ऐसा क्यों होता है कि कुछ चीज़ों पर हम यह जानते बूझते भी काबू नहीं रख पाते कि अति बुरी है। वैसे तो अति हर चीज़ की बुरी होती है, पर यह ज्ञान रखने के बाद भी क्यों हम काबू नहीं रख पाते? यह बहस का मुद्दा है, क्योंकि इसका संबन्ध मनुष्य की इच्छा शक्ति से है, जितना व्यक्ति का मन पर संयम होगा, उतना ही वह ऐसी स्थिति में आने से बचेगा। परन्तु दोषहीन कोई नहीं होता, किसी का भी अपने मन पर पूरा नियंत्रण नहीं होता, यह तो प्रकृति का नियम है। प्रत्येक व्यक्ति की कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं जिनके आगे वह विवश हो जाता है। पर यह तो तय है कि इसके पीछे क्या चिंतन है और मन पर संयम कैसे रखा जाए, इसका उत्तर तो कोई महान बुद्धिजीवी ही दे सकता है!! 🙂
क्या करें, कन्ट्रोल नहीं होता!!
On 05, Feb 2006 | 3 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
रफ़्तार ११० कि.मी.
On 03, Feb 2006 | 9 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अभी कुछ ही दिन पहले “द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब” देखने के बाद मन में आया कि शृंखला के बाकी उपन्यास लाकर पढ़ डालूँ, कहानी बड़ी रोचक लग रही है और साथ ही सोचा कि रॉबर्ट लडलम के आखिर में आए एकाध उपन्यास जो नहीं पढ़ें हैं, लगे हाथ वह भी ले आएँ, क्योंकि विश्व पुस्तक मेले में तो अपना भाग्य ने साथ न दिया। परसों सांय का समय था, ७ बज रहे थे, जाना था साउथ-एक्स स्थित बुकमार्क पर, लगभग २३ किलोमीटर का रास्ता था, और ८ बजे दुकान बंद हो जाती है। और इस समय रिंग रोड पर यातायात की भीड़, तौबा!!
द सौरव कॉन्सपिरेसी!!
On 02, Feb 2006 | 4 Comments | In Sports, खेल | By amit
सावधान:- इस पोस्ट में मेरे विचार कई जगहों पर कुछ उग्र भाषा में दिए गए हैं जो कि संभव है कई लोगों को पसंद न आएँ, हालांकि मैंने किसी अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं किया है। इसलिए यदि आगे पढ़ना है तो इस बात को स्वीकार कर पढ़ें कि मैं अपनी उग्र भाषा और लहज़े के प्रति कोई बेकार की टिप्पणी नहीं स्वीकार करूँगा, यदि आपको सभ्यता का पाठ पढ़ाने का शौक है तो कहीं और जाईये!!
गई भैंस पानी में!!
On 01, Feb 2006 | 2 Comments | In Sports, खेल | By amit
दो मैच बेजान पिचों पर खेलने के बाद जब आखिरी टैस्ट मैच में कुछ जानदार हरी पिच मिली, तो लोगों को कुछ आशा बंधी कि आखिरकार मैच में हार-जीत का निर्णय होगा। कप्तान साहब राहुल “दीवार” द्रविड़ ने जब टॉस जीत क्षेत्ररक्षण का निर्णय लिया तो भंवे तो उठी पर यह सोच मन को तसल्ली दी कि अच्छा है, वरना रावलपिंडी एक्सप्रैस इस हरी पट्टी पर भारतीय बल्लेबाज़ी को उड़ा ले जाती। जब इरफ़ान पठान ने हैट-ट्रिक ली, तो मन में अनार-फ़ुलझड़ियाँ फ़ूटने-जलने लगे, पाकिस्तानी बल्लेबाज़ों को झटपट गिरते देख ऐसा लगा कि मानो दीपावली आ गई हो। पर अपने बल्लेबाज़ भी कहाँ कम हैं, प्रतियोगिता की भावना तो उनमें सदैव से ही रहती है, पैविलियन में फ़टाफ़ट वापस लौट आराम करने की तो उन्हें भी जल्दी थी, इसलिए पाकिस्तानी गेन्दबाज़ों को अपने विकेट उपहार स्वरूप प्रदान कर वे भी वापस लौटने लगे। दूसरे दिन के अंत तक सभी निपट लिए थे। तो यानि कि तीन दिन बचे रहे और दो पारियाँ, यानि कि यदि कुछ असाधारण न हो तो खेल का निर्णय पक्का था।
नारनिया का इतिहास - शेर, जादूगरनी और अलमारी.....
On 31, Jan 2006 | 6 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
मैंने कुछ दिन पहले, वाल्ट डिज़नी द्वारा प्रस्तुत, सी.एस.लुईस के लिखे उपन्यास पर बनी इस फ़िल्म, “द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब“, का ज़िक्र किया था। तब यह फ़िल्म यहाँ भारत में रिलीज़ नहीं हुई थी, और मात्र इसका ट्रेलर देखने के बाद ही मैंने कह दिया था कि यह फ़िल्म वाकई में देखने वाली होगी। पर तब कदाचित् मैं गलत था, यह फ़िल्म बढ़िया नहीं बल्कि बहुत बहुत बढ़िया है। कल इस फ़िल्म को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, और यह फ़िल्म वाकई अदभुद है, यह कैसी है, वह तो जो इसको देख ले वही जान सकता है, कम से कम मैं तो इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ। लार्ड आफ़ द रिंग्स के बाद यह पहली फ़िल्म है जो कि उतनी ही बढ़िया लगी।
विश्व पुस्तक मेला!!
