प्यार(प्रेम), इश्क, मोहब्बत …..
सुनने में बहुत अच्छे लगते हैं, ये पर्यायवाची शब्द ऐसे हैं जिनके बारे में प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि वह इनका अर्थ जानता है। पर क्या वास्तव में ऐसा है? कदाचित् नहीं!! ऐसा इसलिए है कि है कि इसका अर्थ न तो सरल है और न ही स्थिर(निश्चित) है। प्रत्येक व्यक्ति के विचार एक से नहीं होते, तो इसी तरह इसका अर्थ भी प्रत्येक व्यक्ति की निगाह में अलग अलग होता है। ठीक इसी प्रकार जीवन के प्रति हर व्यक्ति का दृष्टिकोण भी अलग अलग होता है, और इसी से उनके बाकी के निर्णय भी प्रभावित होते हैं।
बेकार ही में .....
On 10, Mar 2006 | 5 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
पिला दे नारंगी.....
On 01, Mar 2006 | 2 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
पिला दे, पिला दे, पिला दे मुझे नारंगी,
संतरे की बेटी न सही, है तो उसकी यह बहन भतीजी,
असली न सही, चलेगी उसकी यह नकल ही,
पिला दे, पिला दे, पिला दे मुझे नारंगी।
आह, सुबह के चार बजे हैं, भूख लग रही थी, तो सोचा कि क्यों न कुछ नारंगी-पान किया जाए!! 😀 तो कुछ चॉकलेट क्रीम बिस्कुट, थोड़े चॉकलेट केक व एक गिलास मिरिन्डा से अपनी क्षुधा एवं प्यास शांत की। 😀 वाह, मजा आ गया!! 😀
तौबा ये लैंगिकवाद?
On 28, Feb 2006 | 5 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
यह कोई आज का विवाद नहीं है, यह बरसों शताब्दियों पुराना विवाद है। लड़कियां बढ़िया हैं या लड़के महान हैं, इस विवाद का कोई अंत नहीं।
ऐसे समय पर बहुत खीज होती है। मन में आता है कि पुरूष-स्त्री की जगह ब्रह्मा जी को फ़ीनिक्स बनाने चाहिए थे जिससे कि लैंगिकवाद का सारा पचड़ा ही समाप्त हो जाता, क्योंकि फ़ीनिक्स में कोई लिंग की समस्या नहीं होती तथा वह स्वयंमेव ही अपने आप को उत्पन्न करता है।
ये तेरी पार्किंग ये मेरी पार्किंग!!
On 25, Feb 2006 | 5 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
कुछ समय पहले टेलीविजन पर एक फ़िल्म देखी थी, “ये तेरा घर ये मेरा घर” जिसमें सुनील शेट्टी मकान मालिक होतें हैं जिन्हे मकान बेचना होता है परन्तु किराएदार महिमा चौधरी और उनके घर वाले मकान खाली करने को तैयार नहीं होते और पूरी फ़िल्म में सुनील-महिमा लड़ते रहते हैं।
बहरहाल वह तो मामला ही अलग था, उसमें तो सुनील का मकान पर अधिकार था और वे अपनी जगह सही थे। परन्तु आजकल कुछ ऐसा ही असल जीवन में भी देखने को मिल जाता है। ज्यादा दूर की नहीं, अपनी नानीजी की हाऊसिंग सोसाईटी का ही किस्सा है। वहाँ मामाजी के एक घर के सामने सबसे ऊपर एक परिवार रहता है। परिवार में माँ-बाप और बेटा-बहु, यानि कुल चार प्राणी। अब इन लोगों के पास एक फ़िएट पालिओ पहले से थी, फ़िर इन्होनें एक सेन्ट्रो भी ले ली। लड़के की शादी हुई और चमचमाती शेवरलेट ओप्ट्रा भी मिल गई(भई वाह)। अब समस्या है कि खड़ी कहाँ करें, हाऊसिंग सोसाईटी में अब पार्किंग की पर्याप्त जगह नहीं बची है क्योंकि लगभग हर घर में एक गाड़ी तो है ही, किसी किसी के पास इन लोगों की तरह तीन-चार गाड़ियाँ भी हैं। तो इन लोगों के बाजू में एक प्रकार की गली सी है जिसमें गाड़ियाँ खड़ी होती हैं। अब जिस ब्लॉक में इनका घर है उसमें ११ अन्य फ़्लैट भी हैं, इनकी वाली साईड पर इनको मिला ६ हैं। तो भई और लोग बाग भी अपने घर के आगे गाड़ी खड़ी करना चाहते हैं। वैसे तो उस गली में चार गाड़ियाँ आराम से आ सकती हैं परन्तु खड़ी केवल तीन ही होती हैं। अब एक गाड़ी तो इनके पड़ोसियों की खड़ी होती है, बाकी दो इन लोगों की(तीसरी अन्य जगह खड़ी करते हैं)।
एक और शाम, ब्लॉग बंधुओं के नाम!!
