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क्या ब्लॉगों पर नियंत्रण होना चाहिए?

बर्खा दत्त एनडीटीवी पर हर सप्ताह एक अंग्रेज़ी का टॉक शो (talkshow), वी द पीपल(we the people), प्रस्तुत करती हैं। इस बार 13 जनवरी 2008 को प्रसारित हुए अध्याय में वार्ता का विषय था – क्या ब्लॉगों पर नियंत्रण होना चाहिए? (should the blogs be regulated?)

अब इस बार पैनल पर कुछ ब्लॉगर, एक वकील और एक मनोवैज्ञानिक थे, श्रोताओं में भी कुछ ब्लॉगर आदि बैठे थे। मौजूद ब्लॉगरों में कुछ जाने पहचाने नाम थे जैसे कमला भट्ट, राजेश लालवानी और अपने कस्बे वाले रवीश जी। चर्चा आरंभ हुई एक ब्लॉगर और उनके ब्लॉग पर लिखी उनकी व्यक्तिगत सेक्स संबन्धी पोस्ट से, कि कैसे जब काफ़ी समय तक उनको सेक्स नहीं मिलता तो वो सिगरेट फूंकती रहती हैं, और आगे बढ़ी एक दूसरे ब्लॉगर की ओर जिन्होंने अपने ब्लॉग पर सरेआम व्यक्त किया हुआ है कि वे समलैंगिक हैं और एक बॉयफ्रेन्ड की तलाश में हैं। आधे कार्यक्रम में तो चर्चा इसी बात पर होती रही कि कौन अपने व्यक्तिगत ब्लॉग पर क्या लिख रहा है, दुनिया के सामने उसको पढ़ने के लिए डाल रहा है और इन्हीं एक-दो सेक्स संबन्धी पोस्ट पर बात होती रही। एक बात जो मुझे यह समझ नहीं आई वह यह कि आखिर बर्खा क्या चाह रही थीं, और यह कार्यक्रम के मुद्दे से कैसे संबन्धित है? क्या किसी का ब्लॉग इसलिए नियंत्रण के तहत आना चाहिए कि वह व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत बातें दुनिया के सामने रख रहा है? व्यक्तिगत ब्लॉग जब तक किसी पर उँगली उठा कुछ कह नहीं रहा तो उसमें किसी को तो कोई आपत्ति होनी ही नहीं चाहिए। और यदि है तो फिर वह मुख्यधारा मीडिया पर क्यों नहीं लागू होती?

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प्रयास..... विस्फोट..... और उत्तर

इस पोस्ट को लिखने के पीछे न किसी की बेइज़्ज़ती करने का इरादा है और न ही कोई व्यंग्य करने का। साफ़ दिल से यह पोस्ट लिखी है लेकिन यदि किसी को बुरा लगा हो(खासतौर से संजय तिवारी जी जिनका बहुतया उल्लेख है इस पोस्ट में) तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ क्योंकि बुरा लगाने की कोई मंशा न थी और न है।

अभी-२ एक ब्लॉगर सम्मेलन निपटा के फारिग हुआ हूँ। अच्छी खासी तादाद में लोग आए और कार्यक्रम को सफ़ल बनाया। चूँकि मैंने सबके लिए खुला रखने का प्रस्ताव दिया था इसलिए हिन्दी ब्लॉगजगत में भी इसकी खबर फैलाई कि साथी लोग आकर सत्संग का लाभ उठाएँ, कुछ ज्ञान अर्जित करें और कुछ दूसरों को दें, हिन्दी ब्लॉगजगत के बाहर भी जो ब्लॉगजगत है उससे मिलें, अंग्रेज़ी हो चाहे अन्य कोई भाषा, ब्लॉगर तो ब्लॉगर ही होता है ऐसी मेरी सोच है। लेकिन कुछ लोगों को कुछेक बातों से दिक्कत थी। अब दिक्कत खामखा दिक्कत की खातिर या किसी भ्रांति की खातिर यह मैं नहीं जानता; मैं यह मान के चल रहा हूँ कि मिथ्या भ्रांति के चलते दिक्कत थी जिसका माकूल उत्तर मिलने पर वह दूर हो सकती है, इसलिए अपनी ओर से ईमानदार कोशिश करने की खातिर यह सब लिखने का मन बनाया।

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माफ़ी चाहूँगा.....

हिन्दी ब्लॉगजगत में सबको निमंत्रण मैंने दिया, पकड़-२ पूछा भी कि आ रहे हो कि नहीं, लेकिन मौके पर मैं ही नहीं पहुँच सका। क्यों? ऐसी मेरी मजाल कैसे हुई?

दक्षिण भारत से भी कुछ लोग आए हुए थे जिनको हिन्दी नहीं आती। ऐसों में एक साहब याहू से भी आए थे जिनको याहू वालों ने कल सुबह बंगलोर से खासतौर पर इसी सभा के लिए उड़ाया था!!

तो हुआ यूँ कि हम आयोजकों को मौका-ए-वारदात पर सुबह तकरीबन दस बजे पहुँचना था(अलग से समोसे उड़ाने नहीं) ताकि सब तामझाम देख लिया जाए कि सब ठीक-ठाक है कि नहीं। अब मैं इसके लिए उठा सुबह छह बजे लेकिन तबीयत कुछ ठीक न लगी इसलिए अपना तापमान नापने का मीटर मुँह में घुसा यह नापा की अपने को तो 102 डिग्री बुखार है। मन ही मन खुंदक चढ़ी कि कमबख्त कल शाम तक तो ठीक-ठाक था एकाएक कैसे हो गया ये गोलमाल!! हो सकता है कि पिछले सप्ताह भर की अत्यधिक भागदौड़ और पिछले दो-तीन दिन से बिना नींद लिए काम करने की थकान के कारण हो गया हो। लेकिन हो गया तो हो गया, कुछ कर नहीं सकते इसलिए वार-फुटिंग पर बाकी साथी आयोजकों को फुनवा लगाए कि भई अपन तो आ नहीं सकेंगे इसलिए अपने आप संभालो और हमारे हिन्दी ब्लॉगजगत से जो बंधु आ रहे हैं उनका ज़िम्मा भी तुम्हीं पर है।

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क्या आप आ रहे हैं?

