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नया आवरण और बेहतर सुपाठ्‍यता.....

पिछले माह जब इस ब्लॉग का साल भर पुराना आवरण बदला था तो रवि जी ने तो कह दिया था कि मसौदा पढ़ने में दिक्कत है क्योंकि गहरे रंग के पृष्ठाधार पर सफ़ेद रंग का पाठ कुछ खास पढ़े जा सकने वाला नहीं लग रहा था, एक तरह से आँखों में चुभ रहा था। कुछ अन्य लोगों ने भी इसकी शिकायत की और यह मामला जँच तो मुझे भी नहीं रहा था लेकिन वह आवरण कुछ आकर्षक सा लग रहा था, इसलिए उसको त्यागने से पहले एक बार उसी में सुधार करने का प्रयत्न किया। 😕 पाठ के रंग को कुछ कम चमकीला कर (सफ़ेद से स्लेटी के कुछ शेड पर जाकर) देखा, पहले के मुकाबले आँखों में चुभन कम थी लेकिन मामला संतोषजनक फिर भी नहीं था। 🙁

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बुडापेस्ट - एक सफ़रनामा - भाग ३

लानती बात है कि पिछला भाग नवंबर 2008 में लिखा था और अब पाँच महीने बाद जाकर यह तीसरी कड़ी लिखने का होश आया है!! खैर देर आए दुरूस्त आए!! 😉

….. पिछले भाग से आगे

रविवार 22 जून को सुबह सवेरे अलॉर्म बजते ही आँख खुल गई, तकरीबन नौ-दस घंटे की नींद ली थी और अपने को बहुत तरोताज़ा महसूस किया, दुर्लभ क्षण लगा क्योंकि आलस्य की मौजूदगी का एहसास नहीं हुआ। 😀 सुबह का नाश्ता हॉस्टल की ओर से फोकटी होता था, बुफ़े (Buffet) टाइप। ब्रेड, कॉर्न फ्लेक्स, दूध, कॉफ़ी इत्यादि रसोई में टेबल पर रखा होता था, जितना मर्ज़ी खाओ पियो और मौज करो। तो नाश्ते के साथ-२ इमेल इत्यादि जाँच ली और बैकअप के लिए फोटो कैमरे के कार्ड से पेन ड्राइव में स्थानांतरित कर ली। हॉस्टल में एक और लाभ यह था कि यदि तीन दिन या अधिक की बुकिंग है तो कपड़ों की धुलाई मुफ़्त थी। लेकिन एक पंगा अभी भी था और वह यह कि पिछले रोज़ बेल्ट नहीं मिली थी और वह अति आवश्यक थी। तो इसलिए सबसे पहले बेल्ट ढूँढ के उसको लेने की सोची।

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अब मोबाइल फ्रेन्डली.....

कई जुगाड़ और उपाय देखे लेकिन बात नहीं बनी, मोबाइल में ब्लॉग को लोड करना समस्या का कारण बन जाता था क्योंकि कनेक्शन बहुत धीमा होता है और कंप्यूटर के ब्राऊज़र का डिज़ाइन मोबाइल ब्राऊज़र की छोटी स्क्रीन के लिए उपयुक्त नहीं होता। लेकिन आखिरकार बात बन गई, सही उपाय हो गया है। अब यह ब्लॉग मोबाइल फ्रेन्डली है!! मोबाइल ब्राऊज़र में खोलने पर यह ब्लॉग मोबाइल के लिए उपयुक्त डिज़ाइन में दिखाई देगा, मसौदा कहीं भी कम नहीं होगा, माल पूरा होगा लेकिन मोबाइल की छोटी स्क्रीन में ढंग से फिट किया हुआ। :tup:

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On 24, Mar 2009 | 7 Comments | In कतरन | By amit

जनता की गाड़ी सरकारी ईश्टाइल में मिलेगी। जिस प्रकार यहाँ दिल्ली में दिल्ली विकास प्राधिकरण उर्फ़ डीडीए वाले किसी इलाके में चार-पाँच हज़ार फ्लैट बना के आवेदन फॉर्म भरवाते हैं और फिर उन लाखों आवेदन पत्रों में से जितने फ्लैट हैं उतने फॉर्म लॉटरी द्वारा चुन के आवेदन कर्ताओं को फ्लैट देते हैं उसी प्रकार टाटा की बहुचर्चित जनता की गाड़ी लखटकिया नैनो भी लोगों को लॉटरी द्वारा बेची जाएगी। अभी हाल ही में कहीं पढ़ा कि पहली खेप में सिर्फ़ 800-900 गाड़ियाँ ही बिकेंगी क्योंकि इतनी ही तैयार हुई हैं। तो टाटा मोटर्स तीन सौ रूपए में फॉर्म की एक प्रति बेचेगी जिसको भरकर नैनो को खरीदने के तलबगार अपना नंबर लगाएँगे। उसके बाद टाटा मोटर्स वाले लॉटरी द्वारा निर्णय लेंगे कि कौन खुशनसीब (या बदनसीब?) नैनो को खरीदने के हकदार हैं।

और कुछ हो या न हो, लेकिन लग रहा है कि टाटा मोटर्स वाले जितना नैनों की पहली खेप में कमाएँगे उससे अधिक वे आवेदन फॉर्म बेच कर कमा लेंगे!! 😀

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वह मासूमियत .....