On 21, Feb 2006 | 8 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
तो रविवार १९ फरवरी २००६ को एक और ब्लॉगर भेंटवार्ता थी, या यूँ कहें कि फ़्लॉगर भेंटवार्ता थी। 😉 सुबह सवेरे समय में यात्रा करने जाने के कारण मैं वैसे ही नहीं सोया था, क्योंकि रात सोने में देर हो गई थी और फ़िर २-३ घंटे सोकर क्या करता, ठीक समय पर उठ न पाता!! वापस आकर भी भारत-पाकिस्तान का मैच देखने का लोभ सोने न दे। आखिरकार सोचा कि थोड़ी नींद ले ली जाए, क्योंकि सांय ब्लॉगर भेंटवार्ता के लिए कनॉट प्लेस जाना था और नींद के अभाव से पीड़ित आँखों के संग ड्राईविंग करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। शाम भी हो गई और निश्चित समय पर मेरी घड़ियों में अलार्म भी बज उठा। फ़टाफ़ट तैयार हो मैं कनॉट प्लेस के निकट स्थित जंतर मंतर की ओर चल दिया।
समय के गलियारे से
On 20, Feb 2006 | 7 Comments | In Wanderer, घुमक्कड़ | By amit
तिथि: १९ फरवरी २००६
समय: सुबह के लगभग साढ़े ७ बजे
स्थान: दिल्ली की रिंग रोड, नारायणा के आगे
एक लाल रंग की एलएमएल ग्रैपटर मोटरसाईकिल लगभग ८५ कि.मी. प्रति घंटे की रफ़्तार से खाली पड़ी सड़क पर दम साधे उड़ी जा रही थी, उसको मैं चला रहा था। प्रश्न है कि मैं इतनी सुबह वहाँ क्या कर रहा था। भई मैं अपने गंतव्य की ओर बढ़ा चला जा रहा था। रविवार की सुबह थी, हल्का धुंध या धुँए का कोहरा भी था, पर सड़क अपेक्षा अनुसार खाली पड़ी थी, कोई इक्का-दुक्का वाहन ही दिखाई दे रहा था। पर सड़क खाली होने के बावजूद मैं अधिक गति से नहीं जा रहा था, क्योंकि मैं इतनी सुबह ताज़ी हवा में मोटरसाईकिल चलाने का पूरा आनंद लेने में व्यस्त था, गति का कोई महत्व नहीं था। अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान(aiims) आने पर एक घुमावदार मोड़ लेकर मैं भारतीय टेक्नॉलोजी संस्थान(IIT) की ओर मुड़ गया। अब दिल्ली के इस भाग में मैं पहले कभी नहीं आया था, पापा से रास्ता पूछ लिया था सो उनके निर्देशानुसार सीधे ही निकल लिया। थोड़ा आगे जाने पर एक सरदारजी से पूछा और आखिरकार, निश्चित समय से १५ मिनट पहले, ७:४५ पर मैं पहुँच ही गया, मेहरौली-गुड़गाँव सड़क पर स्थित फूल बाज़ार के मुहाने पर, जहाँ “हिस्ट्री वाल्क” के लिए आए सभी श्रद्धालुओं को एकत्र होना था।
मैं, वो और वेलेन्टाईन!!
