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मोबाइल गेमिंग.....

आज की तारीख में मोबाइल गेमिंग बहुत बड़ी इंडस्ट्री है, करोड़ों रूपयों की इंडस्ट्री है। आज कोई नया मोबाइल फोन लिया जाता है तो पहले यह देखा जाता है कि उसमें फलानी वीडियो गेम चलेगी कि नहीं और कौन-२ सी वीडियो गेम्स उपलब्ध हैं। पोर्टेबल हैण्ड हैल्ड गेमिंग कनसोल जैसे कि निनटेन्डो डीएस (Nintendo DS) अथवा सोनी प्लेस्टेशन पोर्टेबल (Sony PSP) आदि के दिन लद गए। अब कन्वरजेन्स का ज़माना है, मोबाइल फोन ही इतने सक्षम हो गए हैं कि बढ़िया क्वालिटी की वीडियो गेम बिना पसीना बहाए चला सकें। फिर साथ ही सुविधाजनक भी हो जाता है, पतले हल्के मोबाइल फोन हैण्ड हैल्ड गेमिंग कनसोल की भांति भारी और बेडौल नहीं होते और आपको एक अन्य डिवाइस साथ लेकर नहीं घूमना पड़ता, मोबाइल फोन ही काफ़ी है। यानि कि म्यूज़िक प्लेयर और पोर्टेबल वीडियो प्लेयर तो पहले बना ही लिया अब गेमिंग के लिए भी हो गया; वन डिवाइस टु रूल देम ऑल!! 😀

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हम राक्षस हैं.....

पिछले वर्ष कार्टून फिल्म आयी थी, रामायण (पूर्ण फिल्म यहाँ देखें)। अच्छी थी, एनीमेशन अच्छा था, संगीत अच्छा था और साथ ही डॉयलाग भी अच्छे थे। उसमें रावण के किरदार को आशुतोष राणा ने आवाज़ दी थी। जब फिल्म में रावण की पहली बार एण्ट्री होती है तो वह डॉयलाग मारता है – हम विश्व विजेता हैं, हम शासक हैं, हम राक्षस हैं….. हम राक्षस हैं! और साथ ही पार्श्वध्वनि में सब एक साथ चिल्लाते हैं – “राक्षस हैं….. राक्षस हैं….. राक्षस हैं”।

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पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त.....

वाकई, मुझे लग ही रहा था कि पिक्चर अभी बाकी है, दिल्ली अभी दूर है, और मेरा माइंड अभी ब्लो होना है!!

यदि आपने नहीं पढ़ी है तो दास्तान-ए-मैक की पहली किस्त अवश्य पढ़ें। 😉 पिछली किस्त में मैंने दूसरी चीज़ों के साथ कीपास और वनपासवर्ड का अनुभव बताया था कि कैसे कीपास का जुगाड़ मैक पर नहीं चला। बाद में चलाने पर कीपास का मैक वर्ज़न कीपासएक्स मेरे मैक पर चल गया, हालांकि उतना बढ़िया नहीं है जितना विण्डोज़ वाला कीपास है लेकिन कुछ नहीं से कुछ सही वाली बात हो जाती है, सबसे बढ़िया दो बातें कि मुफ़्त है और मुझे अपना कीपास वाला डाटाबेस कन्वर्ट नहीं करना पड़ेगा और वही एक डाटाबेस विण्डोज़, मैक और एण्ड्रॉयड तीनों पर चल जाएगा!! :tup:

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हाय रे ये बुरा समय.....

….. बिन बुलाए मेहमान की तरह आता है अपनी मर्ज़ी से जिसके जाने का कोई समय तय नहीं होता!

मेरा भी समय खराब ही चल रहा है पिछले कुछ समय से, कदाचित्‌ शनि की दशा चल रही है। साल के शुरु में घर से बेघर हो बेगाने शहर में अब्दुल्ला दीवाने हुए, चैन की सांस न मिली (हर समय किसी न किसी चीज़ में अटकी जो रहती)। सोचा वापस आकर ये करेंगे वो करेंगे लेकिन झण्डा कहीं भी न गड़ा सके अभी तक, पेलम पिलाई लगी हुई है बस!! 🙂

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खुशी, आनंद.....

 

खुशी का समावेश धन अथवा संपत्ति में नहीं है, यह वह भावना है जो आत्मा में बसती है

— डेमॉक्रिटस

वर्ष भर में वाकई काफ़ी कुछ बदल जाता है, चाहे पसंद हो या न हो, कई उतार चढ़ाव आ जाते हैं और वर्ष भर बाद पलट के देखने पर सारा लैंडस्केप (landscape) बदला-२ दिखाई पड़ता है। कुछ ऐसा ही मैंने पूरे तीन वर्ष पूर्व छपी ऐसी ही एक पोस्ट में ऑब्ज़र्व किया था, मेरे ख्याल से पुनः ऐसा करने पर कोई हर्ज़ न होगा, यह ऑब्ज़र्वेशन सही जान पड़ती है क्योंकि ऐसा होते मैंने देखा तथा महसूस किया है।

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अक्ल बोले तो??

एकाध दिन पहले एक तकनीकी ब्लॉग पर एक एक्सपर्ट द्वारा लिखी सैमसंग गैलेक्सी एस2 (Samsung Galaxy SII) की समीक्षा पढ़ी। समीक्षा पढ़ पता चला कि एक्सपर्ट एप्पल की कूल एड के लती हैं इसलिए गैलेक्सी एस2 को हर तरह से अच्छा बताते हुए भी मजबूरन तथा खामखा एप्पल आईफोन 4 (Apple iPhone 4) से कमतर बता रहे थे। उस समीक्षा में मौजूद एक दलील पर यह व्यंग्यात्मक कार्टून!!

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