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On 04, Aug 2009 | One Comment | In कतरन | By amit

शेर शाह सूरी के दरबार के एक अफ़गान सामंत इसा खान का मकबरा

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संपूर्णता.....

कल मैंने नैनोफिक्शन के विषय में लिखा था कि इस विधा में कथा को 55 शब्दों में ही समेटना होता है और उसके कुछ अन्य नियम भी बताए थे। यह नैनोफिक्शन अर्थात्‌ पचपन शब्दिया कथा की विधा में मेरा पहला प्रयास है। एन्सी ने सही कहा था, वाकई कठिन कार्य है पचपन शब्दों में कथा को समेटना।

 

“स्त्री माँ बनने पर ही पूर्ण होती है”, माँ ने युवा होने पर समझाया था। वह माँ नहीं बन सकती थी, जान का खतरा था। पाँच वर्षों से सास उसे ताने दे रही थी।
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नैनोफिक्शन.....

जून में एन्सी ने नैनोफिक्शन (nanofiction) पर एक पोस्ट अपने ब्लॉग पर लिखी, और उसमें कुछ अति लघु कथाएँ भी छापी। जब जून के अंतिम सप्ताहांत पर छुट्टियाँ मनाने नाहन गए तो उस समय इस पर और ज़िक्र हुआ कि आखिर यह मामला है क्या।

जिस तरह फ्लैश फिक्शन (flash fiction) होती है कुछ उसी तरह नैनोफिक्शन (nanofiction) है, या यूँ कहें कि फ्लैश फिक्शन का और भी अधिक छोटा कर दिया गया रूप है। फ्लैश फिक्शन में प्रायः कथा 300 से 1000 शब्दों में होती है, कोई निर्धारित सीमा नहीं है, कथाकार पर निर्भर करता है, कुछ लोग 300 शब्दों में निपटा देते हैं और कुछ 1000 शब्दों तक ले जाते हैं। लेकिन नैनोफिक्शन में निर्धारित सीमा है, कथा 55 शब्दों से अधिक नहीं हो सकती। इसका प्रचलित नाम 55 फिक्शन (55 Fiction) है। अब इस नैनोफिक्शन अर्थात्‌ 55 फिक्शन के कुछ नियम है:

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कुछ प्रश्न.....

रीमा को किसी ने टैग किया और बदले में रीमा ने मेरे को टैग कर दिया। यह मामला काफ़ी रोचक लगा, अन्य टैग जो मिलते हैं उनके समान गंभीर सा नहीं था इसलिए ले लिया और यहाँ निभा रहा हूँ। 🙂

प्रश्न रोचक हैं, उत्तर और अधिक रोचक होने की संभावना दिखी, इसलिए जितनी रोचकता तुरत फुरत डिब्बे में से निकल सकती थी निकाल के उत्तरों में डाल दी, स्टॉक खत्म हो गया, पंसारी की दुकान पर जाकर और लाना होगा, तो उसका स्वाद आगे, पहले इसको निपटा लें! 😀

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हनीमून की दुविधा .....

On 16, Jul 2009 | 14 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit

नहीं, मैं अपनी बात नहीं कर रहा हूँ।

हुआ यूँ कि अभी हाल ही में एक परिचित ने पूछा कि मधुचंद्र यानि कि हनीमून (honeymoon) के लिए कौन सी जगह बढ़िया रहेगी यदि 5 दिन 6 रात अथवा 6 दिन 7 रात का प्रोग्राम हो और डेढ़ लाख तक का कुल बजट हो। अब यह सुन मैं सोच में पड़ गया, इस बजट में भारत का कार्यक्रम भी हो सकता है तथा इतने रोकड़ में विदेशी मामला भी सैट हो सकता है। पर पंगा ये है कि इतनी जगह हैं कि समझ नहीं आ रहा कि किसको शॉर्टलिस्ट (shortlist) किया जाए, ताकि एकाध जगह सुझाई जा सकें।

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