On 15, Feb 2006 | 23 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
कल वेलेन्टाईन डे था(मध्यरात्रि बीत चुकी है और तारीख़ बदल गई है) और मैं सदैव की तरह तन्हा बैठा कुछ सोच रहा था। हिन्दी चिट्ठा जगत में सभी कविता अधिक करते हैं बाकी कुछ और कम। कविताओं में मुझे कोई विशेष रूचि नहीं रही कभी, पर मैंने सुना है कि प्यार का इज़हार एक सुन्दर कविता से बढ़िया कोई नहीं कर सकता। तो मैंने सोचा कि क्यों न आज के दिन कविताओं के प्रति अपनी अरूचि को भूल मैं भी एक कविता लिख डालूँ!! 😉
नौकरी न मिलने के निश्चित कारण!!
On 14, Feb 2006 | 3 Comments | In Some Thoughts, कुछ विचार | By amit
आज के समय में नौकरी पाना बहुत कठिन कार्य हो गया है, और अच्छी नौकरी पाना और भी कठिन। कई कंपनियाँ अच्छे शिक्षण संस्थानों से बढ़िया छात्रों की अपने यहाँ सीधे भरती कर लेती हैं। पर उनका क्या जिनके यहाँ ऐसा नहीं होता? या फ़िर वे लोग जो अपनी मौजूदा नौकरी छोड़कर नई और अधिक अच्छी नौकरी तलाश करना चाहते हैं? बड़ी मुश्किल से आपको एकाध अच्छी वैकेन्सी के बारे में पता चलता है और आप अपनी अर्ज़ी भी लगा देते हैं, परन्तु यह सुन कर बड़ी झल्लाहट होती है कि आपको साक्षात्कार तक के लिए नहीं बुलाया जाता या फ़िर साक्षात्कार के बाद कहा जाता है कि आपसे बाद में संपर्क किया जाएगा और फ़िर कुछ नहीं होता। मतलब कि इतनी बढ़िया नौकरी हाथ से निकल गई और आप हाथ मलते रह गए। पर क्या आप जानते हैं कि कई बार या अधिकतर ऐसा कुछ उन मामूली त्रुटियों के कारण होता है जिन्हें अनदेखा करने का आपको इतना बड़ा मोल चुकाना पड़ता है? तो क्या हैं वे त्रुटियाँ?
लोकप्रियता की ओर अग्रसर!!
On 10, Feb 2006 | 21 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
आज मैंने जैसे ही इस ब्लॉग के नियंत्रण भाग में डैशबोर्ड को खोला तो स्वतः ही मेरी नज़र वर्डप्रैस डॉट कॉम(wordpress.com) के सबसे लोकप्रिय चिट्ठों और तेज़ी से लोकप्रिय होते चिट्ठों की सूचि पर गई और तेज़ी से लोकप्रिय होते चिट्ठों की सूचि में चौथे स्थान पर अपने ब्लॉग को देखकर एक अजीब से आनंद की अनुभूति हुई!! 😀
आज छुट्टी थी!!
On 09, Feb 2006 | 6 Comments | In Mindless Rants, फ़ालतू बड़बड़ | By amit
आज मुहर्रम की छुट्टी थी। वैसे तो यह एक सरकारी छुट्टी होती है, परन्तु निजी क्षेत्र में यह अमूमन नहीं दी जाती, जहाँ तक मैं जानता हूँ, मेरे किसी भी कामकाजी मित्र की छुट्टी नहीं थी। पर मेरी थी, और यही बहुत है!! 😀
तो कल जब बॉस मुझे एक प्रोजेक्ट के बारे में बता रहे थे, तो मैंने कहा:-
मैं: बॉस, कल तो छुट्टी है, मजे आ गए!! 😀
बॉस: (कैलेंडर में देखने के बाद) कल तो मुस्लिम छुट्टी है, तुमने क्या करना है।
मैं: कुछ भी हो, छुट्टी तो है!! कल मैं सारा दिन नींद लूँगा।
बॉस: क्यों? इतनी थकान का क्या कारण है? अब तो सप्ताहांत की छुट्टी होती है।
मैं: हाँ, होती तो है परन्तु मैंने पिछले शनिवार छुट्टी न लेकर काम किया था और रविवार को भी नींद न ले पाया था। (लेकिन मैंने यह न बताया कि सारा दिन क्रिकेट खेलता रहा)
बॉस: ओह, तो ठीक है, मजे करो, लेकिन हमें यह काम कल तक फ़ाईनल करना है।
मैं: (मन ही मन सोचा) कमब्खत छुट्टी के दिन भी चैन नहीं मिलेगा!! 🙁