Image Image Image Image Image
Scroll to Top

To Top

श्री श्री १००८ परम्‌ पूज्य बाबा अमित जी महाराज का नवीन डिप्लोमैटिक जीवन मंत्र

देखो सुनो सोचो विचारो, ज़रूरत हो तो ही कुछ उच्चारो

Tags | ,

पाकिस्तानी टीम की सुरक्षा माकूल नहीं.....

On 01, Mar 2010 | 6 Comments | In Sports, खेल | By amit

पाकिस्तानी हॉकी टीम के कोच शाहिद अली खान साहब चिंतित हैं कि नई दिल्ली में हो रहे हॉकी विश्वकप में उनकी टीम को संतोषजनक सुरक्षा नहीं दी जा रही है (यहाँ पढ़िए)। मन में ऐसा आता है कि पूछें कि जनाब आपको सुरक्षा की काहे आवश्यकता, अब अल-कायदा या आपके कोई अन्य बंधु बम वगैरह फोड़ेंगे तो आपको तो पहले से इत्तला कर देंगे, आपको थोड़े ही न टेन्शन लेने की आवश्यकता है!! 🙄

Click here to read full article »»

Tags | , , , , , , ,

पसंदीदा लेखों की सूचि

एक अरसा हुआ, रवि जी ने कहा था कि मैं अपने पसंदीदा लेखों की सूचि सार्वजनिक करूँ ताकि वे भी देख सकें कि मैं क्या पढ़ता हूँ। उस समय मैं ब्लॉगलाइन्स (bloglines) का प्रयोग करता था और अभी तक करता आ रहा था, उसमें लेख पसंद कर उनकी फीड आदि सार्वजनिक करने का कोई जुगाड़ नहीं है इसलिए रवि जी के कहे अनुसार करना संभव न था। ब्लॉगलाइन्स की काफ़ी समय से आदत पड़ी हुई थी, वही प्रयोग करता आ रहा था इसलिए गूगल रीडर पर पलायन करने को मन न मानता था। कुछेक सुविधाएँ दोनों में ही एक्सक्लूसिव सी हैं; जिस प्रकार गूगल रीडर की भांति ब्लॉगलाइन्स में पसंदीदा लेखों की फीड को साझा नहीं किया जा सकता उसी प्रकार गूगल रीडर में ब्लॉगलाइन्स की भांति किसी लेख को सेव करने का जुगाड़ नहीं है। वैसे मैं आशा कर रहा हूँ कि गूगल रीडर में किसी भी लेख को स्टॉर करने का जो विकल्प है वह अमुक लेख को रीडर में ही रखता होगा चाहे लेख कितना ही पुराना क्यों न हो, जैसे कि ब्लॉगलाइन्स में किसी भी लेख को पिन करने का विकल्प होता है।

Click here to read full article »»

Tags | , , , , ,

हिपोक्रिट से सेल्फ़ राईटियस

व्यक्ति कोई भी हो, पुरुष हो या स्त्री, हर मनुष्य में हिपोक्रिटिक (hypocritic) भावना मिल ही जाती है। अब मेरे एक मित्र का मानना है यदि व्यक्ति संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि से नहीं आया हो (आयी भी हो सकती है लेकिन फॉर द सेक ऑफ़ पोस्ट, एक कॉमन लिंग लेकर “आया” ही प्रयोग करते हैं) तो उसका बर्ताव अधिकतर समय सेल्फ़ राईटियस (self righteous) की रेखा पार करता है। अब यदि व्यक्ति सेल्फ़ राईटियस की सीमा पार करता है तो हिपोक्रिट (hypocrite) भी काफ़ी हो जाता है, सूडो (pseudo) हो जाए तो भी कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन अपने मित्र से मैं इस बात पर सहमत नहीं कि यह मामला उनके साथ अधिक होता है जिनकी संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं। मैंने संपन्न पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए लोगों में भी ऐसी भावनाएँ देखी हैं, इसलिए मैं स्वयं कम से कम इस तरह जनरलाइज़ (generalize) नहीं कर सकता क्योंकि मैं समझता हूँ कि इस मनोविज्ञान को समझने जितनी जानकारी और समझ फिलहाल मुझमें नहीं है।

Click here to read full article »»

Tags | , , ,

2009 की आखिरी दो ब्लॉगर भेंटवार्ताएँ .....

On 04, Jan 2010 | 16 Comments | In Blogger Meetups | By amit

पिछले वर्ष 19 दिसंबर वाले सप्ताहांत पर अहमदाबाद से बेंगाणी बंधु दिल्ली आए हुए थे। अहमदाबाद से निकलने से पहले पंकज ने बता दिया था कि दोनों भाई दिल्ली आ रहे हैं किसी पुरस्कार समारोह के लिए तो मैंने तुरंत कह दिया था कि भई फोन नंबर तो तुम्हारे पास है ही तो जब भी समय हो बता देना अपन मिलने आ जाएँगे। अब यह नहीं पता था कि रवि जी भी होंगे साथ में, तो यह बढ़िया संयोग रहा। इधर मज़ेदार बात यह रही कि जीतू भाई भी दो-तीन दिन पहले ही भारत आए थे और बता दिए थे कि भई आ गए हैं मिलने का बनाएँगे मामला। तो इधर मैंने उनको भी खबर कर दी कि मामला बनता दिख रहा है अच्छा खासा। तो 19 दिसंबर को हौज़ खास में उसी ऑडीटोरियम में मिलने का प्रोग्राम बना जिसमें पुरस्कार समारोह आयोजित था। उससे पिछली रात को श्रीश से बात हो रही थी तो यह बात निकल गई कि कल मिलने का प्रोग्राम है इतनी बड़ी हस्तियों से, तो वह भड़क गया कि उसे काहे नहीं न्यौता दिया गया। तो मैंने कहा कि अगले दिन स्कूल की छुट्टी मार, सुबह बस में चढ़ और दोपहर तक पहुँच जाएगा यहाँ दिल्ली, तो वह भी राज़ी हो गया।

Click here to read full article »»

Tags | , , , , ,

थकेले विज्ञापनों का टॉर्चर.....

मैं प्रायः टेलीविज़न नहीं देखता हूँ, कभी यदि कोई दिलचस्प चीज़ दिखाई जा रही हो या कोई फिल्म आ रही हो जो अपने पास न हो तो देख लेता हूँ। अभी एकाध दिन पहले यूटीवी मूवीज़ (UTV Movies) पर अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की फिल्म “नमकहलाल” आ रही थी। यह मेरी पसंदीदा फिल्मों में है तो देखने बैठ गया। फिल्म के दौरान विज्ञापन अपने को पसंद नहीं लेकिन टीवी चैनल पर तो आते ही हैं इसलिए झेलने पड़ते हैं, परन्तु कई विज्ञापन तो ऐसे वाहियात होते हैं कि उनको झेलना टॉर्चर लगता है।

Click here to read full article »»

Tags | , ,