कुकुर नामक जीव से मुझे बचपन से ही लगाव रहा है, कदाचित्‌ इसलिए कि छुटपन में दो कुत्तों का साथ रहा है – एक अम्मा (अपनी दादी जी को मैं यही कहता था) का पाला हुआ शैतान रॉकी था और एक नानी जी के यहाँ भोला (और कभी नटखट) शेरू। रॉकी के साथ मेरा अधिक समय नहीं बीता, और वह जल्दी ही चल बसा था लेकिन शेरू के साथ मैं काफ़ी खेला। छुट्टियों में जब अधिक समय के लिए नानी जी के घर जाना होता तो शाम को शेरू के साथ खेलना होता, छुट्टी का दिन होता तो सबसे छोटे वाले मामा जी (पूरे घर में उनको शेरू सबसे अधिक प्रिय था, लाए भी वे ही थे उसको जब वह छोटा सा पिल्ला था) भी बाग में साथ चलते और गेंद अथवा फ्रिसबी फेंक शेरू के साथ खेलते। सोसाइटी के सभी बच्चे (और बड़े भी) शेरू से डरते कि कहीं काट न ले (मिक्स्ड अलसेशियन जाती का था शेरू) और मैं उनके डर पर अचरज करता कि कितने डरपोक हैं, शेरू से डरने वाली कोई बात न थी, वह तो बहुत ही भोला था और यदि कोई अंजान व्यक्ति पास आता तो थोड़ा गुर्रा देता था मात्र चेतावनी के तौर पर। कितने ही बच्चों का डर मैंने भगाया जब उनको आराम से शेरू का सिर सहलाने देता, यह शेरू को बहुत पसंद था और वह इसका आनंद लेने के लिए सदैव तैयार रहता, जमीन पर पसर जाता अपनी मुंडी नीचे करके और पास में यदि कोई भी घर का व्यक्ति हो तो किसी से भी सिर सहलवा लेता। तेरह-चौदह वर्ष की आयु में जब शेरू चल बसा तो मुझे बहुत दुख हुआ था, मैं भी तब इतनी ही उम्र का था और ऐसा लगा था कि मानो एक प्यारा मित्र बिछड़ गया, प्यारा मित्र ही तो था शेरू!!

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On 13, Mar 2009 | 10 Comments | In कतरन | By amit

बस अभी कुछ ही देर में बंगलूरू के लिए निकलना है, कल वहाँ पहला ब्लॉगकैम्प हो रहा है। 48 घंटे से अधिक हो गए नींद लिए हुए, पिछले दो दिनों से लगातार ऑफिस का काम कर रहा था, मामला ज़रा अर्जेन्ट था और सोमवार तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता था। थकान और नींद भगाने के लिए कल रात्रि भोजन से पहले एस्प्रैसो (espresso) का डबल शॉट लिया, गोली की माफ़िक सारी नींद भाग गई थी।

अब ढाई घंटे की विमान यात्रा आगे है और फिर आज का पूरा दिन – मन में दुविधा है कि नींद ली जाए कि थोड़ा राग दरबारी को पढ़ लिया जाए, जब से लाया हूँ तब से एकाध ही पन्ना पढ़ना हुआ है!! नींद अधिक बड़ी प्रॉयारिटी (priority) इसलिए नहीं लग रही क्योंकि रात को लिए एस्प्रैसो के डबल शॉट का असर अभी भी अच्छा खासा है।

खैर अभी तो देर हो रही है, तैयार होकर निकलना है, बाद में भी यदि दुविधा बनी रही तो कदाचित्‌ सिक्का उछाल के निर्णय लिया जाएगा कि क्या किया जाए – राग दरबारी अथवा निद्रा रानी!! 😉

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ब्लॉगकैम्प बंगलूरू प्रथम संस्करण.....

On 12, Mar 2009 | 7 Comments | In Blogging, ब्लॉगिंग | By amit

परसों, शनिवार 14 मार्च 2009 को, बंगलूरू के पहले ब्लॉगकैम्प का आयोजन हो रहा है। पिछले शनिवार को दिल्ली में संपन्न हुए ब्लॉगकैम्प दिल्ली के द्वितीय संस्करण में जितना दम था उससे अधिक दम बंगलूरू के प्रथम ब्लॉगकैम्प में नज़र आ रहा है। 🙂

हार्डडिस्क निर्माता सीगेट (Seagate) के सहयोग से इंडियन ब्लॉग एण्ड न्यू मीडिया सोसाइटी द्वारा आरंभ की गई ब्लॉग लिखो प्रतियोगिता अभी भी चालू है और सभी भारतीय ब्लॉगरों के लिए खुली है जिसमें पुरस्कार के रूप में एक टेराबाइट (यानि एक हज़ार गीगाबाइट) की दो एक्सटर्नल हार्डडिस्क और पाँच सौ गीगाबाइट की एक एक्सटर्नल हार्डडिस्क दी जाएँगी। इस प्रतियोगिता की अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखें

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ब्लॉगकैम्प दिल्ली द्वितीय से कुछ लम्हें.....