अपनी पिछली पोस्ट में मैंने सभी ब्लॉगर बंधुओं और पाठकों को खुला निमंत्रण दिया था। काहे का? अरे भई आगामी शनिवार 12 जनवरी 2008 को दिल्ली में एक बहुत बड़ी ब्लॉगर भेंटवार्ता हो रही है। बड़े-छोटे प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध सभी प्रकार के ब्लॉगर आएँगे, ब्लॉग कंसलटेन्सी, मार्केटिंग आदि कंपनियों और ब्लॉगिंग के विभिन्न आयामों से जुड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि भी आएँगे, मीडिया वाले भी आएँगे। पर महत्वपूर्ण बात है कि आप आएँगे कि नहीं?

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निमन्त्रण.....

पिछली पोस्ट में मैंने समस्या, उसके विश्लेषण और उसके समाधान का ज़िक्र किया और इन सब पर थोड़ा प्रकाश डाला। उसी के तहत, समाधान के तौर पर बन रही वेबसाइट के लांच से पहले नई दिल्ली में हम लोग शनिवार 12 जनवरी 2008 को एक आयोजन कर रहे हैं। इस अवसर पर कई जाने माने ब्लॉगर तो उपस्थित रहेंगे ही, मीडिया की भी दल-बल के साथ कवरेज लेने के लिए शिरकत रहेगी। इसको आप एक बड़ी और व्यव्सथित तरीके से आयोजित की गई ब्लॉगर भेंटवार्ता भी समझ सकते हैं।

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समस्या..... विश्लेषण..... समाधान.....

पिछले तीन दिनों से छप रहे कार्टूनों ने कई लोगों की उत्सुकता बढ़ाई है, कईयों ने पूछा कि आखिर कोई सिर पैर तो हो, पता ही नहीं चल रहा कि बात क्या है!! तो जनाब मामला टू द प्वायंट प्रस्तुत है।

समस्या
समस्या ये है कि ब्लॉग की गाड़ी आगे ही नहीं बढ़ रही। मैं अपनी बात नहीं कर रहा, मैं एक आम बात कर रहा हूँ। ब्लॉग एग्रीगेटरों से सिर्फ़ हम ब्लॉगरों की ही आवश्यकताएँ पूरी हो रही हैं कि हमको दर्जनों ब्लॉगों पर जाकर देखने की बजाय एक जगह ही सूचना मिल जाती है। दरअसल एग्रीगेटरों का यही काम है और अपने काम को वो बखूबी अंजाम दे रहे हैं। लेकिन इसके आगे भी कोई जहान है या यही आखिरी स्टेशन है? मेरा और कई अन्य साथी ब्लॉगरों का मानना है कि आगे जहान और भी है। ब्लॉगों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है, यह एक अच्छी बात है, लेकिन एक समस्या अब जो आ रही है(जिसको कुछ दूरदर्शी साथियों ने काफ़ी पहले देख लिया था) वह यह कि माल की तादाद बढ़ी लेकिन उसको हज़म करने का समय नहीं बढ़ा, सब कुछ हर कोई नहीं डकार सकता तो कैसे मनपसन्द माल चुना जाए? और दूसरे यह कि ब्लॉगरों की जमात के बाहर ब्लॉगों की कितनी पैठ हो रही है? कुछ खास नहीं और मैं समझता हूँ कि कई लोग इस बात से सहमत भी नज़र आएँगे। बहुत से उम्दा लेखक हैं जो एक से बढ़कर एक धांसू आइटम लिखते हैं लेकिन पाठकों तक सही पहुँच न होने के कारण न तो उनको बहुत लोग पढ़ पाते हैं और लोग-बाग भी वंचित रह जाते हैं।

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क्या आप चोर हैं? - भाग ३

पिछले भाग से आगे …..

अभी हाल ही में हिन्दी ब्लॉगजगत में पोस्ट आदि की चोरी का मुद्दा उठा था और बहुत से लोगों ने पुरज़ोर इसका विरोध करते हुए इस पर अपने कड़े विचार व्यक्त किए थे। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि कुछ लोग जो अपने ब्लॉगों से पोस्ट चोरी होने पर व्यथित और क्रोधित थे(इतने कि उनका वश चलता तो चोर को फांसी पर चढ़ा देते और उसके कपड़े बीच बाज़ार नीलाम कर देते) यदि उनके ब्लॉग देखें जाएँ तो बहुत सा चोरी का माल उनके पास ही मिल जाएगा। क्यों भई, आपका माल चोरी हो तो वह गलत, लेकिन आप किसी का माल चोरी करो तो वह गलत नहीं है? मेरा इरादा किसी व्यक्ति विशेष का नाम लेकर उनको सरेआम बेइज़्ज़त करना नहीं है, मैं विनम्र शब्दों में सिर्फ़ यह बताना चाहता हूँ कि जिस तरह आपका लिखा आपका कॉपीराइट है उसी प्रकार किसी अन्य का माल भी उसकी संपत्ति है जिसे आप बिना उस व्यक्ति की आज्ञा के नहीं प्रयोग कर सकते।

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