यह आज की बात नहीं है, सालों से ऐसा होता आया है कि सिर्फ़ फैशनेबल लगने के लिए लोग किसी चीज़ का अनुसरण करने लग जाते हैं चाहे वह चीज़ उनकी समझ के दायरे से कोसों दूर हो। लेकिन अभी पिछले कुछ वर्षों में महानगरों में यह चलन कुछ खासा बढ़ते देखा है। जैसे-२ कॉस्मोपॉलिटन (Cosmopolitan) टाइप के समाज का दायरा बढ़ता जा रहा है, जैसे-२ अधिक व्यय करने के सामर्थ्य वाले मध्यम वर्ग का विकास होता जा रहा है वैसे-२ इन भेड़ चाल चलने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। जहाँ पहले एकाध ही कोई नज़र आता था वहीं आजकल ये लोग हर गली नुक्कड़ पर चरने निकले भेड़-बकरियों के झुंड की भांति जुगाली करते मिल जाते हैं।
नाम के दीवाने और फैशन के मारे.....
On 10, Sep 2008 | 19 Comments | In Mindless Rants, Satire, व्यंग्य, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
ऐसे चलाएँ विन्डोज़ मोबाइल पर हिन्दी.....
On 08, Sep 2008 | 8 Comments | In Reviews, Technology, टेक्नॉलोजी, समीक्षाएँ | By amit
इधर मेरे मित्र अभिषेक ने मुझे अपने मोबाइल पर हिन्दी दिखाई, उधर अपनी उत्सुक्ता बढ़ गई कि क्या उपाय किया, क्या जुगाड़ लगाया जो ऐसा महान कार्य हुआ और विन्डोज़ मोबाइल पर हिन्दी चली!! बहुत कहने पर आखिरकार अभिषेक ने वह राज़ बता ही दिया कि कैसे यह काम किया और साथ ही अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट ठेल दी। उपाय पता लगते ही मैंने भी तुरंत सॉफ़्टवेयर डाऊनलोड कर अपने विन्डोज़ मोबाइल वाले फोन पर इंस्टॉल किया और जब सॉफ़्ट रीसेट (soft reset) होकर फोन दोबारा चालू हुआ तो उस पर हिन्दी दिख रही थी, न केवल दिख रही थी बल्कि लिखी भी जा रही थी। ऐसी बढ़िया हिन्दी लिखी जा रही थी कि मैंने एक पोस्ट मोबाइल पर लिखकर ब्लॉग पर ठेल दी। 😉
On 05, Sep 2008 | 13 Comments | In Technology, कतरन, टेक्नॉलोजी | By amit
ये तो कमाल हो गया जी, मोबाइल पर हिन्दी चल रही है एकदम मस्त तरीके से और मैं यह ब्लाग पोस्ट अपने विन्डोज मोबाइल से लिख रहा हूँ। :tup:
इसका मतलब यह है कि अब हिन्दी की ब्लाग पोस्ट भी विन्डोज मोबाइल से लिखी जा सकेगी। नोकिआ के तीसरे संस्करण वाले सिम्बिअन मोबाइल में हिन्दी चलती थी लेकिन उसमे हिन्दी लिखने के लिए मोबाइल की भाषा बदलनी पडती थी। साथ ही एक समस्या यह थी कि कुंजीपटल का भान नहीं था और अंदाजे से काम करना पडता था। यहाँ इस विन्डोज मोबाइल पर कुँजीपटल स्क्रीन पर ही दिख जाता है इसलिए अधिक दिक्कत नहीं होती। 🙂
एक समस्या जो इस साफ्टवेयर में दिख रही है वह यह है कि इसमें नुक्ता लगाने का कोई साधन नहीं है। 🙁
संगीत जो दे मन को शांति.....
एकाध सप्ताह पहले गुड़गाँव में लैन्डमार्क स्टोर में एक उपन्यास देख रहा था पढ़ने के लिए। उससे एकाध दिन पहले ही एक उपन्यास, रिवर गॉड (River God), पढ़ के समाप्त किया था और उसका अगला भाग, द सेवन्थ स्क्रॉल (The Seventh Scroll), खोज रहा था। परन्तु वह लैन्डमार्क वालों के पास था नहीं तो फिलहाल काम चलाने के लिए मैंने एक अन्य उपन्यास ले लिया।
विन्डोज़ मोबाइल पर हिन्दी.....
