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नई मुद्रा, नया भारत?

रजनीश बाबू ने सत्रहवीं अनुगूँज की और विषय है, “क्या भारतीय मुद्रा बदल जानी चाहिए?“। उनका कहना है कि जैसे 2001 में यूरोप में नई मुद्रा यूरो का प्रयोग चालू हुआ था और कई बदलाव आए थे, उसी प्रकार भारत में यदि एक नई मुद्रा चालू की जाए जिसका एक रूपया पुराने पचास रूपयों के बराबर हो, तो यहाँ पर भी क्राँति आ सकती है। उदाहरण वे दे रहे हैं जर्मनी का जिसके मार्क की कीमत से दोगुनी कीमत यूरो की रखी गई और जिसके कारण वहाँ की अर्थव्यवस्था में कई बदलाव आए। रजनीश ने सोच विचार करते हुए कुछ परिणामों को अंकित किया है जो कि सार्थक हो सकते हैं यदि भारतीय मुद्रा का पुनर्मूल्यांकन किया गया तो।

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नया दिन, नया समय, नया साल!!

समय अपनी गति से बढ़ता रहा, घड़ी ने बारह बजाए, पुराना साल 2005 बीत गया और नए साल 2006 ने द्वार पर दस्तक दी। जी, नया साल 2006 आ गया है और आप सभी को मेरी ओर से नव वर्ष 2006 की हार्दिक बधाई। 🙂

आशा है कि यह वर्ष मेरे और आपके जीवन में बीते हुए वर्ष से भी अधिक हर्ष और उल्लास लाएगा और जो शोकमयी घटनाएँ पिछले वर्ष मेरे(और आपके) साथ घटी वे जीवन पर और इस वर्ष पर अपना सद्प्रभाव ही डालेंगी।

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अंधेर नगरी, चौपट राजा

अंधेर नगरी चौपट राजा, बजा रहा है सबका बाजा!! आतंकवाद का है राज, लोगों का जीना है दुश्वार। कश्मीर में तो आतंकवाद का राज है ही, पंजाब में भी कोई नई बात नहीं है, पूर्वी राज्यों में तो अंधेर है ही, लेकिन इतने पर ही बस कहाँ, अब तो बंगलूर जैसा आधुनिक शहर भी अछूता नहीं रहा!! बंगलूर में हुए आतंक के नंगे नाच का जिम्मेदार चाहे जो भी हो, प्रश्न है कि उन्हे पकड़ने के लिए और सज़ा दिलाने के लिए हमारा उत्कृष्ट प्रशासन क्या कर रहा है? और उससे भी बड़ा प्रश्न है कि क्या हमारी सरकार हमारी रक्षा करने में समर्थ है कि नहीं?

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दिल्ली ब्लॉगर्स भेंटवार्ता...

जी हाँ, आज जब मैंने साकेत के ब्लॉग पर यह घोषणा देखी तो मुस्कुराए बिना नहीं रह सका। नए साल 2006 की पहली दिल्ली ब्लॉगर्स भेंट महीने के पहले रविवार की जगह 2 जनवरी(सोमवार) को आयोजित की जाएगी। स्थान होगा नई दिल्ली स्थित कनॉट प्लेस का क़ाफ़ी पब बरिस्ता और दिल्ली के ब्लॉगर्स की इस पाँचवीं मासिक भेंट के आयोजन का जिम्मा संभाला है शिवम विज ने। मुझे इसके बारे में एक-आध महीने पहले ही पता चला था परन्तु मैं कुछ कारणों की वजह से भाग नहीं ले पाया था, पर इस बार मैं अवश्य जा रहा हूँ। 🙂

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लोकतंत्र या तानाशाही?

क्या हमारा भारत एक लोकतंत्र है? कहने को तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश भी है परन्तु यहाँ रहने वाले जानते हैं कि यहाँ कितनी धर्मनिरपेक्षता है। परन्तु अब तो प्रश्न भारत के तानाशाही होने या न होने का है, क्योंकि इस प्रश्न के उत्तर से सिद्ध होगा कि यहाँ के नागरिकों को अपना जीवन अपने ढंग से जीने की स्वतंत्रता है कि नहीं। अभी तक हमारे जीवन में बहुत सी ऐसी घटनाएँ घटी होंगी जिससे हमारा लोकतंत्र पर विश्वास डगमगाया होगा या लगभग छूट ही गया होगा, पर हम किसी तरह उस स्वर्ण डोरी को पकड़े रहे। परन्तु हर बात की, विश्वास की, एक सीमा होती है।

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स्वयमेव जयते!!

