत्रता है।
मैं भी ऐसे कई लोगों को जानता हूँ जिनकी परवरिश हिन्दू परिवेश में हुई लेकिन वे हिन्दू धर्म को ढकोसला ही मानते हैं। मेरी नज़र में यह कुछ गलत नहीं है, हर व्यक्ति को अपनी सोच रखने का अधिकार है। अब ऐसे कुछ लोगों में विज्ञान के झण्डाबरदारों को भी मैं जानता हूँ जो अपने को विज्ञानी जताते हैं कि हर कार्य उनका मानो वैज्ञानिक तर्क से ही होता है बिना वैज्ञानिक ठप्पे वाले तर्क के वे कोई कार्य नहीं करते।
समझदार लोग.....
On 31, Oct 2014 | 8 Comments | In Here & There, इधर उधर की | By amit
अपने देश में लोग बड़े ही निराले हैं, वेबसाईट बनवानी है तो उसको भी समझते हैं कि साग़-सब्ज़ी खरीद रहे हों….. क्या भाव दिया भैय्या?! ये ज़्यादातर ऐसे लोग होते हैं जिनको इन मामलों में चार आने की समझ नहीं होती। एक अलग तरीके का उदाहरण देखें तो मान लीजिए मारूति 800 या टाटा नैनो जैसी बजट गाड़ी चलाने वाला रॉल्स रॉयस या बेन्टली के शोरूम में चला जाता है तो वो वहाँ क्या पूछेगा? कितना माईलेज देती है भैय्या? 😀 इसी तर्ज़ पर एक विज्ञापन भी बना था, शायद मारूति का ही।
द कैमरा कननड्रम 43
On 14, Apr 2014 | 15 Comments | In Photography, Technology, टेक्नॉलोजी, फोटोग्राफ़ी | By amit
जनवरी में बाली जाना हुआ, घूम-फिर आए, लेकिन साथ में एक शंका मन में ले आए – कैमरा अब पुराना हो गया है, नया लेना है। अब वह पहले वाला ज़माना नहीं रहा कि लोग एक ही चीज़ को बरसों सदियों तक घिसते रहते थे, दादा की जवानी की चीज़ पोता अपने बुढ़ापे तक घिस रहा होता था। आजकल लोग डेयरडेविल (daredevil), एडवेन्चुरस (adventurous) वगैरह हो गए हैं; फोन से एक साल में ऊब जाते हैं, नौकरी से दो साल में, गाड़ी से चार साल में और बीवी से दस साल में (कृपया राशन-पानी लेकर न चढ़ा जाए ऐसा मैंने सुना है)। अरे 5-10-15 साल में तो सरकार बदल जाती है, डिपेन्डिंग ऑन कि आप कौन से इलाके में रहते हैं। हम जो 7 साल से अपना कैमरा घिस रहे हैं, सोचा अब बदलाव का वक़्त आ गया है, हवाएँ चलनी शुरु हो गई हैं!
बाली एण्ड द बीचिज़ - भाग ३
On 21, Mar 2014 | 4 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit
पिछले अंक से आगे …..
खाना खा कर हम वापस अपने होटल आ गए। अगली सुबह से सभी को पर्यटक की भूमिका निभानी थी इसलिए कॉमन टूरिस्टों की भांति विलायती टोपियाँ (Hat) इत्यादि ले ली गई थीं। हमारे विला की साफ़ सफ़ाई की ज़िम्मेदारी जिस बाई की थी उसने बताया था कि उसका भाई टैक्सी चलाता है और उसका फोन नंबर ले लिया गया कि सारा दिन उसी की गाड़ी रखी जाएगी घूमने फिरने के लिए।
बाली एण्ड द बीचिज़ - भाग २
On 10, Mar 2014 | No Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit
पिछले अंक से आगे …..
कुआला लमपुर (Kuala Lumpur) तक का सफ़र कोई साढ़े पाँच घण्टे का था, तकरीबन रात्रि पौने दस बजे दिल्ली से विमान उड़ा था। खाना वगैरह निपटा इतने में एक घण्टा और बीत गया। मैं पेशोपश में था कि बाकी के चार घण्टे नींद ली जाए या टाईमपास किया जाए। 😐 वैसे स्टेशन छूटने का डर नहीं था लेकिन आखिरकार सोचा कि चार घण्टे क्या नींद आएगी, इसलिए कोई फ़िल्म आदि देख टाईमपास किया जाए। लेकिन मार पड़े मलेशिया एयरलाईन्स (Malaysia Airlines) को, न कोई ढ़ंग की या नई फ़िल्म उपलब्ध न ही टीवी शो, कुल मिलाकर ऑनबोर्ड एन्टरटेनमेण्ट रद्दी लायक। 😡 तो आखिरकार पॉवर नैप (power nap) लेने की सोची।