जब कोई व्यक्ति यह कह किसी पर तंज कसता है कि फ़लाना बन्दा पैसों के पीछे भाग रहा है तो मुझे उस व्यक्ति की सोच और बोल पर तरस भी आता है और गुस्सा भी आता है। अरे भई, पैसों के पीछे कौन नहीं भाग रहा? क्या पैसों के बिना गुजर बसर संभव है? हर कोई यह चाहता है कि वह अच्छे मकान में रहे, अच्छा खाए, अच्छा पहने, बढ़िया जगहों पर घूमने फ़िरने जाए, थोड़ा अपने आने वाले कल के लिए बचा के रखे, अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे, अपने माता पिता के बुढ़ापे को सुखमयी बनाए। तो क्या यह सोचना और इस सोच को साकार करना बुरा है? और कोई क्यों ना पैसे कमाए? किसी दूसरे के पैसे कमाने से लोगों को क्यों चिढ़ होती है? क्या उन्हें पैसे कमाना बुरा लगता है? क्या वे फ़ोकट में नौकरी आदि करते हैं? अरे यदि आपको पैसे कमाना अच्छा लगता है तो क्यों नहीं आप समय का सदुपयोग कर अपना समय पैसे कमाने में लगाते बजाय दूसरे व्यक्ति से कुढ़ने और उसपर तंज कसने के?
ए वीकेन्ड इन ॠषिकेश - भाग २
On 26, May 2006 | 13 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit
गतांक से आगे …..
सांय 5 बजे के करीब मेरे मोबाईल का अलार्म बज उठा और मैंने उठ के देखा कि मैं लगभग पाँच घंटे सोया हूँ, इसलिए काफ़ी हद तक तरोताज़ा महसूस कर रहा था। बाकि लोग पहले ही उठ गए थे। तत्पश्चात नीचे गंगा स्नान के लिए जाने का निर्णय हुआ। अब डुबकी लगाने के लिए मैं तैराकी के वस्त्र आदि तो लाया न था, इसलिए जो कपड़े रात को पहने सफ़र किया था, वो ही पहन लिए। जो लोअर पहन रखा था, घुटनों से उसकी ज़िप खोल दो तो वह बरमुडा बन जाता था, ठीक आशीष भाई की पैन्ट की तरह!! 😉 तो बस टखने से निचले हिस्से को अलग किया और चल दिए नीचे गंगा स्नान के लिए।
ए वीकेन्ड इन ॠषिकेश - भाग १
On 26, May 2006 | 13 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit
जबरदस्त मौसम, गंगा का किनारा, ठण्डा पानी, और चारों ओर हिमालय के पर्वत….. अब इससे अधिक क्या व्यक्त कर सकता हूँ मैं पिछले सप्ताहांत पर की गई ॠषिकेश की यात्रा के बारे में? दरअसल असल योजना थी टुन्गनाथ मन्दिर जाने की जो कि चार दिन की यात्रा होती। पर साथ चलने वालों की कमी थी क्योंकि लोग-बाग़ अपने अपने दफ़तरों से दो दिन का अवकाश नहीं लेना चाहते थे। इस कारण यह मामला ठण्डे बस्ते में गया। फ़िर योजना बनी कोटद्वार के आगे स्थित लांसडाउन जाने की। इसमें मेरे तथा योजना बनाने में सहायक योगेश के अतिरिक्त मोन्टू तथा मोनिका शामिल थे। और लोगों से पूछा पर किसी ने कोई रूचि न दिखाई सिवाय स्निग्धा के, पर उनकी समस्या यह थी कि यदि कोई और लड़की जाती तो ही वे जाती, यही समस्या मोनिका की भी थी, परन्तु जब दोनों ही जाने को तैयार तो फ़िर क्या पंगा हो सकता है!! तो सब मामला तय रहा, बस गाड़ी वाले को बोलना और मंज़िल पर रहने का जुगाड़ करना बाकी था।
एक भेंटवार्ता जो छूट जाएगी!!
