अब क्या परंपरागत किताबों को छोड़ दें? नए ईश्टाइल की बिना कागज़ की किताबों को अपनाएँ? ये प्रश्न काफ़ी समय से बार-२ ज़ेहन में उठते और बार-२ मैं इनको टाल देता कि नहीं अभी ई-बुक पर कैसे जाएँ, कागज़ की किताब को हाथ में लेकर पढ़ने की जो फील है, उसमे जो बात है वह किसी और चीज़ में नहीं आ सकती। कुछेक वर्ष पूर्व मैंने प्रयास किया था ई-बुक पढ़ने का लेकिन मज़ा नहीं आया कंप्यूटर की स्क्रीन पर आँख गड़ाकर पढ़ने में, या यूँ कह सकते हैं कि मन में ही एक मेंटल ब्लॉक था जो कि इस डगर पर आगे बढ़ने नहीं दे रहा था। 😐
समीक्षा की समीक्षा: एजेन्ट विनोद
काफी समय हो गया कुछ लिखे, फ़िल्म की समीक्षा लिखे भी (कोई तीन साल पहले लिखी थी आखिरी समीक्षा, उसके बाद फ़िल्में तो बहुत देखी लेकिन लिखा किसी के विषय में नहीं), तो सोचा की परसों देखी एजेंट विनोद की समीक्षा ही लिख दें। इस फ़िल्म पर तथाकथित ज्ञानी लोगों अर्थात आलोचकों की काफी समीक्षाएँ आ चुकी हैं, परन्तु फ़िल्म देखने से पहले मैंने इन समीक्षाओं को पढ़ना मुनासिब नहीं समझा। प्रायः होता यह है कि इन एक्सपर्ट्स की समीक्षाओं का कोई सिर-पैर नहीं बनाता, बस यूं ही तू कौन मैं खामखा टाइप लिख डालते हैं जो जी में आया या फिर जो किसी ने चढावा देकर लिखवा लिया। तो इसलिए तय किया गया कि पहले फ़िल्म देख आएँ उसके बाद देखेंगे कि क्या और क्यूं लोग गरिया रहे हैं।
आखिरी दिन.....
On 31, Dec 2011 | 3 Comments | In Here & There, इधर उधर की | By amit
आज इस वर्ष का अंतिम दिन है। यह साल बहुत हिप एण्ड हैपनिंग रहा है, इस साल में बहुत सी तोपें चली हैं बहुत से तोपची विदा हुए हैं। चाहे वह लंबे और खूनी गृह-युद्ध के बाद हासिल हुई दक्षिणी सुडान की आज़ादी हो या तुनीशिया में आई क्रांति, चाहे वह जापान की सुनामी हो या मिस्र में भड़की क्रांति, काफ़ी घटनाएँ-दुर्घटनाएँ सन् 2011 में हुई हैं। यदि नामी गिरामी हस्तियों की बात करें तो चाहे वह बिन लादेन की लदाई हो या सुंदरता की स्तंभ रही एलिज़ाबेथ टेलर की विदाई, बॉक्सिंग की दुनिया में मशहूर जो फ्रेज़ियर हों या कंप्यूटर की दुनिया में बदनाम स्टीव जॉब्स, बहुत से नामी-गिरामी व्यक्तियों की इस वर्ष में लदाई-विदाई हुई।