On 10, Mar 2009 | 3 Comments | In Blogging, ब्लॉगिंग | By amit

बीते शनिवार, 7 मार्च 2009, को दिल्ली के दूसरे ब्लॉगकैम्प का सफ़ल आयोजन हुआ, अच्छी खासी तादाद में श्रद्धालुओं ने आकर ब्लॉगिंग तथा न्यू मीडिया संबन्धित सत्संग का लाभ उठाया। अनुभवी वक्ताओं ने अपने-२ सत्रों में अपने अनुभवों और ज्ञान को बेहिचक सभी श्रद्धालुओं के साथ बाँटा। 🙂 इस बार फोटोग्राफ़ी पर भी सत्र थे, फोटोग्राफ़ी में रूचि रखने वाले नौसिखियों से लेकर फोटोग्राफ़ी के कुछ गुर जानने वालों तक के स्तर के, तो तीन घंटे के खास फोटोग्राफ़ी के सत्रों में उस पर सार्थक चर्चाएँ हुई। किसी भी अन्य असम्मेलन की भांति माहौल एकदम दोस्ताना था।

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ब्लॉगकैम्प दिल्ली द्वितीय संस्करण.....

On 05, Mar 2009 | 6 Comments | In Blogging, ब्लॉगिंग | By amit

परसों, शनिवार 7 मार्च 2009 को, दिल्ली के दूसरे ब्लॉगकैम्प का आयोजन हो रहा है। इस बार थोड़े अलग प्रकार का मामला होगा, अलग प्रकार के सत्र होंगे। दोपहर 2 बजे से सांय 5 बजे तक एक हॉल में ब्लॉगिंग पर सत्र तो चलेंगे ही, एक अन्य हॉल में प्रोफेशनल फोटोग्राफ़रों द्वारा फोटोग्राफ़ी के सत्र भी होंगे और बेहतर फोटो लेने और अन्य चीज़ों पर ज्ञान का आदान प्रदान होगा, यानि कि एक के दाम में डबल मज़ा!! :tup: शौकिया फोटोग्राफ़रों और फोटोग्राफ़ी में रूचि रखने वालों के लिए खासतौर पर प्रसिद्ध फैशन फोटोग्राफ़र श्री मुनीष खन्ना को फोटोग्राफ़ी पर ज्ञान देने के लिए आमंत्रित किया गया है, वे बताएँगे कि बेहतर फोटो कैसे लिए जा सकते हैं, कौन सी छोटी-२ चीज़ें होती हैं जिनको ध्यान में रखने से कोई भी ठीक-ठाक फोटो लेने की जगह बढ़िया फोटो खींच सकता है। 🙂 साथ ही इन तीन घंटों में यह भी चर्चा होगी कि किस प्रकार के उपकरण बेहतर होते हैं, भिन्न उपकरणों और कैमरों तथा फोटोग्राफ़ी के अन्य मुद्दों, जैसे कि मेगापिक्सल, कंप्यूटर पर फोटो को सुधारने आदि पर भी चर्चा होगी।

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राग दरबारी और हिन्दी पुस्तकों पर कंजूसी

प्राय: सुनने में आता है कि हिन्दी पुस्तकें खरीदने के मामले में लोग कंजूसी दिखाते हैं, वे उसका लिखित दाम देने से कतराते हैं इसलिए बढ़िया पुस्तकें नहीं बिकती, जबकि अंग्रेज़ी पुस्तकें 500-800 दाम होने के बावजूद बिक जाती हैं! पता नहीं अब इसमें कितनी सच्चाई है, लेकिन इतना कह सकता हूँ कि मैं कोई पुस्तक दाम देख के नहीं खरीदता। पुस्तक महँगी होगी तो मैं उसका सस्ता संस्करण खोजने का प्रयत्न करता हूँ या फिर यह देखता हूँ कि सस्ती कहाँ से मिल सकेगी। जैसे हैरी पॉटर की पिछली पुस्तकें तकरीबन 900 रूपए के लिखित दाम पर आईं, तो पिछली दो पुस्तकें मैंने ऑनलाईन खरीदीं जहाँ वे मुझे 300 रूपए के डिस्काऊँट पर मिल गईं। ऐसे ही एक उपन्यास की शृंखला का नया उपन्यास आया था तो हार्ड कवर (hard cover) में आया था जो कि 700 रूपए का था, थोड़ी प्रतीक्षा की तो उसका पेपरबैक (paperback) संस्करण भी आ गया जिसके सिर्फ़ 350 रूपए चुकाए!! :tup: दाम बचाने के लिए पॉयरेटिड पुस्तकें खरीदना अपने को नहीं भाता है क्योंकि उसमें प्रकाशक और लेखक दोनों का पैसा मारा जाता है और चोर (जो पॉयरेटिड छाप रहा है) की खामखा की कमाई हो जाती है। :tdown:

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