On 01, May 2006 | 5 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
हाँ यह एक भेंटवार्ता ऐसी है जो मैं छोड़ना नहीं चाहता, परन्तु छूट जाएगी, या यूँ कहें कि छोड़नी पड़ेगी(घर वालों से डंडे थोड़े ही खाने है न छोड़कर)। कदाचित् जिज्ञासु मन में यह प्रश्न उठा होगा कि कैसी भेंटवार्ता और क्यों छोड़नी पड़ रही है। तो भई बात है यह …..
दिनांक ६ मई २००६ को दिल्ली ब्लॉगर बिरादरी की ग्यारहवीं भेंटवार्ता होगी। अब इसमें क्या खास बात है, यह तो होती ही रहती है। तो भई बात यह है कि इस बार इसमें तीन बहुत ही खास व्यक्ति शिरकत कर रहें हैं जो कि दिल्ली तो क्या भारत के भी नहीं हैं। हाँ, वे तीनों महानुभाव हैं जूलियन सिड्डल, गारेथ मिचेल तथा बिल थॉम्पसन जो कि सीधे लंदन से तशरीफ़ ला रहे हैं।
हम हैं इस पल यहाँ .....
On 22, Apr 2006 | 7 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ। क्यों? यूँ ही, खुरक मच रही थी कि काफ़ी दिन हो गए कुछ लिखा नहीं, सो इसलिए कुछ लिख डालते हैं। पिछली बार जब कुछ लिखा था तो हंगामा हो गया था!! विषय कुछ शीघ्रग्राही था, या यूँ कहें कि समाज के एक वर्ग ने इसे ऐसा बना रखा है। बहरहाल अब उस बवाल से उठी धूल बैठ चुकी है। पर इस बीच न लिखने का कारण यह नहीं था। बल्कि कोई एक कारण न होकर कई कारण हैं जिनका थोड़ा थोड़ा योगदान रहा है, जैसे कि एकाएक मेरा कुछ अधिक व्यस्त हो जाना, फ़िर इस सप्ताह के आरम्भ में वर्डप्रैस डॉट कॉम पर हुई समस्या के कारण इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी फ़िर जाना(जिसे कि हांलाकि बाद में सुलटा लिया गया था)। साथ ही एक ऊब सी होने लगी थी, मैंने अपने किसी अन्य ब्लॉग पर भी काफ़ी अरसे से कुछ नहीं लिखा है। अगर इतना पर्याप्त नहीं था तो एक बड़ा कारण था कि कुछ अन्य चीज़ों की ओर ध्यान केन्द्रित हो गया था(है) और उस समय ब्लॉग पर कुछ लिखना समय की बर्बादी लगा। मेरे साथ ऐसा अक्सर होता है कि किसी नई चीज़ की ओर आकर्षण बढ़ता है और फ़िर उस पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए किसी मौजूदा क्रिया का बलिदान देना पड़ता है, भई अब समय तो आखिर अपनी अंटी में उतना ही है न, आकर्षण के साथ साथ वो थोड़े ही बढ़ता है!! 😉
बुराई है आवश्यक .....
On 06, Apr 2006 | 7 Comments | In Some Thoughts, कुछ विचार | By amit
बुराई, अनाचार, अधर्म, अज्ञानता आदि सभी ऐसे भाव हैं जिन्हें कोई व्यक्ति अपने आसपास नहीं फ़टकने देना चाहता। परन्तु फ़िर भी इनका समावेश प्रत्येक व्यक्ति में है!! हर कोई इनका नामोनिशान मिटा देना चाहता है, परन्तु आजतक सफ़ल कोई न हो सका, और वह दिन बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण होगा जिस दिन इनका नाश हो जाएगा!!
क्यों? क्या आश्चर्य हो रहा है कि मैं अब धर्म की आलोचना के बाद बुराई की वकालत क्यों कर रहा हूँ? 😉 नहीं, मैं शैतान या इबलीस का उपासक नहीं बन गया हूँ। इस वकालत के पीछे भी एक कारण है, बहुत गूढ़ कारण है, और दुर्भाग्यवश बहुत से लोगों को इसका ज्ञान नहीं है।
धर्म या ढ़ोंग?
