लानती बात है कि पिछला भाग नवंबर 2008 में लिखा था और अब पाँच महीने बाद जाकर यह तीसरी कड़ी लिखने का होश आया है!! खैर देर आए दुरूस्त आए!! 😉
….. पिछले भाग से आगे
रविवार 22 जून को सुबह सवेरे अलॉर्म बजते ही आँख खुल गई, तकरीबन नौ-दस घंटे की नींद ली थी और अपने को बहुत तरोताज़ा महसूस किया, दुर्लभ क्षण लगा क्योंकि आलस्य की मौजूदगी का एहसास नहीं हुआ। 😀 सुबह का नाश्ता हॉस्टल की ओर से फोकटी होता था, बुफ़े (Buffet) टाइप। ब्रेड, कॉर्न फ्लेक्स, दूध, कॉफ़ी इत्यादि रसोई में टेबल पर रखा होता था, जितना मर्ज़ी खाओ पियो और मौज करो। तो नाश्ते के साथ-२ इमेल इत्यादि जाँच ली और बैकअप के लिए फोटो कैमरे के कार्ड से पेन ड्राइव में स्थानांतरित कर ली। हॉस्टल में एक और लाभ यह था कि यदि तीन दिन या अधिक की बुकिंग है तो कपड़ों की धुलाई मुफ़्त थी। लेकिन एक पंगा अभी भी था और वह यह कि पिछले रोज़ बेल्ट नहीं मिली थी और वह अति आवश्यक थी। तो इसलिए सबसे पहले बेल्ट ढूँढ के उसको लेने की सोची।