हाँ, आपने सही पढा, मैंने ‘सत्यमेव जयते’ नहीं बल्कि ‘स्वयमेव जयते’ कहा। और क्या अनुचित कहा? और यह कोई नई बात भी नहीं है, सदियों से हम देखते आ रहे हैं कि हमारे तथाकथित नेता अपने निजी स्वार्थ को जनहित से उपर मानते और निभाते आ रहे हैं। चाहे वे किसी राजनैतिक दल के नेता हों या किसी राज्य-रियासत के राजा महाराजा या नवाब, निजी स्वार्थ सदैव सर्वोपरि रहा है। प्रश्न उठता है ‘क्यों’। क्यों वे लोग भूल जाते (थे)हैं कि नेता या राजा ईश्वर का कोई रूप नहीं होता, वह जनसमुदाय का प्रतिनिधी होता है जिसका पहला कर्तव्य उन लोगों की ओर होता है जिनका वह प्रतिनिधित्व कर रहा होता है। परन्तु यह सब किताबी बातें हैं, उन लोगों के दृष्टिकोण के अनुसार वे विशेषाधिकृत होते हैं जिन्हें अपनी इच्छानुसार कुछ भी करने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। और साथ ही सदैव ही से इन लोगों को यह डर सताता रहा है कि कहीं कोई इनका सिंहासन या कुर्सी न छीन ले क्योंकि इनके अंतरमन में इन्हें इस बात का ज्ञान हमेशा रहा है कि वे गलत हैं। अब चाहे वह औरंगज़ेब हो या बहादुरशाह जफ़र, गांधी हो या नेहरू, लालू यादव हो या आज का कोई और नेता।

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हिन्दी? बाप रे..

जीहाँ, यही रवैया है हमारे यहाँ के अधिकतर नवीं कक्षा के छात्रों का जब उन्हें यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाती है कि वे संस्कृत और हिन्दी में से किसी एक का चुनाव कर सकते हैं जिसकी परीक्षा वे दसवीं के बोर्ड में देना चाहते हैं। ज्यादातर छात्र बेहिचक संस्कृत का चुनाव करते हैं, सिर्फ़ इस लिए कि हिन्दी की तुलना में संस्कृत में अधिक अंक आ जाते हैं। क्या वाकई ऐसा है?

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रंणबाँकुरों की वापसी!!

On 28, Nov 2005 | No Comments | In Sports, खेल | By amit

टीम इंडिया, भई वाह!! आज तो कमाल ही हो गया, जिस तरह से भारतीय रंणबाँकुरों ने पाँचवें और आख़िरी मुकाबले को जीत कर श्रृंख़ला को बराबर कर भारतीय भूमि पर दक्षिण अफ़्रीका की पहली एक दिवसीय श्रृंख़ला विजय का सपना चूर किया, वह वाकई प्रशंसा के योग्य है। कोलकाता में मिली क़रारी हार के बाद बहुत से लोगों को(यहाँ तक कि मुझे भी) यही आशा थी कि आज के अन्तिम मैच में भी भारतीय टीम कुछ ख़ास न कर पाएगी और दक्षिण अफ़्रीका आख़िरकार श्रृंख़ला ले ही जाएगी। पर टीम इंडिया ने जबरदस्त वापसी करते हुए मुम्बई के वानख़ेड़े स्टेडियम में हज़ारों की तदाद में आए दर्शकों को निराश न किया और मैच 5 विकटों से जीत लिया।

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हिन्दी में क्यों?

कुछ लोगों को जिन्हें मैंने इस ब्लाग के बारे में बताया, उनमें से कुछ को तो यह अच्छा लगा, कुछ ने तारीफ़ की तो कुछ ने मुझसे पूछा कि मैंने हिन्दी में लिख़ने का निर्णय क्यों लिया। मेरा उत्तर था कि मैंने हिन्दी भाषा को इसलिए चुना क्योंकि दुर्भाग्यवश मुझे अंग्रेज़ी और हिन्दी के अलावा कोई और भाषा नहीं आती(मैं पहला अवसर मिलते ही इस भूल को सुधारूँगा) और अंग्रेज़ी में तो मैं पहले से ही लिख़ता हूँ। परन्तु इसके आगे विस्तार करते हुए मैंने कहा कि हिन्दी लिख़ने का मेरा अभ्यास लगभग छह वर्षों से छूटा हुआ था और मैं वापस हिन्दी में लिख़ना चाहता था, हालाँकि हिन्दी तो मैं रोज़ ही बोलता-सुनता हूँ किन्तु हिन्दी बोलने में और लिख़ने में बहुत अन्तर है, बोलना बहुत आसान है और लिख़ना उतना ही कठिन है। पर समस्या यह थी कि मुझे हिन्दी टाईपिंग नहीं आती थी, परन्तु देवेंद्र परख़ के हिन्दी-राईटर सॉफ़्टवेयर ने मेरी सारी समस्या ही दूर कर दी।

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टीम इंडिया, वाह भई वाह - भाग 2!!

On 25, Nov 2005 | No Comments | In Sports, खेल | By amit

टीम इंडिया ने आख़िर वह कर दिख़ाया जिसकी मुझे पूरी उम्मीद थी, वो आख़िरकार दक्षिण अफ़्रीका से हार गई। और हारी भी तो कैसे? 10 विकेट से!! पहले तो स्कोर नहीं बनाया, केवल 188 रन पर सिमट गए और उसके बाद तो कमाल ही हो गया, दक्षिण अफ़्रीका ने बिना एक भी विकेट गंवाए भारतीय रणबाँकुरों का मुँह काला कर दिया!! यानि कि बल्लेबाज़ नाकाम, गेंदबाज़ नाकाम और क्षेत्ररक्षण में तो टीम इंडिया की कोई सानी है ही नहीं!! 🙄

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