On 30, Mar 2006 | 29 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अस्वीकरण:-
इस लेख में आलोचना भी है और एकाध जगह पर कुछ अधिक ही हो गई है, पर वे वही भाव हैं जो मेरे हृदय से अंकुरित हुए हैं। इसलिए सावधान, आपको इसे पढ़ने के लिए कोई बाध्य नहीं कर रहा है, पढ़ना हो तो पढ़ें वरना राम नाम जपें(और मुझे माफ़ करें)। मैं एक बेवकूफ़ हूँ, यह मुझे पता है, इसलिए यह बताने का कष्ट करने की बजाय यहाँ से कट लें!!
चोली के पीछे क्या है?
On 29, Mar 2006 | 12 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
नहीं भई नहीं, मैं यहाँ किसी अश्लील बात आदि नहीं पर नहीं चर्चा करने वाला, परन्तु आज की मेरी यह बकवास अश्लीलता के काफ़ी नज़दीक अवश्य है। इसलिए यदि आप अपने को असुखद महसूस करें या आप १८ वर्ष की आयु से कम के हैं तो कहीं और जाईये, इससे आगे पढ़ने पर आप किसी भी परिणाम के स्वयं उत्तरदायी होंगे। 🙂
बात अश्लीलता से ही शुरू होती है, या कहें वेश्यावृत्ति से। वेश्यावृत्ति कोई नई चीज़ नहीं है, यह सदियों पुराना धंधा है और कदाचित् मानव इतिहास के सबसे पहले व्यापारों में से एक है। और अन्य व्यापारों की तरह ही इसकी उत्पत्ति का कारण भी मनुष्य आवश्यकता है। अब इसको अपने शब्दों में मेरे एक परिचित ने कहा:
बिन्दास मूर्खता!!
On 20, Mar 2006 | 5 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अभी एकाध दिन पहले मैं यूट्यूब पर एक वीडियो देख रहा था, जो कि एबीसी न्यूज़ के एक प्रसारण की रिकॉर्डिंग है जिसका शीर्षक दिया गया है “भारत उदय“। अब इस वीडियो में भारत के तेज़ी से होते विकास को भी बताया गया है, पर भारत को दिखाया गया है मुम्बई के स्लम इलाकों से लेकर दिल्ली की सब्ज़ी मन्डियों आदि तक। एक बात मुझे समझ नहीं आती, और वह यह कि इन अमरीकियों आदि को भारत में बस यही दिखाई देता है, स्लम इलाके, नंग धड़ंग घूमते बच्चे, गरीबी रेखा के नीचे रहते लोग? क्या इनको वातानुकूलित शॉपिंग मॉल, मैकडॉनल्ड के रेस्तरां, बरिस्ता आदि के कॉफ़ी पब, कनॉट प्लेस इलाके की बढ़िया सड़कें, नई दिल्ली मुम्बई आदि की सड़कों पर घूमती महंगी गाड़ियाँ, दुनिया में सबसे ज्यादा लखपतियों की तादाद नहीं दिखाई देते? 🙄
कल से आज तक!!
On 19, Mar 2006 | 5 Comments | In Movies, फ़िल्में | By amit
फ़िल्में आदि सभी देखते हैं, कई दशकों से ये लोगों के मनोरंजन का सबसे अधिक लोकप्रिय माध्यम रहीं हैं। पर कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो सदाबहार होती हैं, जो बहुत अच्छी होती हैं, जिन्हें आप कितनी ही बार देख लें, पर जी नहीं भरता। हर किसी की कोई न कोई ऐसी फ़िल्म अवश्य होगी जो उसे बहुत पसंद होगी।
मैं अधिक फ़िल्में नहीं देखता, बस अभी पिछले कुछ महीनों में इतनी फ़िल्में देखी हैं जितनी उससे पहले जीवन में कभी नहीं देखी। इसका एक कारण यह भी है कि पढ़ाई समाप्त होने के कारण अपने समय के स्वयं मालिक हैं, चाहे जो वो करने की स्वतंत्रता है, होमवर्क आदि करने का कोई लफ़ड़ा नहीं है!! 😀
