अस्वीकरण: यह लेख एकाध अन्य लेखों और वैसी मानसिकता रखने वालों को धरातल पर लाने का प्रयास है। इसमें आलोचना भी है, कटाक्ष भी है, और व्यंग्य भी है, लेकिन किसी का अपमान करने का इरादा नहीं है। यदि आप इस सबको सही भावना से नहीं ले सकते तो कृपया आगे नहीं पढ़ें। कोई भी असभ्य टिप्पणी तुरंत मिटा दी जाएगी। आपको सावधान कर दिया गया है, आगे जो हो उसके ज़िम्मेदार आप स्वयं हैं।
शेर या बाघ? या दोनों ही??!!
On 09, Nov 2006 | 5 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
आईये मिलिए दुनिया की सबसे बड़ी बिल्ली, या कहें बिल्लौटे से, जिसका नाम है हरक्यूलिस। शेर पिता और बाघ माँ की दोगली संतान हरक्यूलिस एक लाईगर(Liger) है और उसका नाम हरक्यूलिस बिलकुल सही है। तीन वर्ष की आयु वाले इस लाईगर की लंबाई 10 फ़ीट है और इसका वज़न करीब 500 किलोग्राम है।
अमेरिका के मिआमी शहर स्थित इंस्टीटूट ऑफ़ ग्रेटली एनडेन्जर्ड एण्ड रेअर स्पीशीस(Insititute of Greatly Endangered and Rare Species) में रहने वाले हरक्यूलिस एक बार में लगभग 100 पौंड(तकरीबन 45 किलोग्राम) माँस खा सकता है।
सफ़र जारी है .....
पिछली बार जहाँ गाड़ी रोकी थी, उसके बाद एक अनपेक्षित विराम आ गया था, लेकिन वहाँ से आगे बढ़ते हुए प्रस्तुत हैं यादगार चित्रों की अगली कड़ी।
यादगार चित्रों की कड़ी पुनः आरम्भ होगी जब कुछ और यादगार चित्र लिए जाएँगे। 🙂
अक्ल बड़ी या भैंस??
On 31, Oct 2006 | 9 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
आज के हिन्दुस्तान टाईम्स में खबर छपी है(अब हमने आदत के विपरीत आज का अखबार पढ़ ही लिया, क्या करें, कुछ और पढ़ने के लिए हाथ में आया ही नहीं) कि कुछ समझदार अधिकारी अपनी समझ का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। कैसे? अभी बताते हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के ज़िलाधीश ने कॉर्पोरेशन के चुनाव सही तरीके से करवाने के लिए चुनाव के दिन सुबह 8 बजे से सांय साढ़े पाँच तक के लिए सभी मोबाईल नेटवर्क बंद करवा दिए। चकरा गए? घबराईये नहीं, ये साहब अकेले बेअक्ल नहीं हैं। इनके जोड़ीदार और भी हैं जो सरकारी खर्चे पर ऐश कर रहे हैं। एक और के बारे में जानिए। ये हैं करनाल के पुलिस एसपी साहब। इन्होंने 29 अक्टूबर को हरयाणा स्टेट स्टॉफ़ सेलेक्शन कमीशन के पर्चे के चलते लोक हित में सुबह पौने दस बजे से दोपहर 12 बजे तक सभी परीक्षा भवनों के इलाकों में मोबाईल नेटवर्क बंद करवा दिए।
देखो देखो .....इनको भी देखो .....
तो पिछली यादों से आगे बढ़ते हुए, प्रस्तुत हैं कुछ और यादगार चित्र।
बाकी की यादें अगली कड़ी में जारी …..
दोबारा देखो ..... बार-बार देखो .....
पिछली बार से आगे बढ़ते हुए, प्रस्तुत हैं कुछ और यादगार चित्र।
चित्र अभी समाप्त नहीं हुए हैं, अगली कड़ी में जारी …..
एक बार देखो ..... हज़ार बार देखो .....
पिछले कुछ महीनों में मैं काफ़ी घूमा फ़िरा हूँ, इतना मैं अभी तक के अपने जीवन में कभी नहीं घूमा। प्रस्तुत हैं कुछ यादगार चित्र उन्हीं यात्राओं से जो मुझे औरों से अधिक पसन्द आए। 🙂
चित्र अभी और भी हैं, अगली कड़ी में जारी …..
वर्डप्रैस डॉट कॉम आपके पते पर .....
On 25, Oct 2006 | 3 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अभी थोड़ा समय पहले ही वर्डप्रैस डॉट कॉम वालों ने अपना पहला $$ वाला अपग्रेड निकाला था, जब लोगों की बढ़ती माँग को देख उन्होंने अपनी थीम अपने आप डिजाईन करने वालों के लिए $15 का Edit CSS वाला अपग्रेड उपलब्ध करवाया। लोगों की एक और जबरदस्त माँग, अपना ब्लॉग अपने डोमेन पर डाल सकने की काबिलियत, को भी इन ज़हीन लोगों ने सुन लिया है और अब आप $15 सालाना के खर्च पर वर्डप्रैस डॉट कॉम वालों से डोमेन खरीद अपना वर्डप्रैस डॉट कॉम ब्लॉग उस पर रख सकते हैं अन्यथा यदि आपके पास डोमेन पहले से ही है तो आपको केवल $10 सालाना खर्च देना होगा उस पर अपना वर्डप्रैस डॉट कॉम ब्लॉग डालने के लिए। (आधिकारिक घोषणा)
आश्चर्य क्यों .....
On 20, Oct 2006 | 9 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
रवि जी द्वारा पता चला कि देसीपंडित बंद हो रहा है, फ़िर कुछ अन्य चिट्ठों पर भी पढ़ा, उन पर की गई टिप्पणियाँ भी पढ़ी। वैसे तो मुझे यह टिप्पणी रवि जी के ब्लॉग पोस्ट पर करनी चाहिए थी, पर खैर, बहुत समय से मैंने भी नहीं लिखा था यहाँ कुछ तो सोचा यही लिख दिया जाए ताकि लोग बाग़ कहीं यह ना समझ लें कि हमने भी ब्लॉग को अपने तिलांजलि दे डाली!! 😉
करें या ना करें?
On 08, Oct 2006 | One Comment | In Blogger Meetups | By amit
नहीं जी, कोई गलत अर्थ मत निकालना, कुछ ऐसा वैसा करने की नहीं सोच रहे। दरअसल आज इंडिया हैबिटैट सेन्टर में दिल्ली ब्लॉगर्स बिरादरी की एक भेंटवार्ता रखी गई थी। अब कोई ऐसी वैसी भेंटवार्ता नहीं थी, बकायदा एक मुद्दा था जिस पर चर्चा की गई। बात यूँ है कि अभी हाल ही में चेन्नई में एक ब्लॉगकैम्प आयोजित किया गया था। तो हमें लगा कि ऐसा कुछ यहाँ उत्तर भारत में दिल्ली में भी होना चाहिए, अब बहुत से यहाँ के लोग तो वहाँ जा नहीं पाए थे, और बहुत से जो गए थे उनको निराशा हुई क्योंकि कुछ “खास” नहीं मिला वहाँ जिसकी आशा लिए वो वहाँ गए थे।