On 01, Sep 2008 | 3 Comments | In Technology, टेक्नॉलोजी | By amit
पिछले सप्ताह मेरे मित्र अभिषेक ने अपने विन्डोज़ मोबाइल पर हिन्दी दिखाई, रोमन अक्षरों में नहीं वरन् देवनागरी लिपि में एकदम मस्त चलती हुई। हिन्दी दिख ही नहीं रही थी वरन् इंस्क्रिप्ट (Inscript) टंकण पद्धति का कीबोर्ड भी था जिससे हिन्दी लिखी भी जा सकती थी। पूछने पर अभिषेक ने बताया कि अभी ट्रांसलिटरेशन की व्यवस्था नहीं है यानि कि फोनेटिक कीबोर्ड नहीं चलेगा, इसलिए टंकण करने के लिए फिलहाल इंस्क्रिप्ट सीखनी ही होगी! 🙁 मैंने कहा कि देखो अगर हो सके तो ट्रांसलिटरेशन का भी जुगाड़ कराओ, क्या झक मारने के लिए माइक्रोसॉफ़्ट में बड़े साहब हो। तो यह तो भविष्य के गर्भ में है कि ट्रांसलिटरेशन आता है कि नहीं परन्तु अभी तो देवनागरी लिपि का जुगाड़ आ गया वही बड़ी बात है।
On 30, Aug 2008 | 3 Comments | In Mindless Rants, कतरन, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
मुझे यह समझ नहीं आता कि कुछ मूर्ख अमेरिकी और अंग्रेज़ अपने बारे में यह खुशफहमी क्यों पाल लेते हैं कि वे सोक्रेटीस जितने ज्ञान वाले और दस-बारह डॉक्टरेट की औकात के होते हैं??!! भारत का नाम आते ही वे धोबी से मार खाए गधे की भांति रेंकने लग जाते हैं कि फलां बंदा भारतीय है इसलिए उसकी अंग्रेज़ी खराब है, वह कम पढ़ा लिखा है। क्या भारतीय होना पढ़े लिखे होने के स्तर का सर्टिफिकेट है? कदाचित् ये मूर्ख यह नहीं जानते कि भारतीय इन अमेरिकियों और अंग्रेज़ों की मातृभाषा इतनी अच्छी जानते हैं जितनी वे स्वयं नहीं जानते। और रही पढ़ने लिखने की बात तो यह सब जानते हैं कि भारत के स्कूलों आदि की पढ़ाई अमेरिकी और ब्रिटिश स्कूलों से अधिक कठिन होती है। मुझे याद है जब मैं आठवीं कक्षा में था तो मेरी क्लास में साथ पढ़ने वाली लड़की अमेरिका से वापस आई थी(वह पिछले वर्ष अमेरिका गई थी) और आकर उसने यह बताया कि जो चीज़ गणित आदि में हम लोग छठी कक्षा में पढ़ चुके हैं वह अमेरिकी स्कूलों में दसवीं के स्तर की कक्षा में पढ़ाया जाता है!!
लेकिन कुछ मूढ़ अमेरिकी और ब्रिटिश आज भी यही समझते हैं कि पढ़ाई लिखाई इन्हीं के देशों में होती है, बाकी दुनिया तो अभी भी पाषाण युग में जी रही है!! कई बार ऐसे मूर्खों से किसी न किसी ब्लॉग आदि पर पाला पड़ जाता है जहाँ ये अपना फटा राग रेंक रहे होते हैं!! बोइंग-बोइंग पर एक पोस्ट छपी थी एक ब्लॉग के बारे में जिसके ब्लॉगर ने एक आऊटसोर्सिंग सेवा के द्वारा अपने ब्लॉग के लिए भारत से एक व्यक्ति को भाड़े पर लिया जो उसके लिए उसके ब्लॉग पर लिखता है। और इसी पोस्ट पर ऐसे ही एक गर्दभराज की टिप्पणी दिख गई!
समाचारपत्र की कतरन बनाने का जुगाड़
On 29, Aug 2008 | 8 Comments | In Uncategorized | By amit
पिछले सप्ताह इंटरनेट पर ऐसे ही विचरते हुए एक ऑनलाईन टूल का पता मिला। क्या करता है ये टूल? यह टूल समाचारपत्र की कतरन बनाता है। बस आप किसी भी समाचार पत्र का नाम डालिए, तारीख डालिए, खबर का शीर्षक डालिए और खबर डाल दीजिए, और बटन पर क्लिक कीजिए, बस हो गया काम और तैयार हो जाएगी आपकी समाचारपत्र की कतरन। जैसे मैंने एक कतरन बनाई, यह देखिए:
On 28, Aug 2008 | 2 Comments | In कतरन | By amit
एयरटेल वाला आया, मॉडेम का एडॉप्टर बदला और इंटरनेट चल गया। उसने एयरटेल फोन कर कहा कोई चीज़ खराब नहीं सिर्फ़ तकनीकी दिक्कत थी। पता नहीं क्यों?
On 28, Aug 2008 | 4 Comments | In कतरन | By amit
आज की रात बेकार – डीएसएल मॉडेम खराब – इंटरनेट बंद, कल दोपहर एयरटेल वाला बदलेगा तो चलेगा – तब तक मोबाइल के दुखी 25kbps जीपीआरएस कनेक्शन पर 🙁
कितने समझदार हैं ये पत्रकार.....
On 25, Aug 2008 | 13 Comments | In Mindless Rants, Satire, व्यंग्य, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अभी तीन-चार दिन पहले की बात है, मैं फ्रस्टियाया हुआ एक क्लाइंट के सॉफ़्टवेयर में आ गए बग को ठीक कर रहा था कि चैट पर जीतू भाई अवतरित हुए और एक लिंक थमा के बोले कि देखो इसे। मैंने सोचा कि कोई बढ़िया चीज़ होगी तो तुरंत देखा, और देख कर हंसी भी आई और तरस भी आया, क्योंकि मामला एक बार फिर पत्रकारों की एक चौथाई जानकारी और तीन चौथाई गप्प का था, पुनः अपनी समझदारी समाज के सर्वज्ञों ने दिखलाई थी, पुनः साबित किया कि उनको धेले की समझ नहीं और ना ही कहीं से उसको लेने की ज़रूरत वे महसूस करते हैं।