भारतीयता नहीं है आपमें.....
On 22, Oct 2009 | 12 Comments | In Mindless Rants, Satire, व्यंग्य, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
अभी कुछ दिन पहले मैंने आमतौर पर समझने जाने वाले कॉन्टीनेन्टल नाश्ते और असली कॉन्टीनेन्टल ब्रेकफास्ट के फ़र्क को बताते हुए पोस्ट ठेली थी, साथ ही फुल इंग्लिश ब्रेकफास्ट, स्कॉटिश ब्रेकफास्ट, आदि के बारे में भी बताया कि इनमें किन आईटमों की मौजूदगी रहती है। तो हुआ यूँ कि एक साहब ने इस ब्लॉग पर मौजूद संपर्क करने वाले फॉर्म का प्रयोग कर मुझे एक ईमेल लिखा। ईमेल की भाषा कड़क थी, क्या लिखा वह तो नहीं छाप रहा पर मोटे तौर पर उस संदेश का आशय मुझ पर लानत फलानत भेजना था कि अपने देश के नाश्ते मुझे पसंद नहीं आते और मैं शान से अपने को भारतीय कहते हुए फिरंगियों के नाश्ते करता हूँ और अपनी शेखी अपने ब्लॉग पर बखारता हूँ। किसने ऐसा लिखा उसको छोड़िए, नाम फर्ज़ी था, अपने को जानने की इच्छा भी नहीं कौन साहब हैं, यहाँ तो बात सिर्फ़ आशय की करते हैं।
दिवाली की आतिशबाज़ी.....
On 16, Oct 2009 | 7 Comments | In Here & There, इधर उधर की | By amit
कल दीपावली है, दीपों का त्यौहार है। अब इस पर अधिक क्या कहना, बहुत लोग पहले ही बहुत कुछ कह चुके हैं, किताबों में पहले ही छप चुका है। पर इस दिन पर दो तरह के लोग मिल जाते हैं – एक वो जो आतिशबाज़ी के सख्त खिलाफ़ होते हैं और दूसरे वो जो हद से अधिक आतिशबाज़ी के पक्ष में होते हैं। और जब दोनों तरह के लोग अपना प्रोपोगेन्डा (propaganda) मेरे को पढ़ाते हैं तो मैं दोनों ही तरह के लोगों को कहता हूँ कि भाड़ में जाओ।
द कॉन्टीनेन्टल ब्रेकफास्ट.....
On 07, Oct 2009 | 10 Comments | In Mindless Rants, Satire, व्यंग्य, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
कुछ अरसा पहले मैंने अपने घर के नज़दीक स्थित ज्ञानी के अड्डे पर हुआ चॉकलेट आईस्क्रीम और नए मुल्लाओं का वाकया बयान किया था (यदि आपने नहीं पढ़ा है तो एक बार अवश्य पढ़ लें, मौज की मौज और कंटेक्सचुअल अर्थ भी समझ आएगा)। उसके अंत में मैंने ज़िक्र एक साहब और कॉन्टीनेन्टल खाने का किया था, आज मन में आया कि वो किस्सा भी बाँच दिया जाए। 🙂
अथ् श्री बड्डे कथा.....
On 29, Sep 2009 | 8 Comments | In Memories, Mindless Rants, यादें, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
….. कटा नहीं – “कथा”, सोच समझ के पढ़िएगा, पुराण नहीं है!! इसलिए बाँचने के लिए भी कुछ अधिक मसौदा नहीं है। वो तो अनूप जी अपने बड्डे का हाल बतलाए कि क्या साजिश वगैरह हुई और कैसे वो जेब ढीली करने से बचे तो लगे हाथ मैंने पूछ लिया कि ये मोबाइल की साजिश क्या कनपुरियों में ही होती है (क्योंकि जीतू भाई के साथ भी हुई इसी महीने) या फिर यह सितंबरी लालाओं के साथ ही होता है। अब यदि कनपुरियों की बात है तो अपन इतने नहीं टेन्शनियाते लेकिन यदि सितंबरी लालाओं पर ही यह मार पड़ती है तो अपना टेन्शनियाना जायज़ है क्योंकि इन्हीं दोनों महानुभावों की ही भांति अपन भी सितंबरी लाल हैं। वैसे यदि अपने साथ साजिश होती तो मोबाइल की न होती, अपना हाल तो यूँ है कि यदि दो-तीन साल में नया मोबाइल फोन ले भी लिया जाए तो माता जी हड़का देती हैं कि काहे खामखा फिजूल खर्च किया जब पुराने मोबाइल पर कॉल सही तरीके से आ जा रही थी!! 😉
नया वर्ष.....
On 23, Sep 2009 | 10 Comments | In Some Thoughts, कुछ विचार | By amit
जब हम दुनिया में आते हैं तो यह सोच रोते हैं कि हम मूर्खों की इस दुनिया में आ गए।
— विलियम शेक्सपीयर
अंधकार से हमें क्या काम, सूर्यमुखी की ही भांति देखें हम भी प्रकाश की ओर कि वही है उन्नति का मार्ग। बस यही है प्रण इस नए वर्ष का।
दूरदर्शन के पचास वर्ष और खोती प्रासंगिकता
On 17, Sep 2009 | 6 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
पंकज ने बताया कि दूरदर्शन के पचास वर्ष हो गए हैं और वह अपनी स्वर्ण जयंति मना रहा है। इसी के चलते पंकज ने दूरदर्शन के स्वर्ण काल के कुछ लोकप्रिय कार्यक्रमों की सूचि छापी है और कहा कि दूरदर्शन आज अपनी प्रासंगिकता खो रहा।
मैं समझता हूँ कि दूरदर्शन ने आऊट ऑफ़ डेट होना और बोर करना बीस साल पहले ही शुरु कर दिया था लेकिन उस समय लोग इसलिए झेल रहे थे कि निजी चैनल नहीं थे, केबल टीवी नब्बे के दशक में आया और शुरुआती दिनों में महंगा था। लेकिन जैसे-२ उसके दाम नीचे आते गए और लोगों को मज़ा आना शुरु हुआ वैसे-२ उसकी पैठ बढ़ने लगी और दूरदर्शन की ग्राहकी कम होती गई।
एक और टैग.....
On 10, Sep 2009 | 4 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
कोई दो-ढाई सप्ताह पूर्व जनाब मसिजीवी फेसबुक (Facebook) पर एक टैग अपने को थमा दिए जिसमें पचास सवाल थे जिनका आशय अपने बारे में जानकारी निकलवाना था। फुर्सत में था इसलिए तुरंत दस मिनट में ही टैग को निपटा के वहीं फेसबुक पर ठेल दिया। अब साथी लोग इधर आजकल अपने ब्लॉगों पर बासी माल को नई पैकिंग में पुनः बेच रहे हैं, इधर अपनी भी ट्यूब आजकल खाली है और भरने की प्रतीक्षा है, अनूप जी पहले ही फुनवा पर कह चुके हैं कि फोटू ठेल कर आजकल काम चलाया जा रहा है। इसी के चलते सोचा कि चलो बासी माल न सही लेकिन दूसरी दुकान पर रखा सामान इधर भी रख दें हिन्दी अनुवाद के साथ, छपास पिपासा भी मिटेगी और इधर के ग्राहकों के लिए नया माल भी हो जाएगा!! 😀