On 30, Jan 2006 | 7 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
कल, रविवार 29 जनवरी को एक मित्र के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे सत्रहवें विश्व पुस्तक मेले में जाने का कार्यक्रम बनाया था!! घर से सुबह निकलते निकलते देर ऐसी हुई कि ठीक से नाश्ता भी न कर पाया, जो मुँह में आया वो ठूँसा और सरपट निकल लिए!! दिन कुछ अधिक ही अच्छा था, क्योंकि बाहर सड़क पर आते ही पैट्रोल की सुईं पर नज़र पड़ी तो देखा कि टंकी लगभग खाली थी, पिछली रात ध्यान था कि भरवा लूँगा, लेकिन कुछ दोस्तों के साथ अचानक बाहर खाने का कार्यक्रम तय हो गया और उनके साथ ही निकल लिया, लौटने पर पैट्रोल की बात ध्यान से ही निकल गई!! खैर, अब अपनी सड़ी हुई याददाश्त और किस्मत को कोसते हुए मोटरसाईकिल सरपट दौड़ा दी पैट्रोल पंप की ओर, पहले ही देर हो रही थी, अब तो काम और भी बढ़िया हो गया था!! 😉
दोषहीन, निपुण, अद्वितीय प्रेमी!!
On 28, Jan 2006 | 21 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अब भई, अल्का ने मुझे टैग कर अपना शिकार बनाया है तो हर्जाने के रूप में मुझे भी उनके विषय “निपुण प्रेमी”(perfect lover) पर अपनी राय व्यक्त करनी है कि मेरे अनुसार मेरी निपुण अथवा अद्वितीय प्रेमिका कैसी हो, अथवा यूँ कहें कि मेरे मन में क्या छवि है एक आदर्श प्रेमिका की। इस खेल के कुछ नियम हैं जो मुझे अल्का द्वारा ही पता चले, और वे हैं:
वो लड़की है कहाँ .....
On 25, Jan 2006 | 7 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
जिसे ढ़ूँढ़ता हूँ मैं हर कहीं, जो मिली थी मुझे एक बार कहीं, जिसके प्यार पर है मुझे यकीन, वो लड़की है कहाँ??
नहीं, यह मैं अपने लिए नहीं कह रहा, इसलिए किसी भ्रम में न पड़ें!! 😉 बात तो यह है कि ऐसा यकीनन सोच रहे होंगे कनाडा के मार्क ला चांस जो गए तो थे क्यूबा में छुट्टियाँ मनाने, पर दिल दे बैठे बेल्जियम की सैबाइन को। साथ साथ घूमते हुए छुट्टियाँ तो समाप्त हो गई पर शर्मीले मार्क सैबाइन का पता या फ़ोन नंबर पूछना भूल गए। अब बेल्जियम की टेलीफ़ोन डायरेक्टरी में दर्ज हर सैबाइन नाम की लड़की को चिठ्ठी लिखने वाले हैं कि ताकि उनकी प्रेमिका उन्हें मिल जाए। (स्रोत)
वोट दो वरना .....
On 25, Jan 2006 | 3 Comments | In Some Thoughts, कुछ विचार | By amit
अमेरिका आखिर अपने को समझता क्या है? कहता है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ़ वोट दो वरना भारत-अमेरिका के परमाणु समझौते को नमस्ते कह लो!! (स्रोत) मतलब कि भईये यह तो सीधी सीधी धमकी है, कल को कहेंगे कि फ़लां देश पर हमला करना है, ब्रिटेन की तरह हमारे चमचे बन जाओ वरना तुम्हारी फ़लां स्वीकृति पर रोक लगवा देंगे, या कुछ और कर देंगे!! यानि कि यह तो खुलम-खुला दादागिरी है। साथ ही अमेरिका कहता है कि भारत ने अपने सैन्य और असैन्य परमाणु प्रतिष्ठानों में जो अंतर बताएँ हैं वे विश्वसनीय नहीं हैं।
शेर, जादूगरनी और अलमारी!!
On 25, Jan 2006 | 5 Comments | In Movies, फ़िल्में | By amit
नहीं, न ही मैं पागल हो गया हूँ न ही मैं कोई कहानी नहीं लिख रहा हूँ, अलबत्ता कहानी के बारे में बता अवश्य रहा हूँ!! और कहानी वो जोकि अब फ़िल्म बनकर आ रही है(वैसे तो पिछले दिसम्बर में ही आ चुकी है परन्तु यहाँ भारत में 26 जनवरी को सिनेमा में लग रही है)। मैं बात कर रहा हूँ वाल्ट डिज़नी द्वारा प्रस्तुत, सी.एस.लुईस के लिखे उपन्यास पर बनी फ़िल्म “द क्रानिकल्स आफ़ नारनिया – द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब” की, जो कि एक फ़ैन्टसी फ़िल्म है!!