इस पोस्ट को लिखने के पीछे न किसी की बेइज़्ज़ती करने का इरादा है और न ही कोई व्यंग्य करने का। साफ़ दिल से यह पोस्ट लिखी है लेकिन यदि किसी को बुरा लगा हो(खासतौर से संजय तिवारी जी जिनका बहुतया उल्लेख है इस पोस्ट में) तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ क्योंकि बुरा लगाने की कोई मंशा न थी और न है।
अभी-२ एक ब्लॉगर सम्मेलन निपटा के फारिग हुआ हूँ। अच्छी खासी तादाद में लोग आए और कार्यक्रम को सफ़ल बनाया। चूँकि मैंने सबके लिए खुला रखने का प्रस्ताव दिया था इसलिए हिन्दी ब्लॉगजगत में भी इसकी खबर फैलाई कि साथी लोग आकर सत्संग का लाभ उठाएँ, कुछ ज्ञान अर्जित करें और कुछ दूसरों को दें, हिन्दी ब्लॉगजगत के बाहर भी जो ब्लॉगजगत है उससे मिलें, अंग्रेज़ी हो चाहे अन्य कोई भाषा, ब्लॉगर तो ब्लॉगर ही होता है ऐसी मेरी सोच है। लेकिन कुछ लोगों को कुछेक बातों से दिक्कत थी। अब दिक्कत खामखा दिक्कत की खातिर या किसी भ्रांति की खातिर यह मैं नहीं जानता; मैं यह मान के चल रहा हूँ कि मिथ्या भ्रांति के चलते दिक्कत थी जिसका माकूल उत्तर मिलने पर वह दूर हो सकती है, इसलिए अपनी ओर से ईमानदार कोशिश करने की खातिर यह सब लिखने का मन बनाया।